अवैध कॉलोनियों को वैध करने के साथ भ्रष्टों को कसा जाना भी जरूरी
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मध्यप्रदेश शासन द्वारा अवैध कॉलोनियों को वैध घोषित किया जाना मध्यम निम्न वर्ग को राहत पहुंचाने वाला कदम है, इसमें किसी भी प्रकार का संशय शेष नहीं है। इस घोषणा के होने से अब उन रहवासियों को सड़कें, नालियां, स्ट्रीट लाइट, सीवर लाइन, जैसी मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध होने लगेंगी, जो अब तक अवैध कालोनियों के रहवासी होने से उपरोक्त सभी उपलब्धताओं से महरूम बने हुए थे। गौर से देखा जाए तो यह उनकी मजबूरी ही थी कि उन्होंने अवैध कॉलोनी में प्लॉट खरीदे। क्योंकि यह प्लॉट डायवर्टेड अथवा टाउन एंड कंट्री प्लानिंग द्वारा एप्रूव्ड कालोनियों की अपेक्षा सस्ते भी मिल गए। इन सब ने ऐसा इसलिए किया, क्योंकि ये गरीबी की रेखा से नीचे ना होने के चलते शासन की अधिकांश राहतदायी योजनाओं से महरूम ही बने रहे। ये मध्यमवर्गीय भी नहीं हैं जो थोड़े महंगे प्लाट अथवा मकान खरीद पाते।
दरअसल अवैध कॉलोनियों में रहने वाले मध्यम और निम्न वर्ग के बीच के ये वो लोग हैं, जिन्हें अपने घर का सपना देखना आज भी दुरूह ही बना हुआ है। यही वजह है कि आर्थिक रूप से निरीह ऐसे लोग येन केन प्रकारेण अपने स्वामित्व की छत तले सुरक्षा का एहसास करना चाहते हैं। इनकी इसी मजबूरी का फायदा अवैध कॉलोनियों के भ्रष्ट कॉलोनाइजर, राजस्व एवं पंजीयन विभाग के भ्रष्ट अफसर, बाबू उठाते हैं। इन्हीं के गठजोड़ से कमजोर तबके को ध्यान में रखकर अवैध कालोनियां काटी जाती हैं। आय के रूप में जो नाजायज पैसा बरसता है, वह इन भ्रष्ट और बेईमान लोगों के बीच ईमानदारी के साथ बंट जाता है। कहीं-कहीं इन काले कारोबारों में सत्ता अथवा विपक्ष के जनप्रतिनिधियों की भागीदारी भी इन्हें मजबूती प्रदान करती नजर आती है।
अतः यह लिखने में कतई संशय नहीं है कि अवैध कालोनियों को वैध घोषित करने से जितना फायदा उपभोक्ताओं को पहुंचने वाला है, उससे कई गुना अधिक बेईमान कालोनाईरों, राजस्व एवं पंजीयन विभाग के भ्रष्ट बाबू, अफसरों के साथ-साथ इन्हें संरक्षण देने वाले नेताओं, जनप्रतिनिधियों को पहुंचने जा रहा है। इस घोषणा से सृजित होने वाले कथित जनहित के साथ एक सवाल भी उठता है। वो यह कि यदि अवैध कालोनियों को वैध करना ही था तो फिर उन लोगों ने क्या कसूर कर दिया, जिन्होंने महंगे प्लाट अथवा भवन इसलिए खरीदे क्योंकि उन्हें अपनी संपत्ति पर अवैध होने का कलंक नहीं चाहिए था। साथ में उन कालोनाइजरों के बारे में भी गंभीरता के साथ चिंतन करने की आवश्यकता है, जिन्होंने अपनी कालोनी को वैध कराने के लिए जमीन का डायवर्सन कराया, विधिवत टाउन एंड कंट्री प्लानिंग की अनुमति ली। यदि शासन प्रशासन के नियम अनुसार पार्क, सड़क, नाली, सामुदायिक भवन, स्कूल जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिए जमीन छोड़ना पड़े तो वह भी छोड़ी, कर के रूप में एक बड़ी रकम का ईमानदारी से भुगतान किया।
लेकिन आज केवल एक शासकीय घोषणा ने उन बेईमानों और भ्रष्टों को इन ईमानदारों के समकक्ष ला खड़ा किया, जिन्होंने भारी पैमाने पर जरूरतमंदों को लूटा और सरकारी खजाने को भी जी भर कर नुकसान पहुंचाया। इसलिए अपेक्षा की जाती है कि सरकार को इस तरह की घोषणाएं करने से पूर्व उन स्याह पक्षों पर भी गौर कर लेना चाहिए जो भारतीय नौकरशाही और लोकतंत्र के नाम पर कलंक साबित होते रहे हैं। चूंकि सब कुछ सार्वजनिक हो चुका है, तो फिर अब सरकार द्वारा कदम पीछे हटाने का सवाल ही पैदा नहीं होता। फिर भी उन संभावनाओं पर गौर जरूर किया जाना चाहिए, जिनके सहारे जनता के हित और बेईमानों, भ्रष्टों की मुनाफाखोरी के बीच के फर्क को स्पष्ट किया जा सके। बल्कि इस घोषणा के साथ साथ सरकार को यह प्रावधान भी करना चाहिए कि जिन बेईमान कालोनाईजरों ने अवैध कालोनियां काटकर अनाप-शनाप मुनाफा कमाया तथा जिन भ्रष्ट बाबू, अफसरों, नेताओं और जनप्रतिनिधियों ने इन्हें संरक्षण प्रदान किया, इनसे अवैध कालोनियों को वैध करने के चलते जो नुकसान होने वाला है, उसकी पूरी क्षतिपूर्ति ब्याज अथवा जुर्माना सहित वसूल की जा सके।
यदि शासकीय स्तर पर पूरी कड़ाई के साथ ऐसा होता है तो फिर उम्मीद की जा सकती है कि भविष्य में लोग अवैध कालोनियों में प्लाट खरीदने के लिए मजबूर नहीं होंगे और ना ही मुनाफाखोर कालोनाइजर अवैध कालोनियां काटने की हिमाकत कर पाएंगे। सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि सरकारों को वैध और अवैध के बीच माथापच्ची करने से हमेशा हमेशा के लिए छुटकारा भी मिल जाएगा। सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचने की आशंकाएं जड़ से खत्म की जा सकेंगी, सो अलग।