त्रिपुरा में दूसरी बार सरकार बनाने के लिए भाजपा ने झौंकी पूरी ताकत

त्रिपुरा में दूसरी बार सरकार बनाने के लिए भाजपा ने झौंकी पूरी ताकत
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दीपक उपाध्याय

अगरतला/वेब डेस्क। कभी लेफ्ट सरकार का गढ़ रहे त्रिपुरा में दोबारा सरकार बनाने के लिए भारतीय जनता पार्टी ने पूरी ताकत झौंक दी है। आज मतदान संपन्न हुआ। पूर्वी भारत के आखिर में स्थित इस राज्य में इस बार भाजपा का मुकाबला सिर्फ सीपीआई(एम) और उसकी सहयोगी पार्टियों के साथ साथ कांग्रेस से भी है। लेफ्ट और कांग्रेस इस राज्य में इस बार मिलकर लड़ रही हैं। वहीं भाजपा के प्रचार के लिए पार्टी अध्यक्ष जे पी नड्डा के साथ साथ केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी लगातार चुनाव प्रचार कर रहे हैं। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी यहां चुनावों से ठीक पहले एक बड़ी रैली कर चुके हैं।

अगरतला में बीजेपी के लिए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह रोड़ शो में भारी भीड़ के साथ साथ कार्यकर्ताओं में भारी उत्साह भी था। भाजपा का पटका गले में डाले हुए अमोल मजूमदार बड़े उत्साह के साथ बताते हैं कि इस बार भी भाजपा इस राज्य में सरकार बनाने जा रही है, क्योंकि जो जुल्म लेफ्ट पार्टियों और उनके गुंडों ने यहां आम जनता पर किया है, वो अभी तक लोग भूले नहीं है। तब यहां रोज़ लेफ्ट पार्टियों के नेता सरकारी संरक्षण में मार पिटाई किया करते थे। इससे ही परेशान होकर लोगों ने उन्हें उखाड़ फेंका था।

60 सदस्यों वाली त्रिपुरा विधानसभा में पिछले चुनावों में भाजपा ने 36 सीटें जीती थी और 25 साल से राज कर रहे मानिक सरकार के नेतृत्व वाली लेफ्ट एलाइंस को हार का मुंह देखना पड़ा था। लेकिन इस बार चुनावों में कुछ स्थितियां बदली हुई हैं। राज्य में एक दूसरे के धुर विरोधी लेफ्ट और कांग्रेस जहां इस बार हाथ मिलाकर एकसाथ चुनाव लड़ रही हैं, वहीं त्रिपुरा के राज परिवार से प्रदोत्य माणिक्य देववर्मा के नेतृत्व में त्रिपरा मोथा ने भी ताल ठोंकी हुई है। हालांकि भाजपा लगातार उन्हें अपने पाले में दोबारा लाने की कोशिश में लगी हुई थी, लेकिन इसमें उन्हें कामयाबी नहीं मिली। दूसरी ओर भाजपा ने 5 सीटें आईपीएफटी के लिए छोड़ दी हैं। इस राज्य में करीब 20 सीटें ट्राइब्स के प्रभाव वाली हैं। जिनमें से भाजपा ने पिछली बार 10 सीटें जीती थी।

लंबे समय से त्रिपुरा चुनावों पर नज़र रखने वाले संजय मिश्रा बताते हैं कि बेशक चुनावों में त्रिकोणीय संघर्ष दिख रहा हो, लेकिन भाजपा को चुनावों में ख़ासी बढ़त है। इसी वजह से कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियों को साथ मिलकर चुनाव लड़ना पड़ रहा है। आदिवासी बहुल क्षेत्रों में भी भाजपा का प्रभाव पहले से ज्य़ादा बढ़ा है, वहीं मैदानी इलाकों में उसका कॉडर पहले से मज़बूत हुआ है।

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