"न्याय: मम् धर्मः" अंतिम छोर के व्यक्ति को न्याय दिलाना ही अधिवक्ता परिषद का मूल उद्देश्य

न्याय: मम् धर्मः अंतिम छोर के व्यक्ति को न्याय दिलाना ही अधिवक्ता परिषद का मूल उद्देश्य
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दीपेन्द्र सिंह कुशवाह, एडवोकेट

भारत अपनी तमाम अच्छाईयों के कारण विदेशी आक्रान्ताओं के आकर्षण का केन्द्र रहा है भारत के उपर जितने भी आक्रमण हुये उन्होने न ही हमारे देश को लूटा वरन हमारी संस्कृति, सभ्यता, न्यायव्यवस्था, जीवन शैली को नष्ट करने की भरपूर कोशिश की किन्तु हमने अपनी आन्तरिक इच्छाशक्ति के कारण अपनी संस्कृति को बचाये रखेे तथा एक अच्छे सुप्रभात की तरह सन् 1947 में जब भारत ने आजादी प्राप्त की तब हमें महसूस होने लगा कि हमारी अपनी न्यायप्रणाली होगी जिसमें भारतीय दृष्टिकोण का समावेश होगा किन्तु कालान्तर में जो परिणाम सामने आये वो निराशाजनक ही रहे है पिछले 75 वर्षो में हमने देखा कि देश में केवल सत्तापरिवर्तन हुआ है व्यवस्था का मूल स्वरूप आज भी अग्रेजी शासन जैसा ही है भारतीय न्यायप्रणाली भी इसका जीता जागता उदाहरण है इन परिस्थतियों के बीच देश के कुछ विचारकों ने तय किया कि देश में अधिवक्ताओं का एक ऐसा सामाजिक संगठन खडा होना चाहिये जो कि न्यायव्यवस्था को देशानुकूल बनाने के लिये प्रयास करे। इसी बीच सन् 1975 में एक ऐसा घटनाक्रम हुआ जिसने भारतीय लोकतंत्र की जडे हिला दी, सही मायने में देखा जाये तो वह भारतीय प्रजातंत्र के उपर एक हमला था उसी समय देश के अनेक हिस्सों में राष्ट्वादी सोच रखने वाले अधिवक्ताओं ने अलग अलग नाम से अलग अलग प्रान्तों में संगठन बनाकर काम करना प्रारंभ कर दिया, इसी कालखण्ड में एक समाजसेवी एंव श्रेष्ठ विचारक माननीय दन्तोंपंत जी लेकर 1976 तक राज्यसभा के सदस्य भी थे देश में चल रहे सम्पूर्ण घटनाक्रम पर गहराई से चिन्तन कर रह थे तब उनके मन में यह विचार आया कि अधिवक्ताओं का एक ऐसा संगठन बने जो समाज के अन्तिम छोर के व्यक्ति की बात ससंद तक आसानी से पहुंचाने का काम करे ।

7 सितम्बर 1992 को देश भर के राष्ट्वादी विचारों के लगभग 200 अधिवक्ताओं की एक बैठक दिल्ली में बुलाई गई जिसमें माननीय दन्तोंपंत जी ठेंगडी ने अपने उद्बोधन में कहा कि अधिवक्ताओं का एक ऐसा संगठन बने जिसमें राष्ट्वादी सोच हो, सामाजिक उत्तरदायित्व का भाव हो तथा जो अपनी बौद्धिक शक्ति से एक्टिविस्ट के रूप में समाज में काम करे । देश में काफी गरीबी है एंव सामाजिक असमानता है समाज के अन्दर सामाजिक चेतना को जागृत करना, मानवाधिकार, पर्यावरण, स्त्री पुरूष समानता, सामाजिक न्याय के विषयों एंव संसदीय लोकतंत्र में हमारी क्या भूमिका हो सकती है इन्ही सब विषयों पर काम करने वाले अधिवक्ताओं का एक संगठन बनना चाहिये। देखा जाये तो यही भारतीय विचार है पुरातन काल से हमारे पूर्वज भी इन्ही विषयों पर काम करते आये है । जहां सतयुग में भक्त प्रहलाद को न्याय दिलाने के लिये भगवान विष्णु ने नरसिहं का अवतार लेकर हिरणाकश्यप का वध किया वहां त्रेता युग में हमारे पूर्वज भगवान श्रीराम ने बनवासियों के बीच में जाकर न केवल उनको आत्मनिर्भर बनाया बरन आत्मसम्मान के साथ जीना भी सिखाया वहीं केवट व सबरी से मिलकर सामाजिक समानता का श्रेष्ठ उदाहरण प्रस्तुत किया । द्वापर में जहां भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा न केवल कंस के अत्याचारों से समाज को मुक्ति दिलाई वरन नरकासुर द्वारा बन्दी बनाई गई 16100 महिलाओं को जेल से मुक्त कराकर उनके साथ अपना नाम जोडकर उन्हें आत्मसम्मान के साथ जीने का अवसर प्रदान किया । 16वी सदी में 01 सितम्बर 1574 को गुरु सिक्ख परंपरा के तीसरे गुरु अमरदास जी द्वारा लंगर प्रथा का प्रारंभ कर सामाजिक समरसता का श्रेष्ठ उदाहरण प्रस्तुत किया है जो आज भी जीवंत है । आज से लगभग 100 वर्ष पूर्व भी सतीप्रथा के विरूद्ध आन्दोलन में जहां राजाराममोहन के साथ न्यायमूर्ति श्री रांगडे, न्यायमूर्ति श्री तेलंग एंव न्यायमूर्ति श्री चन्द्रावर जैसे लोगों ने एक साथ काम कर सती प्रथा जैसी कुरीती से मुक्ति दिलाई । आज भी ज्यूडिशियल एक्टिविज्म के रूप में हमारे न्यायालय के कई न्यायमूर्तिगण विभिन्न विषयों पर समाज के बीच में जाकर काम कर रहे है । इन सब विचारों को ध्यान में रखते हुये सन् 1992 में अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद की स्थापना हुई जहॉ प्रान्तों में आज भी अधिवक्ता परिषद अलग अलग नामों से काम करती है किन्तु वे सभी अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद से जुडे हुये है ।

