भाग-10 / पितृपक्ष विशेष : आइए जानें कौन हैं अष्टावक्र

भाग-10 / पितृपक्ष विशेष : आइए जानें कौन हैं अष्टावक्र
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महिमा तारे

चिकित्सा विज्ञान यह सिद्ध कर चुका है कि आठवें मास में गर्भस्थ शिशु में सोचने, याद करने एवं निर्णय लेने की क्षमता विकसित हो जाती हैं। यहां अष्टावक्र के जीवन से यह प्रमाणित होता है कि पिता के भाव भी बच्चें के शारीरिक एवं मानसिक विकास के लिए कितने आवश्यक हैं।

अष्टावक्र यानी आठ स्थानों से शरीर का टेढ़ा होना। इनके जन्म की छोटी सी कहानी है। कहोड ऋषि की पत्नी सुजाता यह चाहती थी कि उनका बच्चा गर्भ में ही संपूर्ण वैदिक शास्त्रों और मंत्रों का ज्ञाता हो जाए। इसलिए जब आश्रम में उनके पति अपने शिष्यों को शिक्षा देते थे तो वह भी नियमित रूप से वेद शास्त्रों की कक्षा में उपस्थित रहती थी। एक दिन की घटना है कहोड ऋ षि अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहे थे। तभी एक आवाज आई कि जिस तरह आप छंद पढ़ रहे हैं, यह वैसे नहीं पढ़ा जाता। यह आवाज गर्भस्थ शिशु की थी। कहोड ऋ षि को शिष्यों के सामने ऐसा व्यवहार तिरस्कार पूर्ण लगा और उन्होंने क्रोधवश अपने पुत्र को शाप दिया कि वह विकलांग संतान के रूप में जन्म लेगा।

गर्भस्थ अष्टावक्र आठ स्थानों से विकलांग अवश्य थे, पर वे एक निर्भीक, तेजस्वी, ब्रह्मवेत्ता थे। उनकी विद्वत्ता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वह 12 वर्ष की अवस्था में विदेही राजा जनक के गुरु बन गए थे।

उनका लिखा हुआ प्रसिद्ध ग्रंथ अष्टावक्र गीता है जो अद्वैत वेदांत दर्शन का ग्रंथ है। यह भी भागवत, गीता, उपनिषद और ब्रह्मसूत्र के समान ही अमूल्य ग्रंथ है। इसमें ज्ञान, वैराग्य, मुक्ति और समाधिस्थ योगी की दशा का विस्तार से वर्णन है।

इस ग्रंथ की शुरूआत ऋ षि अष्टावक्र और राजा जनक के बीच संवाद से होती हैं। इस ग्रंथ की शुरुआत राजा जनक द्वारा किए गए तीन प्रश्नों के साथ होती है।

1- ज्ञान कैसे प्राप्त होता है?

2- मुक्ति कैसे होगी?

3- वैराग्य कैसे प्राप्त होगा?

यह तीन शाश्वत प्रश्न है। जो हर काल में आत्मअनुसंधानियों द्वारा पूछे जाते रहे हैं। ऋषि अष्टावक्र ने इन्हीं तीन प्रश्नों का संधान राजा जनक के साथ संवाद के रूप में किया हैं। इस गीता में 20 अध्याय हैं।

उनके जीवन की एक और महत्वपूर्ण घटना है। अष्टावक्र जब पहली बार राजा जनक के दरबार में जाते हैं तो उनका आठ जगह से टेढ़ा शरीर देखकर और अजीब चाल देखकर सारी सभा हंसने लगती है। अष्टावक्र यह नजारा देखकर सभाजनों से भी ज्यादा जोर से खिलखिला कर हंसते हैं। इस पर राजा जनक ने पूछा कि बेटा तेरे हंसने का कारण क्या हैं? अष्टावक्र ने उत्तर देते हुए कहा कि इसलिए हंस रहा हूं कि इन चमारों की सभा में शास्त्रार्थ कैसे होगा। सीधी सी बात है इनको चमड़ी दिखाई पड़ती है मैं नहीं। अष्टावक्र कहते हैं कि शारीरिक विकलांगता से अधिक घातक है मानसिक विकलांगता।

विकलांगता जैसी घोर यंत्रणा भी उन्हें हतोत्साहित नहीं कर पाई और वे वरुण के पुत्र को भी शास्त्रार्थ में चुनौती देने से पीछे नहीं हटे। ऐसे अष्टावक्र ऋषि को सादर नमन।

विचार करने की बात आज यह है कि हम अपनी ही संस्कृति से इतने अनभिज्ञ है कि कोई विकलांग दिखता है तो कई लोग उसे अष्टावक्र कह कर उपहास उड़ाते हैं, क्या हम मानसिक विकलांग नहीं है? अष्टावक्र भारत की आज की बौद्धिक मेधा को सद्बुद्धि दे, यही उनके चरणों में निवेदन।

(लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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