राष्ट्रीय आंदोलन में नागरिकों को जागरूक करने का माध्यम बनी आगरा की पत्रकारिता
वेबडेस्क। पत्रकारिता और स्वतंत्रता एक दूसरे के पूरक हैं। यदि हम भारतीयों का स्वतंत्रता प्रेम नहीं होता तो, पत्रकारिता का विकास सम्भव नहीं था। उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में भारतीय कला, उद्योग, शिक्षा, सामाजिक समरसता को ईस्ट इण्डिया कंपनी ने कुचल दिया था। प्राचीन भारतीय शिक्षा-पद्धिति को समाप्त कर दिया था। स्वाद, भाषा, विचार, शब्दों पर अंग्रेज और अंग्रेजी का प्रभाव बढ़ रहा था। ऐसे में समाज को भारतीयता के प्रबोधन का दायित्व पत्र-पत्रिकाओं ने संभाला। चूंकि आगरा कई शताब्दियों से विदेशी आक्रमणकारियों के केंद्र में रहा। इसलिए भारतीयों में प्रबोधन का कार्य इन विदेशी आक्रमणकारियों की नाक के नीचे पत्र-पत्रकाओं के माध्यम में आगरा में बड़े स्तर पर हुआ। स्वतंत्रता आंदोलन के कालखंड में आगरा से सैकड़ों पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन हुआ। आगरा की पत्रकारिता ने इस कालखंड में ब्रजक्षेत्र की सामाजिक, राजनीतिक जीवनधारा को गहराई से प्रभावित कर बौद्धिक चेतना पैदा करने में र्प्रभावी भूमिका का निवर्हन किया। पत्रकारों ने जनता को उनकी संस्कृति के गौरव का स्मरण कराया, जिसके कारण उनमें राष्ट्रीय नवजागरण हुआ।
सन् 1852 में आगरा से सर्वप्रथम 'बुद्धि प्रकाश' का प्रकाशन हुआ। बुद्धि प्रकाश पत्रकारिता की दृष्टि से ही नहीं, भाषा एवं शैली के विकास के विचार से भी महत्व रखता है। यह लाला सदासुखलाल के संपादकत्व में प्रकाशित हुआ। इस पत्र की दो सौ प्रतियां प्रतिदिन अंग्रेजी सरकार खरीदती थी। बुद्धि प्रकाश में इतिहास, भूगोल, शिक्षा, गणित पर सुंदर लेख प्रकाशित होते थे। इसकी भाषा की प्रशंसा आचार्य रामचंद्र शुल्क ने भी की है। सन् 1855 में आगरा से ही पीपलमंडी निवासी शिवनारायण ने 'सर्वहितकारक' हिन्दी पत्र निकाला। इसी वर्ष माईथान निवासी पं. वंशीधर ने हिन्दी में 'भारत खंडामृत' पत्र का प्रकाशन किया। इसमें पर्यावरण के साथ-साथ बाल कविताओं को प्रकाशित किया जाता था। भारतीय दर्शन पर मराठी पुस्तकों के अनुवाद भी इस पत्र में खूब प्रकाशित हुए। सन् 1841 में आगरा गजैटियर का तीन खंडों में प्रकाशन और टॉमस विलियम के ग्रंथ का मुद्रण भी 1849 में आगरा हुआ। 1861 में राजा लक्ष्मणसिंह ने 'अभिज्ञान शाकुन्तलÓ का हिन्दी में प्रकाशन किया। यह पत्र उस दौर में अपनी हिन्दी की शुद्धता के लिए ख्यातिप्राप्त है। 1861 में वजीरपुरा निवासी राजा लक्ष्मणसिंह ने 'प्रजाहितैषीÓ पत्र निकाला था। 1863 में सिकंदरा से 'लोकमित्र'और 1867 में सिकंदरा से ही 'ज्ञानदीपकÓ मासिक पत्रों का प्रकाशन हुआ। 1863 में मुंशी शिवनारायण के पत्रों का प्रकाशन 'आराम' नाम से आगरा में हुआ था। इसमें आगरा की भौगौलिक जानकारियां मिलती हैं। उन दिनों फैं्रच और शिवरामपुरी कागज का प्रचलन था।
इसी बीच स्वतंत्रता की भावना आगरा के नागरिकों में जग चुकी थी। 1857 की क्रांति के बाद आगरा की पत्रकारिता जोर पकड़ने लगी और आगरा के हर कौने से पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन होने लगा। सन् 1866 में 'वृतान्त दर्पणÓ मासिक और 1867 में 'सर्वजनोपकारकÓ पत्र का प्रकाशन प्रारंभ हुआ। सन् 1869 में 'जगत समाचारÓ और इसी वर्ष 'जगदानंदÓ और 'पापमोचनÓ पत्र भी निकले। सन् 1870 में यूसफ अली के संपादन में 'आगरा अखबारÓ पत्र निकला। इस कालखंड में सभी पत्र-पत्रिकाओं की छपाई पत्थरों पर लिखाई करके लीथो की छपाई होती थी। मिर्जा गालिब ने भी अपनी पुस्तक 'दस्तम्बूÓ आगरा में ही छपवाई थी।
