आदि क्रांतिकारी: वासुदेव बलवंत फड़के

आदि क्रांतिकारी: वासुदेव बलवंत फड़के
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शिवकुमार शर्मा

वेबडेस्क। मातृभूमि की सेवा के लिए जोरदार जज्बा था। जंग का जुनून जिनके जहन में हिलोरें मारता था। परिवार,घरद्वार, धन-संपत्ति सब कुछ त्याग कर ,एक ही सपना, एक ही ख्वाब और एक ही लक्ष्य "आजादी" जिसके लिए जीवन की आहुति देकर इतिहास में नाम अमर कर गए। भारत की आजादी के क्रांतिवीरों की श्रृंखला में बासुदेव बलवंत फड़के का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है। उनके द्वारा अपूर्व साहस के साथ किए गए फिरंगी सरकार के विरोध का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्हें पकड़ने के लिएऔपनिवेशिक सरकार द्वारा 50हजार का इनाम घोषित करना पड़ा था। कंपनी सरकार में इतना खौफ समाया हुआ था कि वासुदेव बलवंत फड़के को बंदी बनाए जाने के बाद यदि महाराष्ट्र की जेल में भी रखा जाता है तो विरोध न भड़क जाए ।अंग्रेजों के सामने उन्हें बंदी बनाना एक बड़ी चुनौती थी ।अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध उनके द्वारा उठाए गए क्रांतिकारी कदमों के आधार पर उन्हें "आदि क्रांतिकारी" भारतीय सशस्त्र विद्रोह के जनक आदि नामों से भी जाना जाता है।

वासुदेव बलवंत फड़के का जन्म 4 नवंबर 1845 में महाराष्ट्र के रायगढ़ (वर्तमान कोलाबा जिला )के पनवेल तालुका अंतर्गत बलवंत फड़के एवं सरस्वती वाई के यहां हुआ था। वह कुशाग्र बुद्धि की धनी थे प्रारंभिक शिक्षा के बाद उनके पिता चाहते थे कि वे अपनी आगे की पढ़ाई न करें तथा दस रुपये मासिक वेतन पर किसी दुकान पर नौकरी कर ले ,जिससे घर गृहस्ती का खर्चा चल सके परंतु उन्होंने आगे पढ़ाई जारी रखने का मन बना लिया था ,फल स्वरूप घर छोड़कर मुंबई चले गए ।वहां बीस रुपये मासिक पर नौकरी भी की और पढ़ाई जारी रखी ।मुंबई प्रेसिडेंसी में ब्रिटिश -स्थापित संस्थान से स्नातक तक की पढ़ाई पूरी करने वाले शुरुआती व्यक्तियों में से एक थे । क्रांतिकारी लहूजी वस्ताद साल्वे जोकि विशेषज्ञ पहलवान थे तथा कुश्ती की तालीम के लिए प्रशिक्षण केंद्र संचालित करते थे। उन्हें फड़के जी ने गुरु बनाया । सालवे जी ने फड़के को पिछड़ी जातियों को मुख्यधारा के स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल करने का महत्व सिखाया। बाल गंगाधर तिलक से अस्त्र-शस्त्र चलाना सीखे। उन्होंने महात्मा ज्योतिबा फुले से भी भेंट की। जीविका चलाने के लिए मिलिट्री फाइनेंस डिपार्टमेंट में नौकरी की। उन्होंने28 वर्ष की आयु में शादी की। पहली पत्नी की आकस्मिक मृत्यु होने के कारण दूसरी शादी की।माता के निधन की खबर मिलते हीवे अंग्रेज अधिकारी के पास छुट्टी मांगने गए तो उन्होंने अपमान पूर्वक मना कर दियाफिर भी फड़के जी गांव चले गए ।माता जी के अंतिम दर्शन किए, उनका अंतिम संस्कार किया। इस घटना ने उनके हृदय में अंग्रेजों के विरुद्धअत्यधिक घृणाऔर आक्रोश भर दिया था ।

1857 की क्रांति के विद्रोह का बदला अंग्रेजों ने जिस प्रकार लिया था वह भी उनके दिलो-दिमाग पर छाया हुआ था। क्रांतिकारियों पर किए गए अत्याचार के दृश्य उनके मानस पटल में उसी समय विद्रोह का बीजारोपण हुआ। 1870 में महादेव गोविंद रानाडे के व्याख्यान में भाग लेना शुरू किया। व्याख्यानों का मुख्य विषय था "औपनिवेशिक सरकार की आर्थिक नीतियों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को कैसे क्षति पहुंचाई" वे नौकरी के दौरान भी गांव गांव जाकर लोगों को इस विषय के बारे में जागरूक करते रहे। श्री लक्ष्मण नरहर इंद्रारापुरकर और बामन प्रभाकर भावे के साथ 1860में पुणे नेटिव इंस्टिट्यूट की स्थापना की ,जिसे बाद में महाराष्ट्र एजुकेशन सोसाइटी नाम दिया गया जो 77 संस्थाएं संचालित करता है। भयंकर अकाल का सामना कर रहे दक्कन यात्रा की ।अकाल पीड़ितों की मदद के लिए सरकारी खजाने लूटे। रामोशी जाति का 300 लोगों का एक समूह बनाया ।उन्हें सरकार के विद्रोह के लिए प्रशिक्षण कर तैयार किया ।समूह में कोली, भील एवं धनगर जाति के लोग भी शामिल हुए। उनकी प्रबल इच्छा थी कि स्वयं सेना बनाई जाए परंतु धन अभाव के चलते संभव नहीं हो सका। सरकारी खजाने लूटकर अकाल प्रभावितों की मदद करते रहे। फिरंगी सरकार के मेजर हेनरी विलियम डेनियल और हैदराबाद के निजाम के पुलिस कमिश्नर अब्दुल हक ने दिन-रात भागते हुए फड़के जी का पीछा किया। अंग्रेज सरकार द्वारा घोषित इनाम के लालची ने धोखा देकर उन्हें पकड़वा दिया।बचाव पक्ष में महादेव आप्टे एवं सार्वजनिक काका गणेश वासुदेव जोशी ने बचाव पक्ष का जिम्मेदारी ली परंतु अंग्रेजों की नजर में देशभक्तोंअपराधी ही माना जाता था। इस महान क्रांतिकारी और भारत मां के सच्चे सपूत को काले पानी की सजा दी गई 37 वर्ष की आयु में आखरी सांस तक भारत की आजादी की लड़ाई को जिया। 17फरवरी 1883 को काला पानी में ही जीवनाहुति पूर्ण की। भारत भूमि में जन्मे महान क्रांतिकारी पर फक्र है। राष्ट्र उनके योगदान का ऋणी है।


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