Women's Day Special 2025: पुरुष प्रधान पत्रकारिता में महिलाओं की धमक

Womens Day Special 2025
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Women's Day Special 2025

Women's Day Special : भोपाल। अबसे दशकों पहले पत्रकारिता को पुरुष प्रधान पेशा माना जाता था। इस धारणा को महिलाओं ने अपने दम पर तोड़ा है। ऐसी ही एक महिला पत्रकार ऐसी ही एक महिला पत्रकार की कहानी स्वदेश बताने जा रहा है। जिसने लम्बे संघर्ष के बाद पत्रकारिता जगत में न केवल अपना नाम बनाया बल्कि तीन दशकों से अपनी खोजी पत्रकारिता से कई सरकारों को परेशान भी किया। हम बात कर रहे हैं जानी मानी महिला पत्रकार श्रावणी सरकार की। आइये जानते हैं श्रावनी सरकार के संघर्ष की कहानी...।

श्रावणी सरकार, मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल की एक वरिष्ठ पत्रकार हैं। वे पिछले तीस वर्षों से पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्यरत हैं और अपनी कामयाबी के लिए जानी जाती हैं। श्रावणी का कहना है, "मेरे परिवार में मैं पहली महिला हूँ जो इस फील्ड में आई हूँ।" उनके लिए यह सफर आसान नहीं था। एक समय था, जब श्रावणी का सपना UPSC परीक्षा पास करने का था, लेकिन किस्मत ने साथ नहीं दिया और वे उस परीक्षा में सफल नहीं हो पाईं। इसके बाद उनका रुझान पत्रकारिता की ओर हुआ।

श्रावणी के शब्दों में, "मैं बायचांस पत्रकार बन गई।" हालांकि, उनके अंदर पत्रकारिता के प्रति लगाव पहले से ही था। शुरूआत में उनका इंग्लिश भाषा पर अच्छी पकड़ थी और उनके दोस्तों ने उन्हें लोकमत टाइम्स में आर्टिकल लिखने के लिए प्रेरित किया। श्रावणी ने इस दिशा में कदम बढ़ाया और नागपुर के लोकमत टाइम्स में एक ट्रेनी के रूप में काम करना शुरू किया।

यहां से उनकी पत्रकारिता की यात्रा शुरू हुई। श्रावणी ने लोकमत टाइम्स में पत्रकारिता के दांवपेंच सीखे, लेकिन इस दौरान उन्हें कई कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ा। रिपोर्टिंग के दौरान उन्हें देर रात तक बाहर रहना पड़ता था, जिसे उनके पिता पसंद नहीं करते थे। पिता की चिंता को देखते हुए, श्रावणी ने नागपुर छोड़कर रायपुर में हिंदुस्तान टाइम्स में काम करना शुरू किया, लेकिन पिताजी की चिंताएं खत्म नहीं हुईं।

उनके पिता को यह डर था कि उनकी बेटी देर रात अकेले स्कूटी से कैसे घर वापस आएगी। श्रावणी ने अपने पिता की इस चिंता को दूर करने के लिए 2004 में एक कार खरीदी और उसे चलाना सीख लिया। श्रावणी का कहना है, "मैंने कार इस रीजन से भी खरीदी क्योंकि मेरे कलीग मुझे छोड़ने जाते थे। अक्सर हमें रिपोर्टिंग करते हुए देर हो जाती थी और मुझे अकेले स्कूटी से वापस जाना पड़ता था।"

पत्रकार श्रावणी सरकार

श्रावणी की यह कोशिश केवल उनकी व्यक्तिगत सुरक्षा के लिए नहीं थी, बल्कि यह उनके आत्मविश्वास और स्वतंत्रता की भी कहानी है। श्रावणी ने बताया कि, हिंदुस्तान टाइम्स में अपने काम के दौरान उन्होंने हमेशा पुरुषों से अधिक मेहनत की। इसके बाद वे DB Digital में डिप्टी एडिटर बनीं और 2019 से 2024 तक 'द वीक' के साथ जुड़ीं।

श्रावणी की कहानी में एक और दिलचस्प पहलू है- उनकी व्यक्तिगत जीवन यात्रा। श्रावणी ने कभी शादी नहीं की। उनका मानना है कि शादी न करने से उनका करियर सरल हो गया। वे कहती हैं, "पत्रकारिता में मुझे केवल अपनी जिम्मेदारी थी, किसी पति, बच्चों या परिवार की नहीं।" उनका यह भी मानना है कि शादी के बाद दोनों जिम्मेदारियों को संभालना मुश्किल हो सकता है, इसीलिए उन्होंने अपने करियर को प्राथमिकता दी। आज भी वे अपने फैसले पर पूरी तरह से खुश हैं और इस पर उन्हें कोई पछतावा नहीं है।

