जयंती विशेष: अटल बिहारी वाजपेयी के नरेंद्र मोदी के साथ कैसे रिश्ते थे, गुजरात दंगों के बाद कहा था - राजधर्म का पालन करो
अटल बिहारी वाजपेयी 100वीं जन्मशताब्दी : अटल बिहारी वाजपेयी के साथ नरेंद्र मोदी
अटल बिहारी वाजपेयी 100वीं जन्मशताब्दी : साल 2001, अक्टूबर महीने की पहली तारीख...प्रधानमंत्री कार्यालय से भाजपा के एक नेता को कॉल गया। कॉल करने वाले ने जब पूछा की 'कहां हो?' तो फोन उठाने वाले ने जवाब दिया 'शमशान में हूं।' इसके बाद फोन करने वाले ने दो शब्दों में अपनी बात खत्म करते हुए कहा - 'आकर मिलिए।'
ये कॉल ऐतिहासिक था, क्योंकि इसके बाद भारतीय राजनीति में ऐसे खिलाड़ी की एंट्री हो गई जिसने भारत की तस्वीर बदल दी। कॉल के एक तरफ प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी थे और दूसरी तरफ थे नरेंद्र मोदी।
नरेंद्र मोदी दिल्ली के अशोका रोड स्थित भाजपा के पुराने दफ्तर के पीछे एक छोटे से कमरे में रहते थे। जब प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने उन्हें बुलाया तो वे भी समझ गए थे कि, जरूर बात गंभीर है।
अटल जी के बुलावे पर बिना देरी किये नरेंद्र मोदी 7 रेस कोर्स पहुंच गए। यहां उन्होंने सामने कुर्सी पर बैठे अटल बिहारी वाजपेयी का अभिवादन किया। इसके बाद बिना बात इधर - उधर भटकाए अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा - 'अगले साल होने वाले चुनाव की तैयारी करिए, आपको मुख्यमंत्री बनाकर गुजरात भेज रहे हैं।'
अटल बिहारी वाजपेयी की बात सुनकर नरेंद्र मोदी कुछ देर सोचे और फिर उन्होंने कहा, "नहीं"...अपनी पार्टी के वरिष्ठ नेता को न कहने की हिम्मत कम ही लोगों में होती है तो आखिर नरेंद्र मोदी ने गुजरात लौटने से मना क्यों किया और अटल बिहारी वाजपेयी क्यों नरेंद्र मोदी को ही मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे...
अटल बिहारी वाजपेयी की आज 100 वीं जयंती है। उनके बारे में यूं तो बहुत सी बातें की गई है लेकिन आज उनकी जन्म शताब्दी वर्ष पर हम बात करेंगे अटल बिहारी वाजपेयी और नरेंद्र मोदी के रिश्ते की। दोनों नेताओं के बीच कैसे संबंध थे।
अटल बिहारी वाजपेयी और नरेंद्र मोदी की 7 रेस कोर्स में 1 अक्टूबर को पहली मुलाकात नहीं थी। इसके पहले दोनों नेता अमेरिका में मिले थे। असल कहानी की शुरुआत भी अमेरिका से ही हुई थी।
दरअसल, नरेंद्र मोदी अमेरिका में राजनीतिक अज्ञातवास पर थे। गुजरात भाजपा के बड़े नेता केशुभाई पटेल के खिलाफ राजनीति करने के आरोपों के चलते उन्हें उनके गृह राज्य गुजरात से दूर कर दिया गया था। कुछ समय बाद वे पार्टी के कार्यों से दूरी बनाकर अमेरिका चले गए थे।
जब अटल बिहारी वाजपेयी भारत के प्रधानमंत्री बने तो वे अमेरिका के दौरे पर गए। यहां उन्होंने भारतीय प्रवासियों से मुलाकात की। इस कार्यक्रम में नरेंद्र मोदी नहीं थे लेकिन उनके परिचित इस कार्यक्रम में आए हुए थे। यहां उन्होने अटल बिहारी वाजपेयी के सामने नरेंद्र मोदी का जिक्र करते हुए पूछा था कि, क्या आप उनसे मिलना चाहेंगे।
