बहराइच: मानवता की पहरेदारी का जज्बा है सत्यव्रत सिंह की रचनाओं में

बहराइच: मानवता की पहरेदारी का जज्बा है सत्यव्रत सिंह की रचनाओं में
निबंध नवनीत के रूप में सत्यव्रत सिंह की गद्य की पहली पुस्तक पाठकों के सामने है। पुस्तक में उनके कई चीजें संकलित हैं।

बहराइच: हिंदी साहित्य को समृद्ध बनाने में अमूल्य योगदान देने वाले साहित्यकार स्वर्गीय सत्यव्रत सिंह की तेरहवीं पुस्तक निबंध नवनीत का विमोचन 01अप्रैल को किसान पीजी कॉलेज बहराइच के प्रशासनिक भवन में संपन्न हुआ। इस पुस्तक का प्रकाशन नालंदा प्रकाशन, दिल्ली द्वारा हुआ है। पुस्तक में छप्पन निबंधों को संकलित किया गया है।

लगभग सात दशक लंबे साहित्यिक जीवन में स्व. सत्यव्रत सिंह ने साहित्य की सभी विधाओं में सक्रिय रहकर योगदान दिया। इस पुस्तक की भूमिका लेखक वरिष्ठ पत्रकार और समीक्षक प्रमोद शुक्ला लिखते हैं कि समाज में शिक्षा का प्रकाश फैलाने वाले कवि व साहित्य मनीषी सत्यव्रत सिंह की काव्य और गद्य रचनाओं में मानवता की पहरेदारी का जज्बा है।

निबंध नवनीत के रूप में सत्यव्रत सिंह की गद्य की पहली पुस्तक पाठकों के सामने है। जिसमें उनके छप्पन निबंध, संस्मरण, पत्र, पत्रोत्तर, व्याख्यान, यात्रा-वृत्तांत, श्रद्धांजलियाँ आदि संकलित हैं। उनका रचनाकार समकालीन समाज में व्याप्त उस अंधेरे का उपभोक्ता है जिसे समाज का व्यापक जनसमुदाय भोग रहा है। भारतीय वांग्मय का अध्ययन उनके स्वभाव में था। भारतीय संस्कारों को उन्होंने बखूबी समझा परंतु उनकी सतर्क दृष्टि कभी आंख मूंदकर उसे स्वीकार करने को तैयार नहीं हुई बल्कि उसके उचित स्वरूप की क्रियान्वयन के ही पक्षधर रही।

समकालीन कवियों में वे सूर्यकांत त्रिपाठी निराला से अधिक प्रभावित थे। सत्यव्रत सिंह खड़ी बोली हिंदी के पोषक रहे हैं। इस निबंध-संग्रह में संकलित अधूरा प्रजातंत्र को परिभाषित करते हुए उन्होंने यह सिद्ध करने की कोशिश की है कि हमारे यहां अभी अधूरा प्रजातंत्र ही आ सका है।

वे लिखते हैं कि नागरिक अधिकारों का अपहरण किसी भी अधिकारी, अनधिकारी द्वारा मनमाने ढंग से किया जा सकता है। न्याय, सुरक्षा और जीविकोपार्जन की सुनिश्चितता, स्वास्थ्य, नागरिक जीवन की आवश्यकता है। पुलिस राज्य से भी इस बात की अपेक्षा की जा सकती है, तब कल्याणकारी राज्य से इसकी कामना क्यों न की जाए। काम,दाम और आराम तीनों जरूरी है। हर भारतवासी इसका अधिकार रखता है। जब तक देश में भयावह गरीबी छाई है और असामाजिक तत्वों का प्राबल्य है तब तक प्रजातंत्र मात्र कोरा आदर्श रहेगा। यह सच्चाई से दूर दिवा स्वप्न ही प्रतीत होगा। हमारा सामूहिक दायित्व है कि इस स्थिति को बदलें अन्यथा हमारी राष्ट्रीय भावनाएं अगली पीढ़ी के लिए भार बन जाएंगी।

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