Dihuli Massacre: दिहुली में हुए नरसंहार की पूरी कहानी, इंदिरा गांधी को करना पड़ा था गांव का दौरा, सजा सुन रो पड़े तीन डकैत

दिहुली में हुए नरसंहार की पूरी कहानी
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दिहुली में हुए नरसंहार की पूरी कहानी

Dihuli Massacre : उत्तरप्रदेश। 15,826 दिन से दिहुली नरसंहार के पीड़ित न्याय का इंतजार कर रहे थे। 18 नवंबर 1981 को डाकुओं ने 24 लोगों की हत्या कर गांव में खून से होली खेली थी। मारे गए लोगों की चीखें जब दिल्ली तक पहुंची तो एक हफ्ते के अंदर अपने सारे काम काज छोड़ तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी गांव पहुंची थीं। यहां उन्होंने मारे गए दलितों के परिवार वालों से वादा किया था कि, दोषियों को सजा अवश्य मिलेगी।

43 साल 4 महीने बाद जब आरोपी बनाए 17 में 13 लोगों की मौत हो गई तो अदालत ने फैसला सुनाया है। इस मामले में आज तक एक आरोपी ज्ञानचंद फरार है। जब अदालत ने नरसंहार में शामिल तीन डाकुओं को फांसी की सजा सुनाई तो वे रोने लगे वहीं दिहुली गांव में दलित परिवारों ने होली खेली गई।

कहते हैं देर से मिला न्याय अन्याय से कम नहीं...फिरोजाबाद के दिहुली गांव में लोग भले ही इस फैसले से खुश हैं लेकिन देरी से मिले इस न्याय का उनके जीवन में अब कोई अर्थ रह नहीं गया। 24 लोगों की हत्या करने वालों को सजा चार दशक बाद हुई है।

आखिर क्यों किया था डाकुओं ने दलितों का नरसंहार :

18 नवंबर 1981 को उत्तरप्रदेश के फिरोजाबाद के दिहुली गांव में डाकुओं ने एंट्री ली और कहा - मारो इन्हें...भून डालों गोलियां से...। 24 दलितों पर तब तक गोलियां चलीं जब तक उनके शरीर से जान न निकल गई हो। औरतें और बच्चें बिलखते रहें लेकिन डकैत बिना रहम किए गोलियां बरसाते रहे।

इस नरसंहार के पीछे की वजह थी गांव वालों का डकैतों के खिलाफ गवाही देना। गिरोह का सरगना था राधेश्याम और संतोष। डकैतों से जुड़े एक मुकदमे में इस गांव के दलित समुदाय के तीन व्यक्तियों ने गवाही दी थी। इस बात से डकैत नाराज थे।

मामला एक पिछड़ी जाति के युवक और एक अगड़ी जाति की महिला की दोस्ती से शुरू हुआ था। डकैत राधेश्याम और संतोष अगड़ी जाति के थे। उनके साथ कई ऐसे डकैत थे जो पिछड़ी जाति के थे। उन्हीं में से एक का नाम था कुंवरपाल। डकैत राधेश्याम और संतोष के गिरोह के कुंवरपाल दलित थे। उनकी एक अगड़ी जाति की महिला के साथ मित्रता की खबर जब राधेश्याम और संतोष को हुई तो दोनों खासा नाराज थे। कुछ समय बाद कुंवरपाल की संदिग्ध अवस्था में मौत हो गई।

इसके बाद पुलिस ने कुंवरपाल हत्याकांड मामले में राधेश्याम और संतोष के गिरोह के दो लोगों को गिरफ्तार किया और भारी मात्रा में हथियार जब्त किए। पुलिस ने इस मामले में दिहुली गांव के जाटव समुदात (दलित) के तीन लोगों को गवाह बनाया था। जब इस बात का पता डकैतों को लगा तो उन्होंने बदला लेने के लिए दिहुली में नरसंहार किया।

3 घंटे की थी फायरिंग :