नरेंद्र मोदी से मिलने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी सहज रूप से मान गए। अगले दिन अमेरिका में दोनों नेताओं की मुलाकात हुई। इस मुलाकात के दौरान अटल बिहारी वाजपेयी ने एक अभिभावक की तरह नरेंद्र मोदी से कहा - 'ऐसे भागने से कुछ नहीं होगा, दिल्ली आ जाओ, कब तक यहां रहोगे।'
अटल बिहारी वाजपेयी और नरेंद्र मोदी के बीच एक पीढ़ी का अंतर था। जब अटल बिहारी वाजपेयी ने उन्हें दिल्ली आने के लिए कहा तो वे मान गए। इस तरह अटल बिहारी वाजपेयी ने नरेंद्र मोदी का राजनीतिक अज्ञातवास खत्म कराया।
अब लौटते हैं 1 अक्टूबर, 2001 को...। अटल बिहारी वाजपेयी ने नरेंद्र मोदी को दिल्ली बुलाया तो वे दिल्ली आ गए और जब उन्हें मिलने के लिए 7 रेस कोर्स बुलाया गया तो वे तुरंत मौजूद हो गए लेकिन गुजरात की जिम्मेदारी मिलने की बात पर नरेंद्र मोदी के मन में कई सवाल थे। जब अटल बिहारी वाजपेयी ने नरेंद्र मोदी को फोन किया तो वे एक प्राइवेट न्यूज़ चैनल के कैमरापर्सन गोपाल बिष्ट के अंतिम संस्कार में गए थे।
1 अक्टूबर की शाम को नरेंद्र मोदी की अटल बिहारी वाजपेयी से मुलाकात हुई। अटल बिहारी वाजपेयी ने जब नरेंद्र मोदी को मुख्यमंत्री बनने के लिए कहा तो उन्होंने कहा - 'मैं लंबे समय से गुजरात की राजनीति से दूर हूँ।' इसके बावजूद अटल बिहारी वाजपेयी ने नरेंद्र मोदी को समझाया। उन्हें आशीर्वाद दिया और गुजरात लौटने के लिए मना लिया।
नरेंद्र मोदी गुजरात लौटे और उन्होंने 7 अक्टूबर, 2001 को गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ले ली। भाजपा के कई नेता नरेंद्र मोदी की वापसी से सहज नहीं थे लेकिन उन्हें वाजपेयी और आडवाणी का आशीर्वाद प्राप्त था। इस आशीर्वाद के चलते पार्टी के अंदर विरोधी स्वर धीमे हो गए।
इस कहानी का अगला पड़ाव था गुजरात में हुए सांप्रदायिक दंगे। साबरमती एक्सप्रेस में कारसेवकों से भरे कोच में आग लगा दी गई। इसके बाद गुजरात में दंगे हुए। इन दंगों के बाद नरेंद्र मोदी के विरोधियों का स्वर एक बार फिर मुखर हो गया। इस बार अटल बिहारी वाजपेयी के मन में भी मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व को लेकर सवाल उठने लगे।
विपक्ष लगातार गुजरात में भाजपा सरकार को घेर रहा था। अटल बिहारी वाजपेयी भी दबाव महसूस करने लगे थे। गुजरात दंगों की आग की तपिश 7 रेस कोर्स तक पहुंचने लगी थी।
प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने फिर गुजरात का दौरा किया। 2002 में वे अहमदाबाद पहुंचे। यहां उन्होंने गुजरात की वास्तविक परिस्थिति को जाना। स्थिति जानने के बाद जब नरेंद्र मोदी के साथ बैठकर अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की...उसकी वीडियो आज तक सोशल मीडिया पर वायरल है।
पत्रकारों और कैमरा के सामने बैठकर अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा - 'मैंने मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को राजधर्म निभाने के लिए कहा है। ये शब्द काफी सार्थक हैं। मैं भी राजधर्म का पालन कर रहा हूँ। एक राजा और शासक के लिए प्रजा - प्रजा में भेद नहीं हो सकता। न जन्म न जाति न सम्प्रदाय के आधार पर...'
