अलविदा अभिनय सम्राट दिलीप कुमार उर्फ युसूफ खान

अलविदा अभिनय सम्राट दिलीप कुमार उर्फ युसूफ खान
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यतीन्द्र चतुर्वेदी

वेबडेस्क। मोहम्मद यूसुफ खान जिन्हें भारतीय सिने जगत में सभी दिलीप कुमार के नाम से जानते थे अब हमारे बीच नहीं रहे। अपने किसी इन्टरव्यू के दौरान उन्होंने एक शेर पढ़ा था -

जहां में अहल-ए- ईमां सूरते खुर्शीद (सूरज) जीते हैं,

इधर डूबे उधर निकले,

उधर डूबे इधर निकले ।

वे एक लंबे अर्से से बीमार चल रहे थे। अभिनय सम्राट ट्रेजडी किंग दिलीप कुमार सिनेमा का सूरज 7 जुलाई 2021 को सदा के लिऐ अस्त हो गया । दशकों तक फिल्मी दुनियां में अभिनय के उच्चतम मापदंड स्थापित करने वाले दिलीप कुमार सिने जगत के न जाने कितने अभिनेताओं के आदर्श रहे हैं।पारंपरिक सिनेमा का वो दौर सिनेमा देखने जाने की बात होने का मतलब पंख लग जाना हुआ करता था, फिल्म दिलीप कुमार की है तो पहला दिन पहला शो देखना एक कीर्तिमान के समान होता था। अट्ठानवे वर्ष की आयु में आपका निधन न जाने कितनी फिल्मों की विरासत छोड़ गया है जो ताउम्र हमारी यादों में बसी रहेंगी ।

पेशावर में जन्मे दिलीप -

दिलीप कुमार के नाम से दिलों पर राज करने वाले यूसुफ़ का जन्म 11 दिसंबर 1922 को पेशावर में हुआ था । न जाने कितनी फिल्मों के यादगार रोल कितने खिताब कितने अवार्ड हासिल कर वे अमर हो गए हैं । मुग़ले आज़म क्रांति, मधुमती, गोपी, सौदागर , लीडर, कर्मा, नया दौर, राम और श्याम, शक्ति, विधाता, गंगा जमुना , सगीना मैहतो ,दास्तान और भी न जाने कितनी फिल्में हैं जो दिलीपजी की अदाकारी के लिए दर्शकों के दिलो दिमाग पर छाई हैं और छाई रहेंगी ।

निशान-ए-इम्तियाज से सम्मानित -

1980 में उन्हें सम्मानित करने के लिए बम्बई का शेरिफ घोषित किया गया। 1994 में 42वें दादासाहेब फालके पुरस्कार से दिलीपकुमार को सम्मानित किया गया। इसके अलावा दिलीप कुमार को पाकिस्तान के सर्वोच्च नागरिक सम्मान निशान-ए-इम्तियाज से भी सम्मानित किया गया था । 1998 में बनी फिल्म क़िला उनकी आखिरी फिल्म थी ।दिलीप कुमार की पहली हिट फिल्म जुगनू मानी जाती है पर उससे पहले की फिल्म ज्वार भाटा (1944) कोई खास असर नहीं छोड़ पाई थी ।

राज्यसभा सदस्य रहे -

वर्ष 2000 से वे राज्य सभा के सदस्य रहे। मीना कुमारी देविका रानी ,सायरा बानो, मधुबाला, सुरैया और भी न जाने कितनी अभिनेत्रियों ने दिलीप साहब के साथ काम किया । प्राण, जीवन ,नासिर हुसैन पृथ्वीराज कपूर, ओमप्रकाश आदि सह अभिनेताओं के रुप में विख्यात हुऐ थे।उनके समकालीन अभिनेताओं में देव आनंद, राजेन्द्र कुमार ,राजकुमार, सुनील दत्त, राजकपूर, मनोज कुमार भारतभूषण प्रमुख थे। कालांतर में राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन ,अनुपम खैर के नाम उल्लेखनीय हैं ।