सन् 1869 में जाट बोर्डिंग हाउस की स्थापना की गई और 'जाट हितकारीÓ पत्र का प्रकाशन किया गया। इसमें अंग्रेज अधिकारियों द्वारा ब्रजक्षेत्र में ग्रामीण जनजीवन पर अत्याचार व कृषि कार्य में डाली जा रही बाधाओं के विरोध में लेखों के अलावा आमजनता को भारतीय संस्कृति की गौरवगाथा के बारे में जानकारी दी जाती थी। इसी पत्रिका के कई अंकों में नृत्य, भगत, इंद्रसभा आदि उस काल की आगरा की कला संस्कृति के बारे में भी जानकारी मिलती है। सन् 1893 में आगरा के कुछ विद्यार्थियों ने चतुर्वेदी विद्यार्थी सभा का गठन किया और 1894 में 'चतुर्वेदी पत्रिकाÓ का प्रकाशन किया। इसके संपादक पं. लोकमणिदास मिश्र थे। अपने प्रथम संपादकीय में वह लिखते हैं कि देश और जाति में एकता उत्पन्न करने को और फूट के फल के सेवन से उत्पन्न रोग की एक मात्र औषधि 'साहित्यÓ है। इस पत्रिका में 1899 के मई अंक में लिखा गया कि 'हम अपनी स्वाधीनता के लिए न्याय से लड़तेे हैं, ईश्वर हमें इंगलैंड के हाथ से मुक्ति देगा।Ó मार्च 1895 में गणित के प्रसिद्ध विद्वान पं. लोकमणिदास मिश्र ने 'गणित सुगम कारक लोकमणिÓ मासिक पत्र निकाला।
सन् 1901 में 'सनाढ्योपकारकÓ मासिक पत्र निकला। सन् 1905 में कुंवर हनुमंत सिंह रघुवंशी ने आगरा से 'स्वदेश बांधवÓ मासिक पत्र का प्रकाशन किया। कुंवर हनुमंत सिंह ने 1915 में गोकुलपुरा में एक साहित्य सम्मेलन का आयोजन किया। इसमें महापंडित राहुल सांकृत्यायन का संबोधन हुआ था।1919 में 'अग्रवाल बंधुÓ मासिक पत्र भी आगरा से निकला। 1920 में मुंशी शिवनारायण ने कायस्थ समाज के 'माथुरÓ का प्रकाशन किया। 1921 में 'जैसवाल जैनÓ पत्रिका और 'खंडेलवाल बंधुÓ का प्रकाशन हुआ। सन् 1925 में साप्ताहिक 'सैनिकÓ का प्रकाशन शुरू हुआ। बाद में सैनिक 'दैनिकÓ हो गया। देवकीनंदन विभव ने 'नवयुगÓ का प्रकाशन किया। 1931 में 'आगरा समाचारÓ पत्र का प्रकाशन राजामंडी से हुआ। महेंद्र कुमार ने 1934 में 'आगरा पंचÓ साप्ताहिक का प्रकाशन किया। 1936 में 'गणेशÓ साप्ताहिक पत्र का प्रकाशन प्रारंभ हुआ। इसकी संपादन समिति में प्रो.एनजी रंगा, रघुवर दयाल, जीआर परांजपे, स्वामी कृष्णानंद, ताड़केश्वर शर्मा और संपादक कृष्णलाल जोशी थे।
1936 तक आगरा की पत्रकारिता और साहित्य सजृन देशभर में ख्याति पा चुका था। इसी वर्ष अपनी 'मधुशालाÓ का पाठ करने 'बच्चनजीÓ नागरी प्रचारिणी सभा के भवन में आए।सन् 1939 में हसन हबीब और टामस स्मिथ के संपादन में अंग्रेजी साप्ताहिक 'दि आगरा सिटीजनÓ का प्रकाशन हुआ। सन् 1939 में क्रांतिकारी विजयसिंह ने लोहामंडी से 'नवसंदेशÓ साप्ताहिक पत्र का प्रकाशन किया। इसी वर्ष गणपतिचंद्र केला ने 'ताजातारÓ का प्रकाशन किया और इसी वर्ष पं. हरिशंकर शर्मा ने 'साधनाÓ मासिक पत्र को निकाला। सन् 1940 में केदारनाथ भट् ने हास्य रचनाओं से भरपूर 'नौंकझोंकÓ निकाला। इसी वर्ष गणपतिचंद्र केला ने 'दैनिक उजालाÓ का प्रकाशन प्रारंभ किया। नागरिकों में स्वतंत्रता के भाव से लेकर विदेशियों से लड़ने, संस्कृति को बचाने, स्वाभिमान और आत्मरक्षा के अलावा अस्तित्व के प्रति चिंता जैसे भावों को पैदा करने में आगरा की पत्रकारिता का योगदान बहुत बड़ा है। आगरा की पत्रकारिता ने जहां समय-समय पर जनजागरण का संदेश दिया, वहीं सुधार और परिष्कार का भी काम किया है। समानता, भातृत्व की नींव पर निर्मित सामाजिक समरसता के ढांचे को खड़ा करने में आगरा की पत्रकारिता हर काल में देशसेवा के लिए खड़ी रहेगी। इसलिए आगरा की पत्रकारिता की कहानी भारतीय राष्ट्रीयता के विकास की कहानी है।