गुरूग्राम के अरावली वनक्षेत्र में हुआ प्रकृति और संगीत का मिलन: पंडित ब्रजभूषण गोस्वामी की ‘आलापचारी’ से खिल उठी ‘अरावली पर्वतमाला’...

पंडित ब्रजभूषण गोस्वामी की ‘आलापचारी’ से खिल उठी ‘अरावली पर्वतमाला’...
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गुरूग्राम। विश्व की सबसे पुरानी पर्वत श्रंखला अरावली ने ना केवल युगों और मानव सभ्यता को बदलते देखा बल्कि, उसने संस्कृति को भी जीवंत बनाया है। अरावली के बारे में लोग केवल इतना जानते हैं कि वह एक पर्वत श्रंखला है लेकिन, अरावली सुरों को भी जीवन देता है। यह कोई कोरी कल्पना नहीं बल्कि, धरातलीय सत्य है। रविवार को गुरूग्राम स्थिति अरावली पर्वत श्रंखला के वायुमंडल में शास्त्रीय संगीत के स्वर टकराए।

अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त ध्रुपद गायक पं. ब्रजभूषण गोस्वामी के स्वरों का स्पर्श कर अरावली पर्वतमाला मानों स्वयं नृत्य करती हुई श्रोताओं को दिखायी पड़ी। गुरूग्राम में हरियाली विकसित करने के लिए कार्य कर रहे सामाजिक संगठन आईएम गुड़गांव, दा रिवाइल्डर्स, सामाजिक कार्यकर्ता विजय धस्माना और विख्यात रूद्रवीणा वादक शारदा मुष्ठि के प्रयासों से रविवार को अरावली वनक्षेत्र में ध्रुपद गायन का आयोजन किया गया।

पं.ब्रजभूषण गोस्वामी के ध्रुपद गायन को सुनने के लिए गुरूग्राम, नई दिल्ली, गाजियाबाद, मथुरा, आगरा तक के प्रकृतिप्रेमी और कलाप्रेमी अरावली वन पहुंचे। प्रातः साढ़े सात बजे अरावली वनक्षेत्र के मध्य चट्टानों पर बने मंच पर तानपूरों को मिलाकर जैसे ही पं. ब्रजभूषण ने राग जौनपुरी में आलापचारी शुरू की, श्रोताओं को दिसंबर में राग की गर्मी का अनुभव होना शुरू हो गया।

स्थायी, अंतरा, संचारी व आभोग इन चार खंड़ों की आलापचारी में पं. ब्रजभूषण ने अपनी कल्पना से जौनपुरी के स्वरों का श्रंगार किया, उससे ध्रुपद का कलात्मक, भावपूर्ण व आकर्षक आलाप उभर कर आया। अलापचारी में कोमल गंधार, धैवत और निषाद के स्वरों को आलाप में जिस तरह से छेड़ा जा रहा था, वह पं. ब्रजभूषण की संगीत साधना की झलक मात्र थी। नोमतोम की आलापचारी विलंबित और मध्य होकर जैसे ही द्रुतलय में पहुंची, श्रोताओं की आंखे बंद और वातावरण में पूरी तरह से चमत्कार पैदा हो चुका था।

आलाप के इस बढ़त अंग में पं. कुलभूषण गोस्वामी सारंगी पर जिस कुशलता से पं. ब्रजभूषण का साथ दे रहे थे, उससे भी रस-भाव अरावली वनक्षेत्र में उत्पन्न हो रहा था। आसावरी थाट के राग जौनपुरी के अवरोह में सातों स्वरों का प्रयोग करके पं. ब्रजभूषण ने आलाप के बाद बारह मात्रा की चैताल में निबद्ध ‘पद’ का गायन किया। अष्टछाप के कवि नंददास रचित इस पद के शब्द थे ‘आए श्याम मेरे धाम, श्याम सुंदर घन श्याम’।

पद के शब्द बहुत स्पष्ट थे और स्वरों से मूर्त भी हो रहे थे। पद गायन में पं. ब्रजभूषण कभी कंठ को दबाते तो कभी बारीकी से स्वरों को लगाकर गमक और मीड़ के साथ आंदोलन और हलक-लहक से ‘अनुप्रास’ अलंकार को उत्पन्न कर रहे थे।


जौनपुरी के स्वर शांत होते ही पं. ब्रजभूषण ने राग विलासखानी तोड़ी में एक दूसरा पद ‘हमारो मन लागो फकीरी में’। कबीर का यह पद दस मात्रा की सूलताल में निबद्ध था। पं. ब्रजभूषण ने इस पद के गायन में तीनों सप्तक का खुलकर प्रयोग किया। पं.ब्रजभूषण ने इस राग में कोमल रे, ग, ध, नी स्वरों का इतनी कुशलता से प्रयोग किया कि कुछ श्रोता यह तय नहीं कर पाए कि पं. ब्रजभूषण भैरव गा रहे हैं, या तोड़ी, जबकि वह सुन रहे थे विलासखानी तोड़ी।

खैर अपने गायन का समापन पं. ब्रजभूषण ने राग आसावरी में सात मात्रा की आढ़ा चैताल में निबद्ध पद ‘आज नंदलाल, अतिही रसाल’ सुनाकर किया। इसमें भी कोमल गंधार का पं. ब्रजभूषण ने बहुत सुंदर प्रयोग कर श्रोताओं को आनंदित कर दिया।

पं. ब्रजभूषण गोस्वामी के साथ वरिष्ठ पत्रकार पं. मधुकर चतुर्वेदी ने पखावज पर बखूबी साथ दिया। तानपूरा रोली और रस्तिस्लाव जर्नादन ने बजाया। वैसे भी ध्रुपद बहुत प्राचीन गायकी है और भारतीय शास्त्रीय संगीत की धरोहर है। पं. ब्रजभूषण गोस्वामी जिस मनोयोग के साथ ध्रुपद की सेवा कर रहे हैं, वह युवा संगीतज्ञों के लिए अनुकरणीय है। वर्तमान में ध्रुपद गायन उभर कर आ रहा है।

युवा इससे जुड़ रहे हैं और कई कलाकार ध्रुपद के क्षेत्र में अच्छा भी कर रहे हैं। इन सभी कलाकारों को पं. ब्रजभूषण की आलापचारी ना केवल सुननी चाहिए बल्कि, आत्मसात भी करनी चाहिए, क्योंकि पं. ब्रजभूषण की ध्रुपद आलापचारी जितनी प्राचीन है, उतनी ही नवाचार से भरपूर भी है।

कार्यक्रम में प्रीति संवल्का, निधि कंकन, नम्रता चैधरी, अंजली खत्री, वसुंधरा अग्रवाल, लतिका ठकुराल, स्वांजल कपूर, गायत्री सिंह, विक्रम सिंह आदि का सहयोग रहा।

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