भगवान शिव से सीखें समदर्शी भाव से जीने की कला

भगवान शिव से सीखें समदर्शी भाव से जीने की कला
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प्रो.आरएन त्रिपाठी (समाजशास्त्र विभाग, काशी हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी संप्रति सदस्य, उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग प्रयागराज)

वेबडेस्क। सरल सहज भाव से बिना कुछ लिए अगर सदा केवल देने का कार्य अहर्निश कही चलता हो,और जहां कोई अवकाश नहीं होता तो वह दरबार भगवान शंकर का है।जहां ज्ञान विज्ञान और कर्म की अनंत रचनाएं, व्याख्या चलती रहती हैं ,दैहिक दैविक भौतिक ताप विनाश के लिए *त्रयः शूल निर्मूलनम शूलपाणि * के रूप में दया के लिए दान के लिए पीड़ा हरण के लिए जहां कोई अवकाश नहीं है,वह है शिव दरबार।नेटवर्क रूपी क्लाउड यानी अम्बर में दिगम्बर है तो एक देवता जो कह सकते हैं की दया करुणा बरसाने में हमेशा ऑनलाइन ही रहते हैं।स्वयं पावर हाउस की तरह स्थिरता रखते हैं लेकिन अपने गणों को घूमने फिरने की शिक्षा और सेवा अवकाश दे देते हैं। बिना स्विच के हमेशा दया करुणा शीतलता भरी चन्द्रमा रूपी लाइट जलाएं रखते हैं।दुष्टों को भयभीत करने हेतु मुण्डमाल से मुंड भी बार बार टकरा देते हैं।ऋषि कृषि का समन्वय नंदी भी उनके साथ रहते हैं,यानी पारिवारिक भाव की सम्पूर्णता का सर्वोच्च उदाहरण भगवान शंकर हैं।

प्रो.आरएन त्रिपाठी

(समाजशास्त्र विभाग, काशी हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी संप्रति सदस्य, उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग प्रयागराज)

वर्तमान में टूटते परिवार के दौर में भी पूरे परिवार को एक साथ लेकर चलते हैं जैसे लगता है कि, एक रेलवे स्टेशन हो जहां आनंद ही है,मंगल है, दांवपेच का कोई दंगल नहीं है जहां सब लोग एक साथ बैठते हैं, तो गुण धर्म के अनुसार अलग अलग,पर परिवार में एकता है।भगवान शंकर का शिवत्व उनका कार्य एकात्म संस्कृति का उत्थान है,जिस में सहिष्णुता सद्भाव और कर्म पालन है जरा उनके परिवार को देखें गणेश उत्तर भारत में ज्यादा प्रसिद्ध है तो दक्षिण भारत में उनके दूसरे पुत्र कार्तिकेय और मुर्गन के रूप में अर्थात संपूर्ण वैभव के देवता माने जाते हैं,मातृवत पोषण हेतु शक्तिपीठों में उनकी पत्नी पार्वती पूरे देश भर में हैं।वे तो स्वयं संपूर्ण हिमालय क्षेत्र अपने लिए रख लिए यहां तक की इस्लामिक देशों में नानी पीर कहे जाते हैं और पूरी दुनिया में पहले पैगंबर के रूप में अगर किसी को माना गया तो भगवान शिव को ही सभी लोग मानते हैं ।ऐसे में आप कह सकते हैं ये एक ऐसे महादेव हैं जो आज गुरु हैं आज रचनाकार हैं इसके बावजूद वो "निराकार मोंकार मूलं तुरीयं" हैं।समस्त कारणों के कारण है,अजं शाश्वतं कारण कारणानाम' है।

