प्रवासी मजदूरों के मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को लगाई फटकार

प्रवासी मजदूरों के मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को लगाई फटकार
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नई दिल्ली। प्रवासी मज़दूरों के मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को इस बात के लिए फटकार लगाई है कि उसने अपने हलफनामे में सब कुछ ठीक होने का दावा किया है। जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार को ये पता लगाना होगा कि प्रवासी मजदूरों को क्या समस्याएं हैं। इस मामले पर अगली सुनवाई 17 जुलाई को होगी।

कोर्ट ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार अगले हफ्ते तक प्रवासी मजदूरों की स्थिति पर विस्तृत रिपोर्ट दाखिल करे। सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने इसे लेकर राष्ट्रीय नीति बनाने की मांग की। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय नीति केवल सिद्धांत में है। हम चाहते हैं कि सॉलिसिटर जनरल इसे रिकार्ड पर लें। तब सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि कोरोना के प्रबंधन को लेकर एक याचिका दायर की जा चुकी है जो सेंटर फॉर पब्लिक इंटेरेस्ट लिटिगेशन ने दायर किया है। तब जस्टिस संजय किशन कौल ने कहा कि ये मामला पहले भी आया था।

कपिल सिब्बल ने कहा कि कानून के मुताबिक एक राष्ट्रीय नीति बनाने की जरूरत है। तब जस्टिस संजय किशन कौल ने तुषार मेहता से कहा कि वे अपने हलफनामे की प्रति कपिल सिब्बल को दे दें। तब मेहता ने कहा कि वे कोविड कंटेंमेंट प्लान की कॉपी सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी दोनों को दे देंगे। तब सिंघवी ने कहा कि हमारा कुछ सुझाव है। मदद और पुनर्वास का काम समन्वय के साथ होना चाहिए। सरकार की योजनाओं के आधार पर ही रजिस्ट्रेशन नहीं हो क्योंकि इससे काफी लोगों का रजिस्ट्रेशन नहीं हो पाएगा। इस पर मेहता ने कहा कि आप हमारे हलफनामे को पढ़ लीजिए, उसमें सारा विवरण मौजूद है।

कोर्ट ने पूछा कि महाराष्ट्र में क्या हो रहा है। महाराष्ट्र में अभी भी काफी संख्या में प्रवासी मजदूर हैं। तब मेहता ने कहा कि 6 जुलाई को ताजा हलफमाना दाखिल किया जा चुका है। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र सरकार ने केंद्र सरकार को बताया है कि कितने प्रवासी मजदूरों को वापस भेजा जा चुका है। तब जस्टिस भूषण ने कहा कि आपका हलफनामा पर्याप्त नहीं है। आप उसमें केवल बयान मत दीजिए। हम आपकी इस दावे को स्वीकार नहीं कर सकते हैं कि महाराष्ट्र में कोई समस्या नहीं है। आप महाराष्ट्र सरकार को नया हलफनामा दाखिल करने को कहिए। तब मेहता ने कहा कि मैं स्वयं हलफनामा देखूंगा। उसमें विस्तृत जानकारी दी जाएगी। सुनवाई के दौरान बिहार सरकार की ओर से कहा गया कि जो मजदूर बिहार वापस गए थे वे अब अपने काम पर लौटना शुरु कर चुके हैं। तब मेहता ने कहा कि ये एक स्वस्थ चीज है। ये इसलिए हो रहा है क्योंकि उद्योग काम करना शुरू कर चुके हैं।

कोर्ट ने पिछले 9 जून को आदेश दिया था कि जो प्रवासी मजदूर लौटना चाहते हैं उन्हें 15 दिन के भीतर भेजा जाए। राज्य की तरफ से मांग के 24 घंटे में श्रमिक ट्रेन उपलब्ध कराई जाए। कोर्ट ने कहा था कि प्रवासी मजदूरों के लिए राज्य सरकारें सहायता केंद्र बनाएं और उन्हें रोजगार के अवसरों के बारे में जानकारी दें। कोर्ट ने कहा कि था मज़दूरों पर दर्ज लॉकडाउन उल्लंघन के केस वापस लिए जाएं। कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को निर्देश दिया था कि वे उन प्रवासी मजदूरों की सूची बनाएं जो अपने कार्यस्थल पर जाना चाहते हैं। सरकारें उन्हें अपने काम पर दोबारा लौटने के पहले में उचित काउंसलिंग करे। कोर्ट ने इस आदेश की अनुपालना रिपोर्ट कोर्ट में दाखिल करने का निर्देश दिया था।

सुप्रीम कोर्ट ने प्रवासी मजदूरों वाली याचिका के साथ ही पीएम केयर्स फंड को मिली रकम को राष्ट्रीय आपदा राहत कोष (एनडीआरएफ) में ट्रांसफर करने की मांग करनेवाली याचिका को भी टैग कर दिया है। ये याचिका सेंटर फॉर पब्लिक इंटेरेस्ट लिटिगेशन की ओर से वकील प्रशांत भूषण ने दायर किया है। याचिका में कहा गया है कि आपदा प्रबंधन अधिनियम की धारा 11 के तहत एक राष्ट्रीय योजना बनाई जाए ताकि कोरोना के वर्तमान संकट से निपटने में कारगर हो। इस योजना में न्यूनतम राहत तय किया जाए। याचिका में कहा गया है कि राष्ट्रीय आपदा राहत कोष का इस्तेमाल कोरोना से लड़ने में किया जाए।

याचिका में कहा गया है कि स्वास्थ्य संकट होने के बावजूद राष्ट्रीय आपदा राहत कोष का इस्तेमाल अथॉरिटीज नहीं कर रही है। पीएम केयर्स फंड का गठन आपदा प्रबंधन अधिनियम की परिधि से बाहर है। याचिका में कहा गया है कि पीएम केयर्स फंड में पारदर्शिता की कमी है। इसका सीएजी ऑडिट नहीं कर सकता है और सूचना के अधिकार कानून की परिधि के बाहर है। ऐसी स्थिति में पीएम केयर्स फंड को राष्ट्रीय आपदा राहत कोष में ट्रांसफर किया जाए ताकि आपदा प्रबंधन अधिनियम के प्रावधानों का पूरा-पूरा पालन किया जाए।

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