धन्यवाद प्रधानमंत्री जी, यह बतसिया बाई का सम्मान नहीं सभी भारतीयों के श्रम का सम्मान है

धन्यवाद प्रधानमंत्री जी, यह बतसिया बाई का सम्मान नहीं सभी भारतीयों के श्रम का सम्मान है
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- डॉ. मयंक चतुर्वेदी

आपका श्रम कब आपको एक विशेष पहचान दिला दे इसका कोई समय मुकर्रर नहीं, आपके श्रम के एवज में सम्मान कुछ घंटे या कुछ दिनों के बाद मिल जाए अथवा आपके जीतेजी आपको सम्मान मिले यह जरूरी नहीं। कई बार जिसे सम्मान दिया जाना है और जो सम्मान दे रहा है दोनों को ही एक-दूसरे का इंतजार करते वर्षों गुजर जाते हैं, किंतु इसमें सत्य यही है कि यदि आपने पूर्ण मनोयोग से श्रम किया है तब उस स्थिति में एक न एक दिन आपको सम्मान अवश्य मिलता है, जिसके कि आप वास्‍तविक अधिकारी हैं। वस्‍तुत: यह सामाजिक और राज्‍याश्रयी सम्‍मान आपके श्रम का वास्‍तविक मूल्‍य है।

मध्‍यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिला, नरसला ग्राम पंचायत की रहने वाली मनरेगा मजदूर बतसिया यदुवंशी, 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा राष्ट्र को संबोधित करने के मुख्‍य आयोजन में विशिष्‍ट अतिथि के रूप में बुलाई जाती हैं । सिर्फ वह क्‍यों, उनके जैसे देश भर में राष्‍ट्र के लिए श्रम करनेवाले लगभग 800 लोगों को बुलाया जा रहा है। वस्‍तुत: जिस महिला मजदूर ने अपने प्रधानमंत्री को आज तक टीवी पर ही देखा है, यदि उसे लाल किला बुलाया जाए और देश का प्रधान सेवक (प्रधानमंत्री) उनके श्रम का यथोचित सम्‍मान करे तो निश्‍चित ही इससे बढ़कर उसके लिए अन्‍य कोई बड़ी उपलब्‍धि नहीं हो सकती है।

बतसिया बाई यदुवंशी को यह सम्‍मान इसलिए मिला है, क्‍योंकि सरकारी नियम के अनुसार मनरेगा में 100 दिन का रोजगार मजदूरों को दिया जाता है, इसी कार्य में बतसिया बाई ने सबसे ज्यादा श्रम दिवस 95 दिन की मजदूरी पूरी की है। लगातार तीन माह दस दिन के कार्य दिवस में सिर्फ पांच दिन ही अनुपस्‍थ‍ित रहना और सतत कार्य को करना वास्‍तव में कोई छोटी उपलब्धि नहीं, जब सरकारी दफ्तरों में फाइलें महिनों-महिने अपनी पूर्ति किए जाने के इंतजार में पड़ी रहती हों और सिस्‍टम में त्‍यौहारी-जयंती, पुण्‍यतिथि छुट्टियों के बाद भी अनेक लोग कार्य करने से जी चुराते देखे जाते हैं।

अधिकांश फाइलों के निपटान में देखा यही जाता है कि जब तक उन्‍हें पूरा करने या उस फाइल से संबंधित कार्य को समाप्‍त करने का ऊपर से दबाव नहीं आता, सरकारी सिस्‍टम में बाबू उसे आगे नहीं बढ़ाते। इन परिस्‍थ‍ियों के बीच यदि कोई श्रमिक देश के कार्य के लिए अपना सर्वस्‍व समय दे रहा है, तब उसका सम्‍मान होना ही चाहिए, और फिर यह सम्‍मान उसका अकेले का नहीं, वह तो सांकेतिक है। यह सम्‍मान देश के हर श्रमिक का है जो देश निर्माण में अपनी प्रभावी भूमिका निभा रहा है।

बतसिया बाई जैसे लोगों का समर्पण उनके कहे शब्‍दों से भी साफ झलकता है, "मजदूरी करते हुए बुढ़ापा आ गया, पूरा परिवार मजदूरी करके ही जीवन बसर करता है। अचानक जब ग्राम पंचायत सचिव और रोजगार सहायक ने जानकारी दी कि उन्हें दिल्ली जाकर स्वतंत्रता दिवस समारोह के कार्यक्रम में शामिल होना है, तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं है। कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि जीवन में ऐसा मौका मिलेगा, लेकिन अब जब दिल्‍ली बुलाया जा रहा है तो वहां मौका मिलने पर मैं प्रधानमंत्री मोदीजी से बात जरूर करूंगी ताकि मेरा गांव और अधिक विकास कर पाए।'' यह वास्‍तविकता भी है, देश के हर गांव के विकास में ही देश का संपूर्ण विकास है।

सही भी है, आज केंद्र की मोदी सरकार ने जो सम्‍मान बतासिया बाई को स्वतंत्रता दिवस समारोह के मुख्य आयोजन में विशिष्ट अतिथि बनाकर दिया है, वह इसी गहरे भाव की परिणति‍ है। इन विशिष्ट अतिथियों में सामान्‍य श्रमिक से लेकर वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम के सरपंच, शिक्षक, नर्स, किसान, मछुआरे, किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ), सेंट्रल विस्टा परियोजना, अमृत सरोवर योजना, जल जीवन मिशन, पीएम किसान सम्मान निधि, कौशल विकास योजना जैसे प्रमुख कार्यक्रमों में काम करने वाले लोग शामिल हैं । विभिन्न योजनाओं के लाभार्थियों को 'विशेष अतिथि' के रूप इस स्वतंत्रता दिवस समारोह में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया गया है।

वस्‍तुत: मोदी सरकार का उद्देश्‍य समाज के हर वर्ग के लोगों को इस कार्यक्रम में शामिल करना है। ताकि उनके माध्‍यम से देश के श्रम का उचित मुल्‍यांकन समाज जीवन के हर वर्ग के ध्‍यान में आ जाए। वास्‍तविकता में देश के हर उस नागरिक का यह सम्‍मान है जो राष्‍ट्र जीवन में अपना कुछ न कुछ समर्पण दे रहा है। किसी कवि ने सही कहा है-

देश हमें देता है सबकुछ, हम भी तो कुछ देना सीखें।

हम मेहनत के दीप जलाकर, नया उजाला करना सीखें।

जो अनपढ़ हैं उन्हें पढ़ाएं, जो चुप हैं उनको वाणी दें।

पिछड़ गए जो उन्हें बढ़ाएं, समरसता का भाव जगा दें।

त्यागी तरुओं के जीवन से , हम परहित कुछ करना सीखें।

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