बीमारों के लिए योगी आदित्यनाथ होने के मायने

बीमारों के लिए योगी आदित्यनाथ होने के मायने
अनिल कुमार

वेब डेस्क। एक आम आदमी की जिंदगी में गंभीर बीमारियां किस हद तक तूफान उठाती हैं, आर्थिक रूप से किस कदर तोड़ देती हैं, इसे केवल वही महसूस कर सकता है, जो इससे गुजरा हो। गरीब, किसान, मजदूर, छोटे- मोटे धंधे करने वाले लोग कैंसर, लीवर, हृदय समेत कई अन्य जटिल बीमारियों की चपेट में आकर मरने से ज्यादा अस्पतालों और दवाईयों के खर्च में बरबाद हो जाते हैं। कई लोगों की जमीन-मकान तक बिक जाते हैं और जिनके पास यह भी नहीं होता है, वह तो अपने मरीज को आंखों के सामने मरते देखने के अलावा कुछ नहीं कर पाता है, लेकिन जब सूबे का मुखिया संवेदनशील हो तो गरीब भी जीने की उमीद करने लगता है। मुयमंत्री योगी आदित्यनाथ ने साबित किया है कि वह गरीबों को लेकर कितने संवेदनशील हैं। बीमारों की मदद करने में वह कितने शाहखर्च हैं! दलितों एवं गरीबों की मसीहा मायावती ने अपने पांच साल के कार्यकाल में मुयमंत्री विवेकाधीन कोष से 18,462 लोगों को 84.36 करोड़ रुपये की मदद की। पिछड़ों एवं मुसलमानों के अगुआ अखिलेश यादव ने अपने पांच साल के कार्यकाल में 42,508 लोगों को 552.9 करोड़ रुपये की मदद की, जबकि एक मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 31 जनवरी 2022 तक 82,246 लोगों को 13 अरब 20 करोड़ से ज्यादा की मदद दी है।


वित्तीय वर्ष खत्म होते होते यह आंकड़ा और बढ़ेगा। यह मदद दोनों सरकारों में की गई मदद से भी बहुत ज्यादा है। यह आंकड़ा बताता है कि योगी आदित्यनाथ गरीब और कमजोर तबके के लिये कितने संवेदनशील हैं। यह धनराशि ना तो मायावती को अपने घर से देनी थी, ना अखिलेश को और ना ही योगी आदित्यनाथ को, कोई कुछ भी बांट सकता था, लेकिन व्यक्ति की संवेदना उसकी प्राथमिकता तय करती है। योगी की प्राथमिकता बीमार की मदद करनी थी, उन्होंने किया। इसमें किसी भी तरह का भेदभाव की गुंजाइश भी नहीं है। जो भी मरीज सरकार से सहायकता मांगता है, उसे जरूर मिलता है। इस 13 अरब से बहुत से विकास कार्य कराये जा सकते थे, लेकिन योगी के लिये एक गरीब का जीवन महत्वपूर्ण था इसलिये उन्होंने इस मद में जमकर खर्च किया। अगर महत्वपूर्ण कुर्सी पर संवेदनशील और ईमानदार व्यक्ति बैठा हो तो उसका रिजल्ट यही होता है, जो मुयमंत्री विवेकाधीन कोष को खर्च करने में हुआ। इसके पहले लोगों के स्वास्थ्य सुविधाओं के लिये आये धन का सीधे बंदरबांट हो जाता था। एनआरएचएम बेहतर उदाहरण है। गंभीर बीमारियों के इलाज में धन का अभाव कितना तकलीफदेय होता है, यह मुझसे बेहतर कोई समझ नहीं सकता। मैंने इस मुश्किल को झेला है।

Tags

Next Story