मंदसौर रेप केस: सुप्रीम कोर्ट ने आरोपियों की फांसी पर लगाई रोक, कहा – दोबारा होगी सुनवाई...

नई दिल्ली। मध्यप्रदेश के बहुचर्चित मंदसौर गैंगरेप केस में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने आरोपियों इरफान और आसिफ की फांसी की सजा पर रोक लगाते हुए मामले की दोबारा सुनवाई का आदेश दिया है।
सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि सिर्फ DNA रिपोर्ट के आधार पर फांसी की सजा नहीं दी जा सकती। जब तक रिपोर्ट तैयार करने वाले वैज्ञानिक खुद कोर्ट में आकर बयान नहीं देंगे और जांच प्रक्रिया को स्पष्ट नहीं करेंगे, तब तक इसे निर्णायक सबूत नहीं माना जाएगा। इस फैसले के बाद अब यह मामला फिर से ट्रायल कोर्ट में सुना जाएगा।
क्या था पूरा मामला?
मंदसौर में 26 जून 2018 को दिल दहला देने वाली घटना हुई थी। दो आरोपियों इरफान और आसिफ ने सात साल की मासूम बच्ची को अगवा कर उसके साथ दरिंदगी की और फिर झाड़ियों में फेंक दिया। इस घटना ने पूरे मध्यप्रदेश को झकझोर कर रख दिया था। लोगों में आक्रोश था, और तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस मामले की फास्ट ट्रैक कोर्ट में सुनवाई कराने के आदेश दिए थे।
55 दिनों में ट्रायल कोर्ट ने आरोपियों को फांसी की सजा सुनाई थी, जिसे बाद में मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने भी बरकरार रखा। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को पलटते हुए दोबारा सुनवाई का आदेश दिया है।
DNA रिपोर्ट को लेकर कोर्ट का सख्त रुख
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में DNA सबूतों की वैधता पर सवाल उठाए हैं। कोर्ट ने कहा कि सिर्फ DNA रिपोर्ट के आधार पर किसी को फांसी की सजा नहीं दी जा सकती। जब तक रिपोर्ट तैयार करने वाले वैज्ञानिक (साइंटिफिक एक्सपर्ट) खुद अदालत में आकर बयान नहीं देंगे और पूरी जांच प्रक्रिया को स्पष्ट नहीं करेंगे, तब तक इसे निर्णायक सबूत नहीं माना जाएगा।
इसके अलावा, DNA रिपोर्ट से जुड़े सभी दस्तावेज अभियोजन पक्ष (सरकार) को बचाव पक्ष (आरोपियों के वकील) को सौंपने होंगे, ताकि वे इसे चुनौती दे सकें। इसके बाद वैज्ञानिक कोर्ट में आकर रिपोर्ट का बचाव कर सकेंगे।
अब क्या होगा?
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद अब आरोपी "सजायाफ्ता कैदी" नहीं रहेंगे, बल्कि "विचाराधीन कैदी" होंगे। यानी अब फिर से अदालत में सबूतों की जांच होगी और उसके बाद यह तय होगा कि आरोपियों को सजा दी जाए या नहीं।
आरोपियों के वकील ने क्या कहा?
आरोपियों के वकील अमित दुबे ने पुलिस जांच पर सवाल उठाए। उनका कहना है कि जांच निष्पक्ष नहीं थी और चुनावी माहौल की वजह से जल्दबाजी में केस चलाया गया, जिससे कई महत्वपूर्ण बिंदु छूट गए।
सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
इस फैसले ने भारत की न्याय प्रक्रिया में DNA सबूतों की वैधता पर नई बहस छेड़ दी है। आमतौर पर अदालतें DNA रिपोर्ट को निर्णायक सबूत मान लेती हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि सिर्फ DNA रिपोर्ट के आधार पर सजा नहीं दी जा सकती, जब तक इसे जांचने वाले वैज्ञानिक खुद कोर्ट में अपनी रिपोर्ट की पुष्टि न करें।
जनता में गुस्सा, फिर उठी सख्त सजा की मांग
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद जनता में एक बार फिर आक्रोश देखा जा रहा है। लोग सवाल उठा रहे हैं कि जिस मामले में ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट पहले ही फांसी की सजा दे चुके थे, उसे अब दोबारा सुनवाई के लिए क्यों भेजा जा रहा है?
क्या सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न्याय की दिशा में सही कदम है, या फिर इससे अपराधियों के हौसले बुलंद होंगे? यह तो आने वाले दिनों में ही साफ होगा। लेकिन इतना तय है कि इस फैसले के बाद देश में बलात्कार मामलों की सुनवाई और DNA सबूतों की विश्वसनीयता को लेकर एक नई बहस शुरू हो गई है।