#MPElection2023 : नन्ना की विधानसभा पिछोर में 30 साल से जीत के इंतजार में भाजपा

#MPElection2023 : नन्ना की विधानसभा पिछोर में 30 साल से जीत के इंतजार में भाजपा
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मप्र विधानसभा से पहले मध्यभारत की विधानसभा में सदस्य रहे लक्ष्मीनारायण गुप्ता नन्नाजू के नाम से पिछोर विधानसभा की लंबे समय तक पहचान रही। नन्ना जू अंग्रेजी राज में वकालत की पढ़ाई करने वाले प्रदेश के चुनिंदा नेताओं में एक थे।वे दो बार मप्र के राजस्व मंत्री भी रहे और 100 साल की उम्र तक जीये। इसके बाबजूद शिवपुरी जिले की पिछोर विधानसभा में भाजपा 1993 से जीत के लिए तरस रही है। पार्टी के सभी प्रयोग यहां फेल हो चुके हैं और इस चुनाव में भी यहां नतीजों को लेकर राजनीतिक विश्लेषक भाजपा के लिए मुफीद मानकर नही चल रहे हैं।

खनियाधाना की स्वतंत्र और राष्ट्रवादी रियासत इसी विधानसभा में स्थित है जहां के राजा खलकसिंह जूदेव ने अमर शहीद चंदशेखर आजाद को अपने यहां पनाह दी थी।

इस विधानसभा से कांग्रेस के केपी सिंह लगातार 6 बार से विधायक है और इस आम चुनाव में भी वे उम्मीदवार होंगे।भाजपा ने यहां से ग्वालियर के नेता प्रीतम सिंह लोधी को तीसरी बार मैदान में उतारा है।पिछले दो चुनाव में उन्होंने टक्कर तो तगड़ी दी लेकिन जीतने में नाकाम ही रहे। सीट पर लोधी,यादव,आदिवासी,जाटव,ब्राह्मण,बघेल,वैश्य,जातियों की बहुलता है।सर्वाधिक संख्या लोधी जाति के मतदाताओं की है।,1977,1980,1985 में लोधी जाती के विधायक यहां से निर्वाचित भी हुए।लेकिन यह भी तथ्य है कि बगैर सँख्याबल के वैश्य जाती के लक्ष्मीनारायण गुप्त भी यहां से विधायक बनते रहे है। कमोबेश मौजूदा विधायक केपी सिंह कक्काजू भी इसी श्रेणी के नेता है जिनकी जाति संख्या लोधी या यादवों की तुलना में बेहद कम है।पिछोर में 1998 से मतदान औऱ राजनीति का ट्रेंड लोधी जाति विरुद्ध अन्य समाज का आकार ले चुका है।यही कारण है कि 1998 से लगातार लोधी जाति के उम्मीदवार यहां केपी सिंह के हाथों शिकस्त झेल रहे है,इनमें 2003 में उमा भारती के भाई स्वामी प्रसाद लोधी भी शामिल हैं।प्रचंड उमा लहर भी स्वामी लोधी को यहां केपी सिंह के आगे जीत नही दिला पाई थी।

केपी सिंह की राजनीतिक ताकत उनका सर्वहारा वर्ग में जबरदस्त प्रभाव है।वे साल भर अपने क्षेत्र में सक्रिय रहते है जबकि भाजपा के नेता केवल चुनाव के समय उनके सामने खड़े होते हैं।

प्रीतम का विवाद और वापिसी

भाजपा प्रत्याशी प्रीतम लोधी को लेकर क्षेत्र के सवर्ण मतदाताओं में उनके पुराने बयानों को लेकर नाराजगी है।पार्टी ने उन्हें इसके चलते निष्कासित भी कर दिया था।भाजपा में स्थानीय दावेदार भैया साब लोधी,नवप्रभा पडरया,जगराम यादव,जैसे नेताओं के साथ भी उनकी पटरी नही बैठती है।

गांव गांव 100 रुपए चंदा

पिछले दो चुनाव हार चुके प्रीतम लोधी इस बार सहानुभूति लहर खड़ी करना चाहते है।वे गांव गांव जाकर मतदाताओं से 100-100 रुपए चंदा एकत्रित कर रहे है।लोधी मतदाता उन्हें सहयोग भी कर रहे है।लेकिन पिछोर में भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनावी चुनौती मतदान को लोधी बनाम अन्य समाज रोकने की है क्योंकि इसी एक फ़ैक्टर ने केपी सिंह को इस क्षेत्र में अपराजेय बनाने में एक महत्वपूर्ण कारक की भूमिका निभाई है।

छोटे जाति समूह केपी सिंह की ताकत

पिछोर में छोटे सँख्याबल वाले जाति समूह केपी सिंह की ताकत है जिनके साथ उनका जीवंत संपर्क है। पाल, बघेल, सेन, स्वर्णकार, वंशकार, प्रजापति, परिहार, ब्राह्मण, वैश्य, कुशवाहा, बाल्मीकि, रजक, खटीक जैसी जातियों के समूह कांग्रेस उम्मीदवार को बहुसंख्यक लोधियों के विरुद्ध लामबंद करने का काम करती हैं।

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