किसानों को तोहफा, आंदोलनकारियों को झटका

किसानों को तोहफा, आंदोलनकारियों को झटका
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सियाराम पांडेय 'शांत'

केंद्र सरकार और अन्य भाजपा शासित राज्यों में किसानों को तोहफे पर तोहफे दिए जा रहे हैं। उनकी आय बढ़ाने के निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं। इससे दिल्ली में आंदोलित किसान नेता भी परेशान हैं, वे भाजपा शासित राज्यों में भाजपा को कमजोर करने की जितनी भी कोशिश कर रहे हैं, वह सब उन पर उलटा पड़ रहा है। अलबत्ता किसानों की नजर में भी उनकी अपनी विपरीत छवि बन रही है। सरकार ने फिर आंदोलनकारियों से वार्ता की मेज पर आने का आग्रह किया है। ऐसा करके वह किसानों को संदेश देना चाहती है कि उसने जो भी कायदे-कानून बनाए हैं, उसमें किसानों का हित छिपा है लेकिन किसान नेता अपनी हठधर्मिता पर अड़े हैं।

विभिन्न फसलों की 35 विशिष्ट गुणों वाली फसल प्रजातियां किसानों को सौंपकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि किसानों और वैज्ञानिकों के समवेत सहयोग से यह देश आगे बढ़ेगा। उनका मानना है कि किसानों के समग्र और तेज विकास के लिए किसानों और कृषि को वैज्ञानिक सुरक्षा कवच मिलना जरूरी है। किसान और वैज्ञानिक मिलकर नई चुनौतियों का सामना करने में इस देश की मदद कर रहे हैं।

उन्होंने किसानों को यह भी बताया है कि हाल के कुछ वर्षों में कृषि वैज्ञानिकों ने अलग-अलग फसलों के 1300 से अधिक उन्नतशील किस्म के रोग और मौसम प्रतिरोधी बीज तैयार किए हैं। इसी कड़ी में 35 और फसलों की किस्में किसानों को समर्पित की जा रही हैं। बीएचयू कृषि विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों की ओर से विकसित गेहूं की नई प्रजाति के बीज मालवीय 838 को भी उन्होंने देश को समर्पित किया। इस प्रजाति की उत्पादन क्षमता एक हेक्टेयर में 50 क्विंटल है जबकि सामान्य बीज की क्षमता 40 से 45 क्विंटल है। यह प्रजाति कम पानी में अधिक उत्पादन देती है।

एक ओर जहां दिल्ली की सीमा पर कुछ किसान नेता तकरीबन एक साल से तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं। हाल ही में उन्होंने भारत बंद का भी आयोजन किया था। यह और बात है कि उन्हें उनके मनोनुकूल सफलता नहीं मिली। उन्होंने मुजफ्फरनगर में बड़ी किसान पंचायत की लेकिन वह भी निर्बाध रूप से पूरी हो गई। किसान नेता चाहते थे कि सरकार बाहर से आने वाले किसानों को रोकेगी तो विरोध की हवा बनेगी लेकिन ऐसा भी कुछ नहीं हुआ। जिस दिन से आंदोलन शुरू हुआ है तब से लेकर अब तक अनेक अवसर आए हैं जब केंद्र की नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ ने किसान को कुछ बड़ा और खास उपहार दिया है।

भारत बंद के एक दिन पहले ही उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने गन्ने के समर्थन मूल्य में 25 रुपये प्रति कुंतल की वृद्धि कर किसान आंदोलन की धर कुंद कर दी थी। भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत की इस पर बौखलाहट भी सामने आई। उन्होंने तो यहां तक कहा कि योगी सरकार गन्ने के दाम बढ़ाकर अन्नदाताओं का अपमान कर रही है। अगर गन्ने का अधिक मूल्य देना अपमान है तो सम्मान क्या है ! किसान नेता को यह तो इस देश को बताना ही चाहिए।

राकेश टिकैत को शायद गन्ने का समर्थन मूल्य 25 रुपये बढ़ना अच्छा नहीं लगा लेकिन उन्हें यह भी देखना चाहिए कि इस निर्णय से सरकार पर व्यय भार कितना आ रहा है। योगी आदित्यनाथ सरकार ने तो मंत्रिमंडल की अपनी पहली बैठक में ही 86 लाख किसानों का 36 हजार करोड़ का ऋण माफ कर दिया है। भाजपा शासित राज्यों और केंद्र सरकार का हमेशा यह मानना रहा है कि जब तक किसान खुशहाल नहीं रहेगा, देश खुशहाल नहीं हो सकता। उत्तर प्रदेश के किसानों की पैदावार बढ़ाने के लिए सरकार हर खेत को पानी अभियान चला रही है। 3.77 लाख हैक्टेयर अतिरिक्त सिंचाई क्षमता में बढ़ोतरी इस बात का संकेत है कि सरकार किसानों के हित के लिए कड़े से कड़ा निर्णय ले सकती है।

योगी सरकार के साढ़े चार साल के कार्यकाल में 688 बाढ़ सुरक्षा योजना की पूर्णता यह बताने के लिए काफी है कि नीति और नीयत साफ हो तो असंभव कुछ भी नहीं है। 230 बाढ़ नियंत्रण परियोजनाएं पूर्णता की ओर बढ़ रही हैं। 1 लाख 49 हजार 802 किमी नहरों की सिल्ट की सफाई कराकर सरकार ने खेत के शीर्ष तक पानी पहुंचाने की जो रणनीति अपनाई है, उससे भला तो अंतत: किसानों का ही होने वाला है। ऐसे में जो लोग सरकार को किसान विरोधी करार देकर किसानों को गुमराह कर रहे हैं, उन्हें अपने दामन में भी एकाध बार जरूर झांक लेना चाहिए।

बुंदेलखंड में 19428 खेत-खलिहानों का निर्माण, किसान सम्मान निधि के तहत उत्तर प्रदेश के 2.54 करोड़ किसानों को 37531 करोड़ रुपये का हस्तांतरण, किसानों को 4.72 लाख करोड़ फसली ऋण का भुगतान और एमएसपी में दोगुना वृद्धि यह बताती है कि सरकार किसानों के साथ है और किसान नेता अपना राजनीतिक हित साध रहे हैं। वे किसानों के कंधे पर जुआ रखकर अपने लाभ की राजनीति कर रहे हैं।

सरकार जानती है कि अगर किसानों को समृद्ध और खुशहाल बनाना है तो उन्हें तकनीक और प्रौद्योगिकी से भी जोड़ना होगा। प्रौद्योगिकी आधुनिक युग की हकीकत है। इसलिए जरूरी है कि किसानों को बेवजह गुमराह करने की बजाय उसे नई प्रौद्योगिकी से जोड़ा जाए। जो भी राजनीतिक दल किसानों के साथ खड़ा होने का दंभ भर रहे हैं, उन्हें भी राजनीति से अधिक किसानों की बेहतरी पर ध्यान देना चाहिए, यही मौजूदा समय की मांग है।

(लेखक हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)

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