कोविड टीकाकरण : सफलतापूर्वक सम्पन्न कराना बड़ी चुनौती
वेबडेस्क। कोरोना संक्रमण की लहर को थामने में सफल नजर आ रहे भारत के लिए चुनौती अभी समाप्त नही हुईं हैं।वैक्सीन को लेकर बने उत्साह और आशा के मध्य 130 करोड नागरिकों को सुरक्षा कवच के रूप में टीकाकरण एक गंभीर चुनौती ही है।दुनियां के समक्ष मोदी सरकार के प्रबंधकीय कौशल के साथ यह भारतीय राजव्यवस्था की प्रमाणिकता का परीक्षण भी होगा कि कैसे नया भारत वेक्सिनेशन को सफलतापूर्वक संपन्न करता है।दुनियां की सत्रह प्रतिशत आबादी को समेटे हुए भारत में राजकीय व्यवस्था भी जटिलताओं से भरी है।इसलिए वैक्सीन अंतिम छोर तक उपलब्ध कराने के लिए मैदानी स्तर पर कठिन चुनोतियों का एक औऱ दौर 2021 में आरम्भ होने वाला है।
वर्तमान परिस्थितियों में उपयुक्त वैक्सीन का चुनाव,उसकी खरीदी,मात्रा,रखरखाब,प्राथमिक व्यक्तियों का चुनाव,वैक्सीन की कीमत,उपयुक्त समय,औऱ मानक पहुँच जैसे गंभीर सवाल आसान नही है।डब्ल्यूएचओ ने भी माना है कि वैक्सीन के निर्माण के साथ मानक टीकाकरण सुनिश्चित करना एक मुश्किल भरा टास्क है।सवाल यह है कि क्या भारत जिसे दुनियां के सबसे बड़े और 42 साल से निरन्तर चले आ रहे टीकाकरण अभियान का अनुभव है इस नए टीकाकरण को सफलतापूर्वक संपन्न कर पायेगा?
जमीन पर इसका जबाब शंकाओं को निर्मूल साबित नही करता है।क्योंकि महिलाओं एवं बच्चों के टीकाकरण औऱ कोविड में बुनियादी अंतर है।न केवल टीकाकरण की विधि बल्कि प्राथमिकता के मामले में भी यह अलग किस्म का अभियान होगा।गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं का एक डेटा सुस्थापित तंत्र के जरिये उपलब्ध रहता है।यह भी तथ्य है कि हर साल करीब 39 करोड खुराक ऐसे विभिन्न टीकों की हम उपलब्ध कराते है। लेकिन कोविड के मामले में टीकाकरण वयस्कों को होना है। गर्भवती महिलाओं और दस साल से कम के बालकों को वैसे भी इस टीकाकरण से बाहर रखा जा रहा है।पोलियो जैसी खुराक मुह से दी जाती है जबकि कोविड का टीका इंट्रामस्क्यूलर इंजेक्शन से दिया जाना है।भारत में इसके लिए कुशल पैरामेडिकल स्टाफ की कमी है डॉक्टर,नर्सेज़,डेंटिस्ट,फिजियोथेरेपिस्ट,कम्पाउंडर मिलाकर 35 लाख की संख्या है ।इनमें भी बड़ी संख्या प्रेक्टिशनर लोगों की नही है। सरकार द्वारा घोषित समयबद्व टीकाकरण के लिए करीब 40 लाख से अधिक पेशेवरों की आवश्यकता है।कुशल वेक्सीनेटर का मामला कठिन चुनौती है क्योंकि कोविड वेक्सीन को बहुत ही मानक तरीके से लगाया जाना है।यह भी सर्वविदित है कि भारत मे डॉक्टर्स इंजेक्शन आमतौर पर नही लगाते है और यह काम नर्सें ही करती आई है।भारत में मानक रूप से 6 लाख डॉक्टरों एवं 20 लाख नर्सों की कमी है।
सबसे अहम सवाल यह भी है कि सरकार किस वैक्सीन को अपने टीकाकरण के लिए चयनित करती है?फिलहाल पांच वैक्सीन ट्रायल के अंतिम स्तर पर है सीरम इंस्टीट्यूट औऱ भारत बॉयोटेक की वैक्सीन सरकार की प्राथमिकता में है। सीरम के प्रमुख अदार पूनावाला ने कहा है कि भारत सरकार ने उन्हें जुलाई 2021 तक 100 मिलियन डोज तैयार रखने को कहा है।माडर्ना और फाइजर के टीके भारत में इसलिये व्यावहारिक नही है क्योंकि इन्हें माइनस 20 और 70 डिग्री पर रखने के लिए हमारे पास स्टोरेज सिस्टम नही है।सीरम औऱ भारत बॉयोटेक के टीके मौजूदा उपलब्ध कोल्ड स्टोरेज सिस्टम में आसानी से रखे जा सकते है।संभवतः इसीलिए केंद्र सरकार ने राज्यों को जो निर्देश कोल्ड चैन के लिए जारी किए है उनमें कोई बुनियादी बदलाब नही किये है।राज्य सरकारों ने सेंट्रल स्टोरेज औऱ जिला मुख्यालय के वैक्सीन सेंटर्स में फ्रीजरों की क्षमता और संख्या ही बढ़ाई है ।इससे यह संकेत तो मिलता ही है कि माडर्ना या फाइजर के टीके भारत में नही लगने वाले है।कोल्डचैन को लेकर शुरुआती चरण में भले ही सब कुछ ठीक नजर आ रहा हो लेकिन मैदानी स्तर पर यहां भी समस्याएं अपार है।मप्र,बिहार,यूपी,ओडिसा,बंगाल,असम ,छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में सरकारी अस्पतालों की संख्या पहले ही राष्ट्रीय औसत से कम है।देश के 2.5 लाख प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में से 85 फीसदी ग्रामीण क्षेत्रों में ही है।यहां मानक परिस्थितियों में टीकाकरण संसाधनों की न्यूनता के चलते सम्पन्न कराना बिल्कुल भी आसान नही रहने वाला है। नीति आयोग के सदस्य डॉ वीके पाल की अध्यक्षता में बनाई कमेटी इस बात पर निगरानी रख रही है कि लक्षित वर्ग तक टीकाकरण का कार्य कैसे समय पर पूरा हो लेकिन बुनियादी समस्या राज्यों की खस्ताहाल स्वास्थ्य सेवाएं ही है।
