1962 में पीतांबरा पीठ में हुए यज्ञ के बाद चीन ने वापस बुला ली थी सेना
दतिया/ ग्वालियर।
जब चीन ने देश पर हमला किया तो उस समय पीतांबरा शक्तिपीठ में हुआ था 51 कुंडीय यज्ञ
भारत आदि काल से ही ईश्वर के प्रति श्रद्धा भाव रखने वाला देश रहा है। संकट की घड़ी हो या ख़ुशी का अवसर हम ईश्वर को याद करना नहीं भूलते। इसके साथ ही भारत में यज्ञ आदि अनुष्ठानों का भी विशेष महत्व रहा है। धन,ऐश्वर्य,सुख पाने के साथ शत्रुओं का अंत करने के लिए भी यज्ञ और अनुष्ठान किये जाते रहे है। यही कारण है की कभी पुत्र प्राप्ति, कभी शत्रुनाश आदि के लिए पुरातन काल से राजा-महाराजाओं द्वारा यज्ञ अनुष्ठान किये जाते रहें है। त्रेता काल में भी रावण पुत्र मेघनाद ने भगवान राम और लक्ष्मण पर विजय पाने के लिए एक यज्ञ किया था।
1962 में अंतिम आहुति के बाद चीन हटा पीछे
ऐसा ही एक यज्ञ 1962 में हुए भारत-चीन युद्ध को रोकने के लिए किया गया था। जिसकी पूर्णाहुति होते ही चीन ने अपनी सेना को वापस बुला लिया था। दरअसल, साल 1962 में जब चीन ने बिना बताये भारत पर अचानक आक्रमण कर दिया। उस समय इस विध्वंशकारी युद्ध को रोकने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने यज्ञ करवाने की इच्छा जाहिर की थी। उनके इच्छा जताने के बाद मध्यप्रदेश के दतिया जिले के पीतांबरा पीठ के स्वामी जी आगे आये। तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू के अनुरोध पर शक्तिपीठ में 51 कुंडीय यज्ञ किया। यह यज्ञ लगातार 11 दिनों तक चला था। इसके अंतिम दिन पूर्णाहुति होने के साथ ही चीन ने अपनी सेना वापिस बुला ली थी। यह 51 कुंडीय यज्ञशाला आज भी पीतांबरा पीठ में बनी हुई है। इस युद्ध के बाद से पीतांबरा पीठ का महत्व देश में बहुत बढ़ गया।
1965, 1971 और कारगिल युद्ध में भी हुए अनुष्ठान
उसके बाद से जब भी देश में कोई संकट आया यहाँ पर गोपनीय ढंग से यज्ञ किया गया।1962 में भारत-चीन युद्ध ही नहीं बल्कि 1965 और 1971 में हुए भारत -पकिस्तान युद्ध के समय भी यहाँ यज्ञ किया गया था। कारगिल युद्ध के समय भी अटल बिहारी वाजपेयी की ओर से पीठ में एक यज्ञ का आयोजन किया गया था। जिसके अंतिम दिन पाकिस्तान को पीछे हटना पड़ा।
शत्रु नाशक माँ धूमावती-बगलामुखी का एकमात्र मंदिर
दतिया में स्थित पीतांबरा शक्ति पीठ में माँ बंगलामुखी के साथ धूमावती माता का मंदिर है।माना जाता है कि बगलामुखी के साथ ही धूमावती की साधना से शत्रु मिट जाते हैं, इसलिए दतिया के पीताम्बरा पीठ में मां बगलामुखी के साथ ही मां धूमावती की भी स्थापना की गई है।यह विश्व का एकमात्र मंदिर है,जहाँ दोनों देवियाँ एक साथ उपस्थिति है। मान्यता है कि मां धूमावती की साधना करने वाले को दुश्मन नष्ट हो जाते हैं। लड़ाई-झगड़े, कोर्ट कचहरी में विजय के लिए मां धूमावती की साधना की जाती है।