भगवान बिरसा की विरासत को आगे बढ़ा रहे है शिवराज सिंह चौहान

भगवान बिरसा की विरासत को आगे बढ़ा रहे है शिवराज सिंह चौहान
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विराट नगरी शहडोल में वनवासी में धूमधाम से मना जनजातीय गौरव दिवस

वेबडेस्क। आदिवासी समुदायों के गौरवशाली इतिहास और सांस्कृतिक विरासत को भाजपा ने हमेशा से स्वीकृति प्रदान की है। योंकि भाजपा के कई नेता व कार्यकर्ता जल, जंगल व जमीन से जुड़े रहे हैं। यह कोरी कल्पना नहीं है, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भगवान बिरसा मुंडा के प्रति कई मंचों पर जिन भावों के साथ उनके स्वतंत्रता आंदोलन, समाज सुधार व आदिवासी कल्याण के दिए गए योगदानों का स्मरण किया, उससे प्रधानमंत्री की भारतीय आदिवासी समुदाय के प्रति आत्मीयता की एक झलक भर है और मध्य प्रदेश में आदिवासी समुदाय के प्रति आत्मीयता को राष्ट्रीय अस्मिता के साथ मुयमंत्री शिवराज बखूबी आत्मसात कर रहे हैं।

जनजातीय गौरव दिवस के अवसर पर शहडोल में शिवराज सरकार ने जिस मनायोग से आदिवासी संस्कृति का उत्सव मनाया, उससे ना केवल मप्र के आदिवासी समुदाय की सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण को बल मिलेगा बल्कि, उनके अधिकारों की रक्षा के साथ उनमें आत्मविश्वास और ग्रामीण जीवन सीधे विकास से भी जुड़ेगा। शहडोल में जनजातीय गौरव दिवस मप्र के साथ मुयमंत्री शिवराज के लिए भी कई मायनों में खास रहा। एक तो मुयमंत्री शिवराज के प्रयासों से राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का आतिथ्य शहडोल वासियों को मिला। दूसरा मप्र में पेसा कानून की नियमावली लागू हो गयी, तीसरा एक लाख से अधिक आदिवासी समुदाय के बंधुओं के साथ कार्यक्रम में 11 जिलों के लोगों और मंत्री व जनप्रतिनिधियों की उपस्थिति ने जनजातीय गौरव दिवस के इस उत्सव को ऐतिहासिक स्वरूप दे दिया। शहडोल में आयोजित जनजातीय गौरव दिवस मप्र की राजनीति खासकर भाजपा के लिए आने वाले दिनों में उसके मिशन-2023 की सफलता को भी तय करेगा।

शहडोल के अलावा प्रदेश के 89 लॉक में भी जनजातीय उत्सव उत्साह के साथ मनाया गया। इस उत्सव में भाजपा कार्यकर्ता भी सहभागी रहे। भाजपा के लिए मप्र का जनजातीय समुदाय इसलिए भी महत्वपूर्ण है योंकि मध्य प्रदेश में आदिवासियों के लिए 47 विधानसभा सीट आरक्षित हैं और लगभग 29 सीट ऐसी हैं, जहां आदिवासी वर्ग निर्णायक भूमिका में है। मालवा और महाकौशल में आदिवासी क्षेत्र का राजनीतिक दृष्टि से व्यापक प्रभाव है। पिछले चुनाव में आदिवासी वोट भाजपा से छिटककर कांग्रेस के साथ चला गया था। इसके कारण भाजपा 109 सीटों पर सिमट गई थी। जबकि, कांग्रेस को 114 सीटें मिली थीं। दरअसल, प्रदेश में आदिवासी वर्ग जिस दल के साथ होता है, वह साा में आता है। पिछले चुनाव में कांग्रेस को अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित 47 सीटों में से 31 सीटें मिली थीं। जबकि, भाजपा 15 सीटें ही जीत पाई थी। 2011 की जनगणना के अनुसार जनजातियों का प्रतिशत मध्यप्रदेश में 21.1 है। लगभग 24 जनजातियां यहां निवास करती हैं। इनकी उपजातियों को मिलाकर इनकी कुल संया 90 है।

मध्यप्रदेश में लगभग 1.53 करोड़ जनसंया इन जनजातियों की है, जो अब भी भारत में सर्वाधिक है। इसमें भील, गोण्ड, बैगा, सहरिया, कोरकु, उरांव, बंजारा के अलावा खैरवार, कोरवा, धानुक, सौर, बिंझवार जनजातियां भी मध्यप्रदेश की राजनीति को प्रभावित करती हैं। पिछले 6 वर्षो में केंद्र सरकार के साथ वर्तमान शिवराज सिंह चैहान की सरकार ने इन जनजातियों की विशिष्ट कलासंस्कृति और परंपराओं को पहचान दिलायी है। दरअसल, मुयमंत्री शिवराज सिंह चैहान अब सोशल इंजीनियरिंग के बजाय केंद्र व अपनी सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं के सहारे अगले विधानसभा चुनाव में उतरने की तैयारी कर रहे हैं। आदिवासी गौरव दिवस के अवसर पर राज्य सरकार द्वारा पेसा अधिनियम के तहत बनाए गए नियमों को लागू करने का लाभ शिवराज सरकार को मिलना तय है। योंकि पेसा अधिनियम के लागू होने के बाद से 89 आदिवासी विकासखंडों की ग्राम सभा को स्थानीय स्तर पर रोजगार, वन प्रबंधन, भूमि प्रबंधन और अन्य क्षेत्रों के अधिकार तो मिलेंगे साथ ही अब भूमि अधिग्रहण के बारे में भी ग्राम सभा को निर्णय लेने का अधिकारी भी मिल जाएगा।

इसके अलावा आदिवासी युवाओं को स्वरोजगार के अधिक अवसर प्रदान करने के लिए भगवान बिरसा मुण्डा स्वरोजगार योजना, टंट्या मामा आर्थिक कल्याण एवं मुयमंत्री अनुसूचित जनजाति विशेष विापोषण योजना भी आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा को लाभ पहुंचाएगी। आदिवासी कल्याण की योजनाओं के धरातल पर पहुंचने के बाद भाजपा संगठन को विश्वास है कि राज्य में उसका जनाधार 51 प्रतिशत से अधिक हो जाएगा। आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा को कितना लाभ होगा, यह तो अगले वर्ष में ही पता चलेगा, लेकिन, जनजातीय गौरव दिवस ने वीर आदिवासियों के स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान से लेकर उनकी सांस्कृतिक निष्ठा और समर्पण से राष्ट्र को परिचित अवश्य करा दिया है।

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