जलस्रोतों की सांसें दबाने का षड्यंत्र..!
वेबडेस्क। इंदौर का बावड़ी हादसा हमारी संपूर्ण सामाजिक, राजनीतिक और प्रशासनिक व्यवस्था पर एक ऐसा दाग है, जिसे हम सबक और संवेदनाओं का साबुन रगड़कर भी नहीं छुड़ा पाएंगे..! क्योंकि इस हादसे की मूल जड़ या कारण बावड़ी की कमजोर जीर्ण-शीर्ण मुंडेर-स्लैब-ढक्कन नहीं.., बल्कि संपूर्ण तंत्र के नैतिक दायित्वोरूपी सरियों में लगी भ्रष्टाचार, स्वार्थ, संकीर्णता और अंधविश्वास की जंग है, जिससे आगे रह- रहकर हमारी ईमानदारी, नैतिकता, संवेदना और विश्वास हार रहा है... कुछ बावड़ी जैसे जलस्रोतों को समतल करने की पहल हादसे का सबक नहीं, मनुष्य के साथ प्रकृति की सांसे दबाने-हत्या करने का षड्यंत्र भी है..!
श्री रामनवमी का दिन 36 जिन्दगियों के लिए इंदौर में 'बावड़ी हादसेÓ के रूप में दुखदकाल के ग्रास की पराकाष्ठा का दुरुपयोग बन गया.., लेकिन इसे हम नियति मानकर, प्राकृतिक हादसा बताकर या हवन में हाथ जलाने वाली कहावत निरूपित करके भयावह मामले को रफा-दफा नहीं कर सकते और इससे भी आगे बढ़कर 36 जिन्दगियों का हिसाब देने-लेने के एवज में जलोतों की ताबड़तोड़ सांसें दबाने वाला सरकारी स्तर का प्रदेशस्तरीय प्रकृति विरोधी कृत्य तो बिल्कुल भी नहीं कर सकते..! ऐसा करके हम 36 जिन्दगियों को खोकर कोई सबक ना लेने की हठधर्मिता ही दिखा रहे... इस 'बावड़ी हादसेÓ में हम बिना सोचे-समझे अचानक जिस बावड़ी का जबरिया मुँह बंद कर रखा था, उसे 'हत्यारिनÓ बावड़ी, बावड़ी ने उगले इतने शव... जैसे संबोधन देने में भी देर नहीं लगाते.., मानो वह (बावड़ी) कभी असंख्य कंठों की प्यास बुझाने वाली अचानक ही कोई अजगर-मगरमछ बन गई हो..? आखिर मनुष्य इतना लालची, मतलबी और संवेदनहीन कैसे हो सकता है कि वह अपने किए गए अपराध के लिए भी दूसरों तथा प्रकृति, जलोतों, भाग्य और योग-संयोग-कालचक्र को जिम्मेदार ठहराकर स्वयं पाकसाफ होने का ढोंग करता नजर आए, तुगलकी फरमान सुनाए और 'हादसोंÓ को परिपाटी मानकर उससे सबक लेना भी उसे गंवारा ना हो तो फिर शर्म है ऐसे मनुष्य पर... और ऐसी मनुष्यता पर भी..!
क्या इंदौर का बावड़ी हादसा 2 लोगों और अधिकारियों की अक्षम्य गलतियों की पराकाष्ठा का परिणाम है..? इन चार लोगों की सजा यही है कि दो को निलंबित कर दिया जाए और बाकी फरार पर मुकदमे दर्ज कर फाइल को ठंडे बस्ते में डाल दिया जाए..? क्योंकि अभी तक के असंख्य हादसे जिसमें कारखानों में भयावह दुर्घटना होने पर पुल-ब्रिज क्षतिग्रस्त बाधित होने-यात्री बसों में आग लगाने, बांधों के टूटने-रिसने, अचानक विस्फोट होने और नेत्र शिविर में आंखें गंवाने के जैसे असंख्य घटनाक्रम/हादसे/लापरवाहियां हंै, जिनमें प्राण गंवाने वालों, पीड़ितों की संख्या असंख्य हंै, लेकिन हर बार की तरह हम हादसों से सबक के आदी हंै कहा..? तभी तो इंदौर बावड़ी हादसे के जिम्मेदारों को सजा देने पूरे घटनाक्रम से सबक लेने के बजाय पूरे प्रदेश में एक माह में कुएं-बावड़ी व अन्य जलोतों को अतिक्रमण से मुक्ति दिलाने के बजाय इन जलोतों की रही-सही सांसों को भी दबाने की योजना बना चुके हैं... ऐसे में इंदौर-बावड़ी हादसे के असल गुनहगार शिकंजे से दूर होते जा रहे हैं..! क्या यही है हमारे संपूर्ण तंत्र एवं मनुष्य मात्र के लिए बावड़ी हादसे का सबक..? क्योंकि सबसे पहले तो जिसने श्री बेलेश्वर महादेव मंदिर मामले में सरकारी भूमि के पते पर सोसायटी का पंजीयन किया, ऐसी जिम्मेदार फर्म एंड सोसायटी पर प्रकरण दर्ज क्यों नहीं हुआ..? फिर ऑडिट रिपोर्ट देने वालों के खिलाफ भी क्यों न जांच हो, पुलिस एफआईआर की जाए, कौन-कौन से नेताओं की अनुमति और अनुशंसा पर यह जमीन तहसील कार्यालय से अलाट की गई..? पटवारी से रिपोर्ट लेकर क्या कलेक्टर को इस मामले में ताबड़तोड़ कार्रवाई नहीं करना चाहिए..?