संवाद बोलने में महारत -

आपका संवाद बोलने का अंदाज़ बहुत ही स्वभाविक और प्रभाव शाली था ।लो पिच पर बहुत धीमे स्वर में संवाद के अदा करने की शैली को स्थापित करने वाले और कोई नहीं दिलीप साहब ही थे ।लेकिन संवादों को जरूरत के मुताबिक लाउड शैली में भी बोल कर वे दर्शकों का दिल जीत लेते थे और सिनेमा हॉल तालियों से गूंज उठता था ।किसी भी शुरुआत करने वाले अभिनेता की सफलता इसी बात से सुनिश्चित हो जाती थी कि उसने मात्र एक संवाद आत्म विश्वास से दिलीप कुमार के सामने बोल दिया। पर्दे पर उनके द्वारा अदा किए गए न जाने कितने गाने आज भी जनमानस के दिलों में गूंजते हैं।

ये गीत हुए प्रचलित -

ये देश है वीर जवानों का, राम चंद्र कह गए सिया से , साला मैं तो साहब बन गया, न तू ज़मीं के लिए है और न आसमां के लिए, इमली का बूटा, नैन लड़ जहिऐं तो मनवा में कसक हुइबै करी, आज की रात मेरे दिल की सलामी लेले ,कल तेरी बज़्म से दीवानां चला जाएगा शम्मा रह जाऐगी परवाना चला जाएगा। सत्यजीत रे दिलीप कुमार को सबसे बड़ा मैथड अभिनेता मानते थे ।

63 फिल्मों में किया काम -

दिलीप कुमार ने छह दशकों तक चले अपने फिल्मी करियर में मात्र 63 फिल्मों में काम किया था लेकिन उन्होंने हिंदी फिल्मों में अभिनय को एक नया आयाम दिया था । अभिनय में स्वाभाविक मौन संवादों के बीच में उनका पौज कमाल का प्रभाव छोड़ता था । दिलीप कुमार, राजकपूर और देव आनंद को फिल्म जगत की त्रिमूर्ति कहा जाता था पर दिलीप कुमार की अभिनय अदायगी बहुमुखी मानी जाती थी।

ऐसे बने युसूफ से दिलीप -

देविका रानी का मानना था कि एक रोमांटिक हीरो पर यूसुफ खा़न नाम नहीं जमेगा। तब पंडित नरेन्द्र शर्मा ने तीन नाम सुझाऐ थे । जहांगीर, वासुदेव और दिलीप कुमार । ज़ाहिर है दिलीप कुमार को दिलीप नाम पसंद आया था। फिल्म कोहिनूर में एक गाने में सितार बजाने वाले के किरदार के लिए उन्होंने सालों तक उस्ताद अब्दुल हलीम ज़ाफर खां से सितार बजाना सीखा । बीबीसी प्रसारण सेवा से बात करते हुए उन्होंने बताया था कि वर्षों तक आपने मात्र यह सीखा कि सितार पकड़ा कैसे जाता है ।इसी तरह नया दौर में तांगा चलाने के लिए तांगा चालक से काफी ट्रेनिंग ली ।

आत्मकथा में खोले कई राज -

ट्रेजडी किंग कहे जाने वाले दिलीप साहब कई मर्तबा अभिनय के दौरान डिप्रेशन का शिकार हो जाते थे ।दिलीप कुमार ने सबसे अधिक सात फिल्में नरगिस के साथ की थीं पर अपनी आत्मकथा द सब्सटैंस एंड द शैडो में दिलीप कुमार स्वीकार करते हैं कि वो मधुबाला की ओर आकर्षित थे ।दिलीप कुमार की जीवनी लिखने वाले मेघनाथ देसाई लिखते हैं कि दिलीप साहब को सफेद रंग बहुत प्यारा था ।

शेर- शायरी का शौक -

वो पढ़े लिखे शख्स थे, शायरी और साहित्य में उनकी गहरी रुचि थी । उर्दू, हिंदी, अंग्रेज़ी , पश्तौ आदि भाषाओं पर उनका समान अधिकार था ।वो मराठी, भोजपुरी और फारसी भी अच्छी तरह बोल और समझ सकते थे।दिलीप साहब खेलों के भी शौकीन थे आप फुटबॉल, बैडमिंटन और क्रिकेट खेलते थे।दिलीप कुमार साहब को 1991 में पद्मभूषण और 2016 में पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया था । 7 जुलाई 2021 सुबह साढ़े सात बजे आपने अंतिम सांस ली । आपके निधन से सिने जगत को अपूर्णीय क्षति हुई है, आपको कोटि कोटि नमन दिलीप साहब।

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