'विक्रम संवत' वैज्ञानिक पद्धति पर आधारित विश्व का प्रथम कैलेंडर
आज के शुभ दिवस पर हम विक्रम संवत ( Vikram Samvat ) 2081 में प्रवेश कर रहे है। प्राचीन भारतीय कालगणना आधारित विक्रम संवत विश्व का वैज्ञानिक आधार पर प्रामाणिक प्रथम पंचांग है। संवत्सर का अर्थ है, समवत्सर यानि पूर्ण वर्ष। शास्त्रों के अनुसार, ब्रह्माजी ने इस दिन सम्पूर्ण सृष्टि और लोकों का सृजन किया था और इसी दिन भगवान विष्णु का मत्स्यावतार भी हुआ था। भारत में विक्रमी संवत, जिसे उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य ने 56 ईसा पूर्व शुरू किया, जो चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से शुरू होता है। इसे सभी सनातन धर्म के मानने वाले नव वर्ष के रूप में मनाते हैं। इसे गुड़ी पड़वा भी कहते हैं। इसी दिन से नया पंचाग शुरू होता है और ज्योतिष की गणना के अनुसार देश, राज्य के समस्त विषयों की भविष्यवाणी, लोक व्यवहार, विवाह, अन्य संस्कारों और धार्मिक अनुष्ठानों की तिथियां निर्धारित की जाती हैं। हिंदू शास्त्रों के अनुसार नव संवत्सर चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि से प्रारम्भ होता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार संवत के 5 भेद और 12 मास होते हैं, चैत्र से फाल्गुन तक इनका क्रम निश्चित है। भगवान राम और युधिष्ठिर का राज्याभिषेक इसी दिन हुआ था। इसी दिन प्रकृति भी हमें बदलाव के संकेत वृक्षों पर पतझड़ के बाद नए पत्ते आने के साथ देती है, चारों तरफ अनेक प्रकार के फूल खिलते हैं, ऐसा लगता है मानो हरियाली भी नव वर्ष मना रही है। फसल पकने के बाद नया अनाज बाजार में आता है। शक्ति और भक्ति के प्रतीक नवरात्रि इसी दिन से प्रारंभ होते हैं। सम्पूर्ण वातावरण आनंदमय और आध्यात्मिक प्रतीत होता है। कालगणना के लिए उज्जैन स्थित महाकाल मंदिर का ऐतिहासिक और प्रामाणिक महत्व है।
हाल ही में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने सरकार के कैलेंडर में विक्रम संवत जोड़ा है | इसमें विक्रम संवत 2080 लिखा गया है। शासन के द्वारा लिया गया यह निर्णय निश्चित ही सराहनीय है जो की भारतीय सनातन परम्परा को कालगणना के माध्यम से गोरवान्वित करने का अवसर देता है। विक्रम संवत की वैज्ञानिक प्रमाणिकता और ऐतिहासिक महत्व इसे सम्पूर्ण भारत में लागु करने के लिए पर्याप्त है। प्राचीन काल से उज्जैनी नगरी समृद्ध ज्ञान परंपरा, धर्म, संस्कृति आध्यात्मिकता और, कालगणना का केंद्र रही है। भगवान श्री कृष्ण की शिक्षा स्थलीराजा, विक्रमादित्य की न्यायधानी और कालिदास की कर्मस्थली उज्जैनी वास्तव में ज्ञान विज्ञान, और आध्यात्म का एक अनूठा संगम है। प्राचीनकाल से यह नगरी ज्योतिष का प्रमुख केन्द्र रही है। खगोलशास्त्रियों की मान्यता है कि यह उज्जैन नगरी पृथ्वी और आकाश की सापेक्षता में ठीक मध्य में स्थित है। कालगणना के शास्त्र के लिए इसकी यह स्थिति सदा उपयोगी रही है इसलिए इसे प्राचीन भारत की 'ग्रीनविच' के रूप में भी जाना जाता है। इसकी भौगोलिक स्थिति के कारण इसे कालगणना का केंद्र बिंदु कहा जाता है।