समय के साथ, श्रावणी ने देखा कि पत्रकारिता का तरीका बदल गया है। उनके दौर में वे सरकार के खिलाफ कई रिपोर्ट्स लिखती और प्रकाशित करती थीं, लेकिन अब पत्रकारिता का तरीका और लक्ष्य बदल चुका है। उन्हें लगता है कि अब वह जो पत्रकारिता की सच्ची भावना थी, वह अब नहीं रही।

भोपाल की महिला रिपोर्टर दीप्ति चौरसिया

अब कहानी उस महिला रिपोर्टर की, जिसने पत्रकारिता के क्षेत्र में अपनी कड़ी मेहनत और संघर्ष से न सिर्फ अपना नाम रोशन किया, बल्कि उन्होंने यह साबित किया कि महिलाएं किसी भी क्षेत्र में पुरुषों से कम नहीं हैं। यह कोई और नहीं बल्कि भोपाल की महिला रिपोर्टर दीप्ति चौरसिया हैं।

रिपोर्टर दीप्ति चौरसिया मध्य प्रदेश के बड़वानी जिले के सेंधवा से आती हैं। दीप्ति ने पत्रकारिता में बीते 25 सालों का अनुभव हासिल किया है और आज वे एक सफल रिपोर्टर हैं। दीप्ति की यात्रा भी कड़ी मेहनत और संघर्ष से भरी रही।

रिपोर्टर दीप्ति चौरसिया

दीप्ति ने अपनी पत्रकारिता की शिक्षा 1997-98 में IIMC, नई दिल्ली से प्राप्त की। दीप्ति कहती हैं, "मैंने छोटे-छोटे जॉब्स से अपने करियर की शुरुआत की। सबसे पहले मैंने रिसर्चर के रूप में काम किया और इसके बाद न्यूज़ कोर्डिनेटर के रूप में मीडिया की फील्ड में कदम रखा।"

दीप्ति को अपने शुरुआती दिनों में चुनौतियों का सामना करना पड़ा। ETV MP मीडिया हाउस ने उन्हें एंकरिंग का प्रस्ताव दिया, लेकिन दीप्ति का रुझान हमेशा रिपोर्टिंग की ओर था, इसलिए उन्होंने एंकरिंग का प्रस्ताव ठुकरा दिया और 2001 में भोपाल आकर ETV MP के साथ रिपोर्टिंग शुरू की। उन्होंने लगभग एक साल तक ETV MP के साथ काम किया और फिर 'आज तक' के साथ जुड़ीं, जहां उन्होंने करीब दस साल तक काम किया।

दीप्ति का कहना है, "इस पूरे दौर में कई चुनौतियां आईं, लेकिन मेरे परिवार और पति ने मुझे हमेशा सपोर्ट किया।" उन्होंने बताया कि उस समय संसाधनों की कमी थी, समय पर पहुंचने की मुश्किलें थीं, और फोटोज और फुटेज ट्रांसफर करना भी एक बड़ा चैलेंज था।

दीप्ति ने अपनी मेहनत और समर्पण से यह साबित किया कि पत्रकारिता डे टू डे जर्नी है, जिसमें कभी हार होती है तो कभी जीत। उन्होंने हमेशा अपना 100% दिया और इसे ही अपने करियर की सफलता माना।

दीप्ति की शादी 2005 में हुई और 2008 में उनकी बेटी का जन्म हुआ। उस दौरान वह 'आज तक' में काम कर रही थीं। पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ को बैलेंस करना कभी आसान नहीं होता, लेकिन दीप्ति के परिवार और पति का सपोर्ट उन्हें हमेशा अपनी पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ को संतुलित करने में मदद करता था।

श्रावणी सरकार और दीप्ति चौरसिया की कहानियाँ हमें यह सिखाती हैं कि जब किसी महिला के भीतर अपने सपनों को पूरा करने की चाहत हो, तो कोई भी बाधा उसे रोक नहीं सकती। चाहे वे पत्रकारिता के क्षेत्र में हों या किसी और पेशे में, अगर हम मेहनत और दृढ़ निश्चय के साथ अपने रास्ते पर चलते हैं, तो सफलता जरूर मिलती है। आज भी कई पेशे महिलाओं के लिए चुनौतीपूर्ण माने जाते हैं, लेकिन श्रावणी और दीप्ति जैसी महिलाएँ यह साबित करती हैं कि अगर महिलाओं को सही अवसर मिले, तो वे हर क्षेत्र में पुरुषों को बराबरी से टक्कर देती हैं।

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