बगल में बैठे नरेंद्र मोदी ने उनके करीब आकर फुसफुसाया - 'साहब, हम वही कर रहे हैं।'
इसके बाद वाजपेयी ने संशय की स्थिति में आकर पत्रकारों के सामने कहा - 'मुझे विश्वास है कि, वे वही कर रहे हैं।'
वो व्यक्ति जिसने अब तक नरेंद्र मोदी को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया वह संशय में था। दरअसल, अटल बिहारी वाजपेयी का मानना था कि, सांप्रदायिक दंगों के बाद नरेंद्र मोदी को इस्तीफे की पेशकश तो करनी ही चाहिए थी।
भाजपा के अन्य वरिष्ठ नेता इस बात पर अटल बिहारी वाजपेयी से सहमत नहीं थे। बाद में हुई भाजपा कार्यकारिणी की बैठक में नरेंद्र मोदी ने इस्तीफे की पेशकश भी की थी हालांकि सभी ने नरेंद्र मोदी का साथ दिया और इस तरह नरेंद्र मोदी अपने आप को साबित कर गए।
लोकसभा चुनाव पर हुई हार पर क्या बोले थे अटल बिहारी वाजपेयी :
2004 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार वापसी नहीं कर पाई। इसके पीछे कई कारण थे लेकिन एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि, यह कहना मुश्किल है कि, "भाजपा की हार के सभी कारण क्या थे लेकिन गुजरात हिंसा का एक नतीजा यह भी था कि, हम चुनाव हार गए।"
कुछ समय बाद अटल बिहारी वाजपेयी ने सक्रिय राजनीति से सन्यास ले लिया। उनका मानना था कि, अब पार्टी में अगली पंक्ति के नेताओं को मौका मिलना चाहिए।
2013 में गोवा में भाजपा की बैठक हुई। इस बैठक में नरेंद्र मोदी को कैंपेन कमेटी का प्रमुख बनाया गया। अब केंद्र में कमल खिलाने की जिम्मेदारी नरेंद्र मोदी की थी।
2014 के लोकसभा चुनाव हुए और नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बन गए। अटल बिहारी वाजपेयी जिसे अमेरिका से दिल्ली लाये और फिर गुजरात का मुख्यमंत्री बनाए अब वो भारत का प्रधानमंत्री बन गया था।
संसद के सेन्ट्रल हॉल में एनडीए का नेता चुने जाने पर मोदी भावुक हो गए। उन्होंने कहा - 'अगर अटल जी यहां होते तो सोने पर सुहागा होता।' इतना कहते ही उनका गला भर आया। उनकी आंखें नम हो गईं।
गुजरात दंगों के बाद कई लोगों का मानना था कि, अटल जी और नरेंद्र मोदी के बीच संबंध अब ठीक नहीं हैं लेकिन सभी के मुंह उस समय बंद हो गए जब प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी सबसे पहले अटल बिहारी वाजपेयी का आशीर्वाद लेने पहुंचे।
जब अटल बिहारी वाजपेयी का निधन हुआ तो भावुक होकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लिखा था - "कैसे कह दूं? कैसे मान लूं? वे अब नहीं हैं। अटल जी, मेरी आंखों के सामने हैं, स्थिर हैं। जो हाथ मेरी पीठ पर धौल जमाते थे, मुस्कराते हुए मुझे अंकवार में भर लेते थे, वे स्थिर हैं। उनकी आवाज अपने भीतर गूंजते हुए महसूस कर रहा हूं।"