स्वदेश विशेष: चंबल की पहचान अब बागी नहीं, घड़ियालों से...बढ़ेगी इको टूरिज्म की संभावना

चंबल की पहचान अब बागी नहीं, घड़ियालों से
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चंबल की पहचान अब बागी नहीं, घड़ियालों से

मध्य प्रदेश। चंबल...वो बीहड़ जो इतिहास के सबसे खूंखार बागियों का गढ़ हुआ करता था आज अपनी पहचान बदल रहा है। यहां के वीरान इलाके आज भी बागियों की पुलिस के साथ मुठभेड़ के गवाह हैं लेकिन अब यहां न बागी हैं न अराजकता। अब चंबल की पहचान सिर्फ बीहड़ नहीं रह गई बल्कि यह बन गया है घड़ियालों का पनाहगाह...जी हां चंबल का यह क्षेत्र अब घड़ियालों के लिए जाना जाता है।

मध्य प्रदेश प्राकृतिक रूप से समृद्ध प्रदेश है। एमपी की पहचान टाइगर स्टेट, चीता स्टेट, वल्चर स्टेट, तेंदुआ स्टेट के रूप में तो थी ही साथ ही साथ घड़ियाल स्टेट के रूप में भी हो रही है। मध्य प्रदेश लंबे समय से घड़ियालों के संरक्षण के लिए काम कर रहा है। इसी का नतीजा है कि, अगर देश में 3044 घड़ियाल हैं तो अकेले चंबल में ही 2456 हैं। इस तरह मध्य प्रदेश की चंबल नदी देश के 80 प्रतिशत से अधिक घड़ियालों का घर बन गई है।

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने 17 फरवरी को चंबल घड़ियाल अभ्यारण्य में घड़ियाल छोड़े। उन्होंने कहा कि, 'इस जीव की दिनचर्या बेहद रोचक है। इसके माध्यम से इको टूरिज्म को बढ़ावा मिलेगा। मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि, चंबल एशिया महाद्वीप की सबसे स्वच्छ नदी है। जहां घड़ियाल अंडे देते हैं उनमें से करीब आधे अण्डों का संग्रह किया जाता है। जो घड़ियाल 17 फरवरी को छोड़े गए हैं उनका संरक्षण 2022 से किया जा रहा है। जब वे 120 सेंटीमीटर से ऊपर हो जाते हैं तो उन्हें नदी में छोड़ा जाता है।'

चंबल घड़ियाल अभ्यारण्य :

यह नदी तीन राज्यों जिनमें मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तरप्रदेश की सीमाओं पर बहती है। चंबल घड़ियाल अभ्यारण्य (Chambal Gharial Sanctuary), चंबल नदी के 435 किलोमीटर क्षेत्र में है।

30 सितंबर 1978 को भारत सरकार ने इस अभ्यारण्य के लिए प्रशासनिक अनुमति दी थी। इसके बाद देवरी घड़ियाल सेंटर में हैचिंग शुरू की गई। घड़ियाल संरक्षण के लिए चंबल नदी के किनारे बसे 75 गांव के लोगों को जागरूक भी किया गया। इस प्रयास को सफल बनाने के लिए 1200 घड़ियाल मित्र भी वन विभाग के साथ काम कर रहे हैं।

देवरी इको सेंटर :

चंबल में घड़ियालों की आबादी की बढ़ती वजह देवरी इको सेंटर है। इस सेंटर की खासियत यह है कि, जब घड़ियाल अंडे देते हैं तो उनके अंडे देवरी इको सेंटर लाए जाते हैं। इस सेंटर पर तीन साल तक आयु के लिए घड़ियालों को पाला जाता है इसके बाद ग्रो एंड रिलीज कार्यक्रम के तहत इन्हें चंबल में छोड़ दिया जाता है। हर साल करीब 200 घड़ियाल चंबल नदी में छोड़े जा रहे हैं।

भारत में घड़ियाल संरक्षित जीव :

घड़ियाल एक मछली खाने वाला मगरमच्छ है जो भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी भाग के मीठे पानी में पाया जाता है। घड़ियाल भारतीय उपमहाद्वीप की मूल मगरमच्छ प्रजाति है, जो गंगा और ब्रह्मपुत्र नदी तंत्र में पाई जाती है। यह प्रजाति अपनी विशिष्ट घड़ी की तरह आकार की नाक के लिए जानी जाती है।

भारत में घड़ियाल की संख्या में गिरावट के कारण, इसे वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन एक्ट, 1972 के तहत एक संरक्षित प्रजाति घोषित किया गया था। इसके अलावा, घड़ियाल को अंतर्राष्ट्रीय प्राकृतिक संरक्षण संघ (IUCN) की रेड सूची (गंभीर रूप से संकटग्रस्त) में भी शामिल किया गया है।

50 और 60 के दशक में आई घड़ियालों की आबादी में गिरावट :

जानकारी के अनुसार देश भर में 50 और 60 के दशक में घड़ियालों की संख्या में तीव्र गिरावट आई थी। एक अनुमान के मुताबिक घड़ियालों की 80 प्रतिशत आबादी खत्म हो गई थी। इसके बाद 1970 के दशक में भारत सरकार द्वारा घड़ियालों को संरक्षण प्रदान किया गया। काफी प्रयासों के बावजूद 1997 से 2006 के बीच घड़ियालों की संख्या में कमी दर्ज की गई थी।

घड़ियाल पर्यावरण के लिए क्यों जरूरी :

पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन :

घड़ियाल पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन को बनाए रखने में मदद करते हैं। वे जलीय पारिस्थितिकी तंत्र में शिकारी के रूप में कार्य करते हैं, जिससे जलीय जीवन का संतुलन बना रहता है।

जलीय प्रदूषण नियंत्रण :

घड़ियाल जलीय प्रदूषण को नियंत्रित करने में मदद करते हैं। वे जलीय पारिस्थितिकी तंत्र में मृत जानवरों और पौधों को खाकर जलीय प्रदूषण को कम करते हैं।

जलीय आवास संरक्षण :

घड़ियाल जलीय आवासों के संरक्षण में भी मदद करते हैं। वे जलीय पारिस्थितिकी तंत्र में रहते हैं और जलीय आवासों के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

जैव विविधता संरक्षण

घड़ियाल जैव विविधता के संरक्षण में मदद करते हैं। वे जलीय पारिस्थितिकी तंत्र में रहते हैं और जलीय जीवन की विविधता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

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