आपदा प्रबंधन में हम पूर्णत: विफल हैं... 27 घंटे के रेस्क्यू ऑपरेशन में एक-एक कर जैसे-जैसे घरों के बुझे हुए 36 चिराग निकल रहे थे, पीड़ा के साथ गुस्सा भी पनप रहा था... एक साथ पटेल/पाटीदार के 11 घरों से या सिंधी समाज पर सामूहिक वज्रपात के बाद निकली शवयात्राएं, रीजनल पार्क मुक्तिधाम पर सामूहिक अंतिम संस्कार, उठावने, सामूहिक पगड़ी, नेताओं के बयान, शहर का गुस्सा सबकुछ... ये सभी दृश्य बीता समय था जो गुजर गया... अब हमारे पास हैं तो बस ढेर सारी यादें और कुछ नसीहतें... लेकिन लगता है ये नसीहतें भी हमारी सरकार के कानों के मोम पिघलने के लिए नाकाफी हैं.., कौन जिम्मेदार था इस हादसे का..? कार्रवाई के नाम पर बावड़ी को ही हत्यारी बता दिया और बुलडोजर चलाकर उसकी हत्या भी कर दी... मंदिर बनाने वाले अब भी गिरफ्त से दूर हैं, चंदा लेने वाले फरार हैं... कुल जमा इस भयावह हादसे का हिसाब लगाएं तो हर किसी ने बहुत कुछ खोया है और बदले में पाया कुछ भी नहीं है... सिर्फ कुछ कुएं-बावड़ी पर कब्जे ढूंढने-तोड़ने के अलावा...
फिर इस संपूर्ण अवैध निर्माण के लिए जवाबदेह संरक्षक-मार्गदर्शक, संचालक, निगम दरोगा से लेकर उस समय के थाना प्रभारी तक को क्यों ना नापा जाए..? इस पर मामले में जहां-जहां लापरवाही बरती गई, उन सभी भ्रष्टाचार करने वाले उसमें सहयोगी बनने वाले प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष अंगों, सरकारी-राजनीतिक अपराधियों पर क्या सजा का डंडा चलेगा..? क्योंकि किसी को स्थानांतरण करने या पदोन्नति करने से मामला नहीं सुलझेगा... कार्रवाई के नाम पर एकतरफा रूप से शहर के या प्रदेश के कुएं-बावड़ी की खोज-खबर लेने का निर्णय भी पूरे मामले से पल्ला झाड़ने का निमित्त नहीं बन जाए... क्योंकि अब तक के हादसों एवं भयावह घटनाक्रम के बाद जो कार्रवाइयां हुई हंै, वह तो यही बताती हैं कि हमने हादसों से कोई सबक नहीं लिया... फिर सरकार या शासन-प्रशासन ही क्यों आम जनता ने भी कब और कहां इस तरह के हादसों से सबक सीखा है..? हर तरह के अवैध अतिक्रमण में जनता की अनदेखी या फिर मजहबी धर्मांधता ही आड़े आती है... बाद में वही लापरवाही या नजरअंदाज शैली उसकी जिन्दगी का काल बनकर उसी पर रह-रहकर टूटती नजर आती है..! ऐसे में जनता, प्रशासन एवं सरकार का मंदिर के लिए चिंता जताना और साक्षात देवतुल्य जलोतों पर मौन प्रकृति, मनुष्य दोनों के लिए घातक है..!