सहायक जिला सरकारी वकील रोहित शुक्ला के मुताबिक 18 नवंबर 1981 की शाम पांच बजे के करीब थाना जसराना क्षेत्र के दिहुली गांव में हथियारबंद बदमाशों ने घुसकर अनुसूचित जाति बस्ती में हमला बोल दिया था। घरों में मौजूद महिलाओं, पुरुष और बच्चों पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसाना शुरू कर दी थीं। बदमाशों ने तीन घंटे तक फायरिंग की थी। इस फायरिंग में 23 लोगों की मौके पर ही मृत्यु हो गई थी, जबकि एक घायल की इलाज के दौरान फिरोजाबाद अस्पताल में जान चली गई थी। इस नरसंहार से उस समय सरकार, शासन-प्रशासन हिल गया था।

17 लोगों के खिलाफ दर्ज हुई थी एफआईआर :

वकील शुक्ला ने बताया कि घटना की एफआईआर दिहुली के रहने वाले लायक सिंह ने 19 नवंबर को जसराना थाने में की थी। FIR में राधेश्याम उर्फ राधे, संतोष चौहान उर्फ संतोषा, रामसेवक, रविंद्र सिंह, रामपाल सिंह, वेदराम सिंह, मिट्ठू, भूपराम, मानिक चंद्र, लटूरी, रामसिंह, चुन्नीलाल, होरीलाल, सोनपाल, लायक सिंह, बनवारी, जगदीश, रेवती देवी, फूल देवी, कप्तान सिंह, कमरुद्दीन, श्यामवीर, कुंवरपाल और लक्ष्मी का नाम था।

मामले की कुछ दिन जिला न्यायालय में सुनवाई चली लेकिन डकैती न्यायालय न होने के बाद केस प्रयागराज भेज दिया गया था। वहां सुनवाई के बाद मामला फिर से मैनपुरी स्पेशल जज डकैती न्यायालय भेज दिया गया था।

इंदिरा गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी भी दिहुली आये :

उत्तरप्रदेश में वीपी सिंह की सरकार इस घटना के चलते सवालों के घेरे में थी। कानून व्यवस्था के सवाल दिल्ली की सड़कों तक पहुंच गए थे। उस समय भारत की प्रधानमंत्री रहीं इंदिरा गांधी, मुख्यमंत्री और केंद्रीय गृहमंत्री के साथ दिहुली गांव पहुंची थी। यहां उन्होंने लोगों को ढांढस बंधाया और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने का वादा भी किया था। इस नरसंहार के बाद जब दलित परिवार के लोग गांव छोड़कर जाने लगे तो सुरक्षा बल के जवान गांव में कैम्प डालकर रहने लगे। इंदिरा गांधी के अलावा अटल बिहारी वाजपेयी भी दिहुली गांव पहुंचे थे। उन्होंने पीड़ित दलित परिवार के लोगों से मुलाकात कर सरकार से सख्त कार्रवाई की मांग की थी।

खुद को निर्दोष बताते रहे डकैत :

कोर्ट ने पिछले दिनों दोषी करार दिए गए कप्तान सिंह, रामसेवक और रामपाल को फांसी की सजा सुनाई है। इसके साथ ही तीनों पर 50–50 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया है। इसके पहले मंगलवार सुबह दोषियों को पुलिस अभिरक्षा में मैनपुरी के न्यायालय में पेश किया गया। कोर्ट में जाते समय तीनों दोषियों ने अपने आपको निर्दोष बता रहे थे।

15 साल से मैनपुरी में चल रही थी सुनवाई :

मामले की सुनवाई मैनपुरी में 15 सालों से चल रही है। 11 मार्च को डकैती न्यायालय की न्यायाधीश इंदिरा सिंह ने तीनों आरोपियों को सामूहिक हत्याकांड का दोषी करार दिया था। मंगलवार को दोषी कप्तान सिंह, रामसेवक और रामपाल न्यायालय में उपस्थित हुए। कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें और गवाहों की गवाही के बाद तीनों दोषियों को फांसी की सजा सुनाई।

इनकी हुई थी हत्या :

राम दुलारी, श्रृंगार बती, शांति, राजेंद्र, रामसेवक, राजेश, ज्वाला प्रसाद, राम प्रसाद, शिव दयाल, भुवनेश, भारत सिंह, दाता राम, लीलाधर, मानिक चंद, भूरे, कुमारी शीला, मुकेश, धन देवी, गंगा सिंह, गजाधर, प्रीतम सिंह, आशा देवी, लालता राम, गीतम।

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