क्योंकि हर बच्चा क़ुदरत की अनूठी कृति है!
स्वदेश वेबडेस्क। दसवीं औऱ बारहवीं के रिजल्ट आ रहे है शत प्रतिशत नम्बरों से सजी मार्क शीट्स मीडिया और डिजिटल पटल पर साझा हो रही है। कई परिचित अभिभावकों के बच्चों ने वाकई गजब की मेहनत कर 90 प्लस के समूह में स्थान हासिल किया है वे सभी बच्चे अभिनंदनीय है सरस्वती की अनुकम्पा औऱ उनका पुरुषार्थ बरकरार रहे।
लेकिन एग्जाम की अंधी गली में जो 90 प्लस से रोशन नही हो पाए है उनसे मेरी सहानुभूति ज्यादा है साथ ही उनके मां पिता से जो इस शोर में खुद को एक अपराधबोध से घिरा हुआ महसूस कर रहे है।वे अक्सर भूल जाते है कि हर बच्चा प्रभु की अनमोल रचना है घर के आसपास हमारे हर व्यक्ति की रफ्तार उसकी जीवन यात्रा अलग होती है।कला,साहित्य,खेल,संगीत,नृत्य ,सियासत, समाजकर्म ,व्यापार,उधोग से जुड़ी एक भी सफल हस्ती 90 प्लस के क्लब में कभी नही रही है।80 फीसदी से ज्यादा व्यूरोक्रेट्स भी 90 प्लस वाले नही है।बाबजूद इसके आज कॉन्वेंट कल्चर की अंधी दौड़ में हमारे अभिभावक सब खानापीना छोड़कर लोकभाषा में पेट काट कर सीबीएसई आईसीएससी से संबद्ध प्राइवेट स्कूलों में अपने उन सपनों को साकार करने के लिये लूट रहे है जो हर किसी के लिये जमीन पर उतर पाना संभव नही है।हकीकत तो यह है कि हर अभिभावक जो खुद अपने सपनों को पूरा नही कर पाता वह चाहता है कि उसके बच्चे उन्हें पूरा करें।
यही सपनों की ख्वाहिश आज भारत की शैक्षणिक त्रासदी से कम नही है। बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष के तौर पर काम करते हुऐ हमारे सामने ऐसे तमाम प्रकरण आते है जिनमें अभिभावकों की शिकायत रहती है कि उनके बच्चे को मिशनरी या कान्वेंट स्कूल ने जानबूझकर फैल कर दिया है या कम अंक दिए है हम उनकी आर्थिक स्थिति देखकर जब इन महंगे स्कूल से बाहर करने की सलाह देते है तब वे उखड़ जाते है उनके परिवार में अंग्रेजी का कोई माहौल नही है डायरी पर लिखे नोट उनके घरों में कोई पढ़ नही पाता है बच्चे माँ पिता के दबाब में कुछ बोल नही पाते है और एक बालमन पर लगातार ये औपनिवेशिक अत्याचार चलता रहता है। नतीजतन ऑटो चलाने वाले दिहाड़ी मजदूर,अल्पवेतन भोगी,पेट काट कर इन स्कूल की दुकानों पर जाकर लूट रहे है।एक अल्पसंख्यक दम्पति ऑटो चलाकर औऱ सिलाई से अपनी जीविकोपार्जन करते है उनका प्रकरण समिति के समक्ष आया उनके तीन बच्चे एक मिशनरी स्कूल में पढ़ते है एक बच्चे को कम अंक आने पर निकाल दिया गया बच्चे की काउंसलिंग से पता चला कि वह अंग्रेजी नही समझ पाता है और घर मे कोई भी अंग्रेजी नही जानता है
बालक एक तरह की अंग्रेजीयत की दहशत में था लेकिन उसके मा पिता की जिद थी कि उनका बेटा मिशनरी में ही पढ़े क्योंकि उसके मोहल्ले में महिलाएं उसे ताना दे रही है कि आपका बेटा मिशनरी स्कूल से निकाल दिया गया है। यह बताते हुए महिला रोने लगी।समिति के आग्रह पर स्कूल ने उस बच्चे को इस साल अपने यहां पढ़ने पर रजामंदी दे दी मा पिता खुश थे लेकिन वह 7 वी क्लास का बच्चा बड़ा दुखी था उसके चेहरे पर अपने माँ पिता के सपने का बोझ स्पष्ट पढा जा सकता था।ऐसे ही तमाम प्रकरण बाल कल्याण समितियों के पास आते रहते है लेकिन मां पिता के दबाब में सभी मामलो में बच्चों के हितों को सरंक्षित नही कर पाते है।
हम अक्सर देखते है कि इन विलायती सँस्कृति वाले स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों की मांए रात भर जागकर ऐसे ऐसे प्रोजेक्ट बनाती रहती है जिनका कोई औचित्य नही होता है वे अपने बच्चे को दूसरों से पीछे न रह जाये इस मानसिकता से घिरी रहती है। कक्षा 3 में पढ़ने वाली एक बच्ची को उसके स्कूल से एक प्रोजेक्ट दिया गया कि वह मप्र के सभी मुख्यमंत्री की फोटो लेकर आये।अब इस प्रोजेक्ट की उपयोगिता को आप ही समझिये?माँ नेट कैफे पर जाकर कैसे इसे बना पाई इसका अंदाजा मुझे है।
कुछ स्कूल स्पेनिश ,फ्रेंच भाषा से लेकर घुड़सवारी तक सिखाने का प्रचार करते है पर किसी स्कूल में हिंदी की उत्कृष्टता की बात नही होती है, हिंदी हार्टलैंड में भी जबकि उनकी मातृभाषा हिंदी है।तमाम शोध यह बताते है कि बच्चों का सबसे सशक्त मानसिक विकास उसकी स्थानीय भाषा मे होता है चीन इसका वैश्विक उदाहरण है।हकीकत के धरातल पर ऐसे बच्चे न अंग्रेजी में निपुण हो पाते है न हिंदी में क्योंकि उनका स्वाभाविक विकास हमारी थोपी गई सोच से कुंद पड़कर रह जाता है।वस्तुतः आपके मौलिक विचार आपकी अपनी जुबान में ही अभिव्यक्त हो सकते है किसी विदेशी जुबान में नही।
अंग्रेजी पढ़ाकर आईएएस बनाने का सपना संजोने वाले यह नही जानते है कि आईएएस बनने के लिये 90 प्लस ही पर्याप्त नही है आपकी मौलिकता आपका खुद का विजन आपकी तार्किकता, तीक्ष्णता, निर्णयन क्षमता का मूल्यांकन किया जाता है जो सिर्फ किताबी रटन्त से नही आ सकती है। इसके लिये आपको अपने व्यक्तित्व को बहुआयामी बनाना पड़ता है जो इस मर्म को समझते है वे ही ब्यूरोक्रेट, टेक्नोक्रेट्स, इंडस्ट्रियलिस्ट, लॉयर,लीडर,के रूप में अपनी पहचान बनाते है। आइये हर बच्चे की मुस्कान बरकरार रखे।उसे उसकी जन्मजात प्रतिभा के साथ जीने का अवसर दें।
(लेखक बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष है)