उत्तराखंड हादसे में अब तक 9 पर्वतारोहियों के शव बरामद, जानिए क्या होता है हिमस्खलन

देहरादून। उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिला स्थित द्रोपदी का डांडा-2 पर्वत चोटी ग्लेशियर में हुए हिमस्खलन के बाद रेस्क्यू ऑपरेशन के तीसरे दिन गुरुवार को 5 और शव बरामद हुए हैं। इसी के साथ अब तक कुल 9 शव बरामद हो चुके हैं। इसमें दो इंस्ट्रक्टर और 7 ट्रेनीज बताए जा रहे हैं। इनमें एवरेस्ट विजेता सविता कंसवाल और एक इंस्ट्रक्टर नवमी सहित दो की शिनाख्त हो चुकी है जबकि अभी अन्य शवों की पहचान होनी शेष है। इस तरह अभी भी 24 लोग लापता हैं। निम के रजिस्ट्रार विशाल रंजन ने इसकी पुष्टि की है।
बुधवार को हिमस्खलन की चपेट में आए निम के 15 पर्वतारोहियों-प्रशिक्षुओं काे रेस्क्यू किया गया था। इनमें से पांच घायल लोग थे। रेस्क्यू अभियान के पहले दिन मंगलवार को वायु सेना, एसडीआरएफ आदि रेस्क्यू टीमों ने चार शवों को बरामद किया था। इन मृतकों एवरेस्ट विजेता सविता थीं, जिनकी पहचान हुई थी। इसके बाद एक इंस्ट्रक्टर और शिनाख्त हुई लेकिन अन्य शवों की अभी पुख्ता शिनाख्त नहीं हो सकी है। घटनास्थल स्थित बेस कैंप से इन शवों को हेलीकाप्टर के जरिए आईटीबीपी मातली हेलीपैड पर लाया जाएंगा और वहीं पर उनका पोस्टमार्टम किया जाएगा। इसके बाद वहां पर इन शवों को उनके परिजनों को सौंप दिया जाएगा।
नेहरू पर्वतारोहण संस्थान के रजिस्ट्रार विशाल रंजन ने अब तक नौ शवों के मिलने की पुष्टि करते हुए बताया कि इनमें से केवल दो की शिनाख्त हुई है। अन्य की पहचान होना बाकी है। अभी भी 24 लोग लापता हैं। वहां तक अभी तक रेस्क्यू टीमों को पहुंचने में मुश्किल हो रही है।विशाल ने बताया कि ऐसी उम्मीद जताई जा रही है कि आज जम्मू कश्मीर गुलमर्ग की टीम भी घटनास्थल पर पहुंचेगी। केंद्र और राज्य सरकार के प्रयासों से हाई माउंटेन एवरेस्ट आर्गनाइजेशन स्वयंसेवी (एचएडब्ल्यूएस) के 16 सदस्यीय जवानों को हिमस्खलन में फंसे पर्वतारोहियों को निकालने के लिए भेजा गया है। ताकि सभी लापता लोगाें की जल्द से जल्द खोज की जा सके।
क्या होता है हिमस्खलन -
बड़े ग्लेशियरों से बर्फ या पत्थरों के पहाड़ की ऊंचाई से तेजी से नीचे गिरने को हिमस्खलन या एवलांच कहते हैं। इस दौरान भारी मात्रा में बर्फ, पहाड़ की चट्टानें, मलबा, मिटटी जैसे चीजें तेजी से फिसलते हुए नीचे की और आती है। इसमें नीचे ढलान पर मौजूद लोगों का मलबे में दबने का खतरा बढ़ जाता है। इसकी चपेट में आने से जान जाना निश्चित है।
क्यों होता है हिमस्खलन -
हिमस्खलन होने का मुख्य कारण है पहाड़ों पर स्थित बर्फ और चट्टान का ढीला हो जाना। ये दो कारणों से होता है। एक पहाड़ों पर पहले से मौजूद बर्फ पर जब हिमपात की वजह से वजन बढ़ता है, तो बर्फ नीचे सरकने लगती है, जिससे हिमस्खलन होता है। दूसरा गर्मियों में सूरज की रोशनी यानी गर्मी की वजह से बर्फ पिघलने से हिमस्खलन होता है। वहीँ चट्टानों या मिट्टी के स्खलन को भूस्खलन कहते हैं।
किस मौसम में ज्यादा होती है घटना
हिमस्खलन का खतरा सर्दियों में अधिक होता है। इसके दिसंबर से अप्रैल में होने की आशंका अधिक होती है। हिमस्खलन के दौरान नीचे गिरने वाली बर्फ का वजन करीब 10 लाख टन या 1 अरब किलो तक हो सकता है। वहीँ इसकी गति 120 किलोमीटर प्रति घंटे से 320 किलोमीटर प्रति घंटे से भी ज्यादा हो सकती है।