हिंदू धर्म में महाशिवरात्रि का विशेष महत्व है भगवान शिव का आज के दिन विवाह माना जाता है और आज ही के दिन भगवान शिव, शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए थे।फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी का विशेष महत्व होता है क्योंकि यह वसंत का संक्रमण काल होता है प्रकृति अपने श्रृंगार की पूर्णता प्राप्त करती है मां पार्वती प्रकृति स्वरूपा है इसलिए सज धजकर आज विवाह करने जा रही हैं।भगवान शंकर का परिवार देखे तो शीश पर जल यानी गंगा,बैठे कैलाश, यानी आकाश चन्द्रमा अर्थात अग्नि,प्राप्ति पृथ्वी पर यानी पंचतत्व का साकार रूप भगवान शंकर हैं। डमरु सेना दृष्टि क्योंकि दमन हेतु कार्तिकेय और गणेश जैसे सेनापतियों को जोश भी उन्हें देना है। पुत्र के रूप में पशु मानव का संयुक्त समन्वय के प्रतीक गणेश और मानवता से पशुता निकालने और उसका विनाश करने वाले कार्तिकेय जी हां। परिवार देखिए एक प्रकार से डिटॉक्सिफिकेशन करने वाला है, भगवान शिव का परिवार है जो मानवता और प्रकृति में विषाक्तता है उसका शमन करते हैं। अपरिग्रह तो देखिए न खाने का न रहने का कोई ठिकाना नही है। पुत्र हैं वह कहीं कैथ तो और जामुन खाकर अपना गुजारा कर लेते हैं क्योंकि कहा जाता है कि गणेश विवेक के देवता है जो खट्टा और मीठी दोनों परिस्थितियों में समान भाव जागृत रखना चाहिए तभी प्रसन्नता का मोदक मिलता है, के प्रतीक हैं। मां पार्वती का वाहन सिंह है जो कभी संग्रहित प्रकृति का नहीं है गणेश का वाहन मूषक है शिव के मस्तक और हाथ में सर्प हैं ,उदाहरण देखिए समन्वय सहानुभूति का है,समन्वय अनेकता में एकता का है, समन्वय सबको साथ लेकर के चलने का है।

भगवान शंकर जैसा की प्रसिद्ध है कि विश्व के इकलौते 'एंटीडोट' हैं जो समस्त विषों का शमन करते हैं। जितने प्रकार के अल्कलॉइड्स भांग धतूरा मदार उनके ऊपर इसलिए चढ़ता है कि जब आप मतिभ्रम हो जाएं जब आप के अंदर अस्थिरता आ जाए तब आप शिव की तरह अपने को विष रहित अर्थात इन सबसे निराभिमानी बने रहिये। शिव ही संपूर्ण ब्रह्मांड के कह सकते हैं माइट्रोकांड्रिया हैं जो ऊर्जा देते हैं और परमाणु बम की तरह ऊर्जा से नष्ट भी करने की शक्ति रखते भी रखते हैं।हलाहल विष पीते हैं और समस्या का हल भी करते हैं।शिव मानसिक विकारों के शमन के देवता हैं शिव शक्ति का दिव्य मिलन है कि यह सृष्टि के आरंभ होती है और यहीं से समाज का निर्माण होता है।

अंततः समस्त लोक के शोक नाशन श्लोक स्वयं तुलसी ने लिख कर यही कहा!भवानी शंकरौ वन्दे श्रद्धा विश्वास रूपिणौ। याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धाः स्वान्तःस्थमीश्वरम्।। (रामचरितमानस,बालकाण्ड १/२) अर्थात्- श्रद्धा स्वरूप माँ पार्वती और विश्वास रूप प्रभु शिव को मै प्रणाम करता हूँ इन दोनों के बिना सिद्ध लोग भी अपने हृदय में बसे ईश्वर(सुख शान्ति)को नहीं पा सकते।

प्रतिवर्ष आने वाला यह पर्व हमको समरस बनाने के लिए आता है हमारी भावनाओं में परोपकार सहज सरल सरस सहयोग की प्रवित्ति को आत्म सात करने की प्रेरणा देता है,हमारी भावनाओं में जो राग द्वेष,कल्मष कषाय का जड़त्व आ गया है उसे जड़त्व को समाप्त करने के लिए आता है और यह भी शिक्षा देता है कि जैसे भगवान शंकर वनस्पतियों जीव जंतुओं जड़ चेतन सबको आत्मसात किए हुए हैं वैसे हमें भी पर्यावरण के प्रति भी आत्मसात सचेष्ट रहकर उसे सुरक्षित रखना होगा।जीवन मनुष्य का बहुत छोटा है भगवान शंकर के विवाह का यह शिवरात्रि पर्व यह शिक्षा देता है कि जितने ही दिन रहो उतने दिन समन्वय व समरस भाव से मानवता और परोपकार के संरक्षण के लिए कुछ कीजिये,तभी भगवान शंकर के विवाह की तरह आपके जीवन मे भी मंगल होगा, और जैसे उनके विवाह से असुरों का नाश हुआ था वैसे आप भी मानवता पर छाये कुहांसे को हटा पाएंगे,तभी महा शिवरात्रि की सच्ची सार्थकता होगी।

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