न्याय मम् धर्मः अर्थात न्याय दिलाना ही मेरा धर्म है इस ध्येय वाक्य के साथ अधिवक्ता परिषद ने काम करना प्रारंभ किया । सन् 2000 में अधिवक्ता परिषद का संविधान बनकर तैयार हुआ साथ ही उसमें कुछ अलिखित मर्यादायें भी तय की गई जिसमें अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद एक गैर राजनैतिक संगठन के रूप में काम करेगा तथा कोई चुनाव लडने वाली संस्था नहीं होगी न ही अधिवक्ता परिषद की अभिभाषक संघों से कोई प्रतिद्वंदता होगी तथा अधिवक्ता परिषद निरपेक्ष भाव से अधिवक्ताओं को साथ लेकर समाज के अन्तिम छोर के व्यक्ति को न्याय दिलाना ही अधिवक्ता परिषद का मूल उद्देश्य होगा । अभिभाषक संघ मजबूत बने तथा अधिवक्ताओं का बोद्धिक स्तर ऊँचा हो इसके लिये अधिवक्ता परिषद अपनी प्रत्येक इकाई में स्वाध्याय मंण्डल चलाती है । वही समाज के अन्तिम छोर के व्यक्ति को न्याय दिलाने हेतु अधिवक्ता परिषद द्वारा देश भर में न्याय केन्द्रो की स्थापना की गयी है जिनका कोई नहीं उनके हम इस ध्येय को लेकर अधिवक्ता परिषद द्वारा देश भर में काम चल रहा है । आज भारतीय समाज में अधिकांश वर्ग ऐसा है जिनके लिये कोर्ट पहुंचना काफी मुश्किल है । रामसेतु व रामजन्म भूमि के प्रकरण जो भारतीय जनमानस की आस्था से जुडे हुये थे उनका पक्ष अधिवक्ता परिषद द्वारा माननीय सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष रखा गया वहीं पूर्वोत्तर भारत में कस्टमरी लॉ को कोडीफाइड करने का काम अधिवक्ता परिषद द्वारा किया जा रहा है । वर्तमान में गरीबी, अशिक्षा व सामाजिक असमानता को दूर करना हमारे लिये चुनौती है । वहीं लोगों को त्वरित न्याय मिले यह न केवल न्यायपालिका वल्कि अधिवक्ताओं की नैतिक जिम्मेदारी भी है जिस पर अधिवक्ता परिषद काम कर रही है। न्याय का स्वरूप, न्याय प्राप्ति के साधन, न्याय प्रशासन की प्रणाली एंव प्रक्रिया सुगम, सहज, स्वभाविक एंव गतिशील होगी तो समाज की आस्था उस व्यवस्था के प्रति उतनी ही दृढ होगी । इसी आस्था के सहारे समाज में शान्ति व सुरक्षा स्थापित होगी और राष्ट् शक्तिशाली और समृद्धशाली होगा जिसके परिणाम स्वरूप समस्त विश्व में उस राष्ट् की एक अलग पहचान बनती है ।

वर्तमान समय में अधिवक्ता परिषद की प्रासंगकिता इसलिये भी हो जाती है क्योंकि उच्चतम न्यायालय के माननीय मुख्य न्यायमूर्ति जी द्वारा जहां एक तरफ संकेत दिया गया है कि संसद में बनने वाले कानूनों पर चिन्तन की आवश्यकता है जिससे न्यायपालिका का भार कम हो तथा भारतीय जनमानस का न्याय व्यवस्था के प्रति विश्वास कायम रहे ।

अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद लगभग 30 वर्षो से न्यायिक क्षेत्र में कार्य कर रही है आज कानून, न्यायप्रणाली एंव संस्थागत ढांचा में परिवर्तन करने की आवश्यकता है क्योंकि कानून समाज को चलाने के लिये मनुष्यों द्वारा निर्मित किया जाता है न कि कानून द्वारा मनुष्य निर्मित किये जाते है कानून ऐसे होने चाहिये जो समाज के सहज स्वीकार्य हो। यदि समाज के अन्तिम छोर का व्यक्ति सुखी एंव समृद्ध होगा तभी हम विश्व के सामने एक शक्तिशाली एंव समृद्धशाली राष्ट् के रूप में खडे हो पायेंगे। आज अधिवक्ता परिषद के कार्यकर्ता राष्ट् के पुनर्निर्माण में सफलता पूर्वक अपना महत्वपूर्ण रोल अदा कर रहे है अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद अभिभाषकों की ऐसी संस्था है जो न केवल अभिभाषकों के हितों का संरक्षण करती वल्कि वह जरूरतमंद भारत के निर्माण का मुख्य केन्द्र विन्दु बनने हेतु पूर्णतः समर्थ एंव आतुर है ।

(दीपेंद्र सिंह कुशवाह, राष्ट्रीय मंत्री, अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद)


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