जिसके प्रमाण में राजा जयसिंह द्वारा स्थापित वेधशाला आज भी इस नगरी को कालगणना के क्षेत्र में अग्रणी सिद्ध करती है। कालगणना का केंद्र होने के साथ-साथ ईश्वर आराधना का तीर्थस्थल होने से इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। प्राचीन भारतीय खगोलशास्त्री और गणितज्ञों के द्वारा की गयी खोजों के फलस्वरूप प्राचीनकाल में कालगणना का निर्धारण किया गया जो काफी सटीक और वैज्ञानिक तर्कयुक्त था 1884 परन्तु | में अंग्रेजी हुकूमत ने ग्रीनविच माध्य समय को मान्यता दी जो कि लंदन के ग्रीनविच शहर स्थित रॉयल वेधशाला में मध्यरात्रि से शुरू हुआ इसे | मान्यता देने का एक प्रमुख कारण यह था की पश्चिम देश अन्य देशों से व्यापार करने के लिए रेल व जहाजों का उपयोग करते थे और उन सभी के लिए एक समय का निर्धारण करना आवश्यक था वहीं । हमारी संस्कृति में कालगणना का निर्धारण सूर्य के उदित होने से किया गया है इसमें ग्रहों की गति, ऋतुओं, त्योहारों आदि का परस्पर संबंध खगोलीय गणनाओं के द्वारा निर्धारित कर पंचांग या केलेंडर का निर्माण किया गया है । पश्चिमी देशों के वैज्ञानिकों द्वारा दिए गए कई मुलभुत वैज्ञानिक सिद्धांतों के पीछे भारतीय विचार, दर्शन और हमारा स्वदेशी ज्ञान हैं जिनका समयसमय पर उल्लेख हुआ है। दुर्भाग्यपूर्ण भारतीय ज्ञान परंपरा पर पश्चिमी देशों के द्वारा नष्ट करने के सरे प्रयास किये गए। बिना वैज्ञानिक प्रमाणिकता वाले कैलेंडर को वैश्विक स्तर पर उपयोग किया जाने लगा। परन्तु हमारे देश में आज भी किसी शुभ कार्य को करने के लिए विक्रम संवत पंचांग का ही उपयोग किया जाता है। अधिकतर गावों में ग्रामीण परम्परा, रीतिरिवाज, त्यौहार, मौसम की भविष्यवाणी, फसलों की बुवाई इत्यादि आज भी विक्रम संवत आधारित कैलेंडर से किया जाता है।
विक्रम संवत कैलेंडर भारतीय खगोल विज्ञान और गणितवैज्ञानिक पद्धतियों पर आधारित कैलेंडर है। कालगणना के अतिरिक्त प्राचीन भारतीय खगोलशास्त्री और गणितज्ञ आर्यभट्ट, वराहमिहिर और ब्रह्मगुप्त ने सौर मंडल, ग्रहों की गति, पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी को समझने के लिए मूलभूत गणितीय गणनाओं को आगे बढ़ाया। पृथ्वी और चंद्रमा के बीच की दूरी, अपनी धुरी के चारों ओर पृथ्वी का घूमना, पाई की गणना, शून्य की खोज, खगोल भौतिकी और गणित के कई और महत्वपूर्ण सिद्धांत दिए जो आज की आधुनिक वैज्ञानिक उपकरणों के साथ की गयी गणनाओं के सामानांतर पायी गयी है। प्राचीनकाल में कालगणना का केंद्र रही उज्जैनी नगरी में महाकाल लोक के लोकार्पण और प्रदेश सरकार द्वारा विक्रम संवत कैलेंडर की स्वीकार्यता ने ज्ञान परंपरा की इस पावन स्थली के अभ्युदय का मार्ग प्रशस्त किया है। आजादी के अमृत महोत्सव में अब यह आवश्यक है की भारत सरकार वैज्ञानिक गणनाओं पर आधारित विक्रम संवत कैलंडर को सम्पूर्ण देश में लागु कर भारतीय सनातन परम्परा को आगे बढ़ाये | यह शुरुआत महाकाल की उज्जैनी नगरी को पुनः काल के निर्धारण का केंद्र मानने के विश्वभर के मनीषियों, खगोल वैज्ञानिकों और ज्योतिषियों को इस विषय पर चर्चा करने के लिए प्रेरित भी करेगी।