टीकाकरण का एक अहम पक्ष इसके खर्च का भी है अगर यह मान लें कि सीरम इंस्टीट्यूट औऱ भारत बॉयोटेक के टीके को सरकार खरीदती है तब भी इसकी लागत 600 रुपए ( दो डोज) से कम नही होगी और सरकार अगस्त तक 30 करोड़ एवं 2022 तक 80 करोड नागरिकों को टीका लगाने की बात कह रही है।जाहिर करीब 35 हजार करोड़ की राशि इस साल इस टीकाकरण पर खर्च होनी है।राज्य सरकारें इस खर्च को वहन करेगी इसमें संदेह है साथ ही बिहार चुनाव में बीजेपी का मुफ्त टीकाकरण का वादा भी इसकी कीमत आम आदमी से वसूलने में आड़े आएगा। टीके की लागत, परिवहन,स्टोरेज,का खर्च हटा भी दें तब भी औसतन 150 रुपये प्रशासनिक व्यय के रूप में हर टीके पर आंकलित किये गए है।कोरोना से बिगड़ी राज्यों की आर्थिक हालत के मद्देनजर टीकाकरण का समेकित खर्च भी एक बड़ी समस्या के रूप में सामने खड़ा है।
बेहतर होगा सरकार निजी क्षेत्र को इस राष्ट्रव्यापी अभियान में भागीदारी दे क्योंकि सरकारी अस्पतालों तक एक बड़ा वर्ग वैसे भी नही आता है और वह अधिमान्य निजी केंद्रों पर सशुल्क टीका लगवा सकता है।निजी अस्पतालों,लेबोरेट्री औऱ कुछ बड़े एनजीओ को पार्टनर बनाकर भारत में यह टीकाकरण समयबद्धता के साथ पूरा किया जा सकता है। अगर 80 करोड़ लोगों को यह टीका दिया जाना है तो करीब 1.5 लाख टीकाकरण सेंटर्स चाहिये।अभी एक सरकारी टीकाकरण केंद्र पर प्रतिदिन 100 टीके लगाने की योजना निर्मित की गई है अतिरिक्त दक्ष स्टाफ की स्थिति में यह संख्या200 तक हो सकेगी।सवाल यह भी अहम है कि क्या सभी 130 करोड़ लोगों को यह टीका लगाया जाना है?केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने जुलाई अगस्त तक 30 करोड प्राथमिकता केंद्रित टीकाकरण लक्ष्य की बात कही है जिसमें सभी स्वास्थ्यकर्मियों,फ्रंटलाइन कोरोना वारियर्स,औऱ 65 से50 बर्ष की आयु वर्ग को शामिल किया गया है।अगले चरण में यह आंकड़ा 80 करोड तक जाना है।
आईसीएमआर प्रमुख बलराम भार्गव का भी मानना है कि कोरोना संक्रमण की चेन तोड़ना प्राथमिक आवश्यकता है यह 30 करोड के टीकाकरण से संभव है।असल में इस धारणा की प्रमाणिकता तो तभी सिद्ध होगी जब चयनित टीका दावे के अनुसार प्रभावी साबित हो।यानी टीकाकरण के बाद अगले छः महीने का पश्चावर्ती प्रभाव ही यह निर्धारित करेगा कि टीकाकरण सफल है या नही ?सीरम इंस्टिट्यूट की वेक्सीन के दो डोज 70 फीसदी सुरक्षा कवर देनें में सफल हुए है जो तीन से चार सप्ताह के अंतराल में लगने है।जाहिर है 30 करोड का आरम्भिक टीकाकरण जो दो चरण में है सफलतापूर्वक किया जाना आसान नही होगा।हालाकि सरकार ने इसके लिए एक ई पंजीयन सिस्टम ईजाद किया है जो बकायदा एसएमएस के जरिये स्लॉट बुक कर लोगों को सेंटर तक बुलायेगा लेकिन ग्रामीण इलाकों में फसल खरीदी के लिए अपनाया गया यह सिस्टम बहुत कारगर नही रहा है।
इसमें गैर प्राथमिकता वाले लोगों के घुस जाने का खतरा भी है क्योंकि निचले प्रशासनिक तंत्र में पारदर्शिता का आभाव है।बेहतर होगा सरकार इस मामले में नंदन नीलकेणी के आधार को अनिवार्य करने के सुझाव पर विचार करे।एक दूसरा पक्ष ट्रायल में चल रहे अन्य टीकों के बाजार में आने का भी है क्योंकि अगले तीन चार महीनों में दूसरे अन्य टीके भी सामने होंगे तब सरकार क्या उन्हें भी अपने टीकाकरण में शामिल करेगी ?सवाल औऱ जिज्ञासाओं के भयाक्रांत वातावरण में भारत क्या दुनियां में अपनी स्वास्थय व्यवस्था को प्रमाणित कर पायेगा इस पर सबकी निगाहें होगी।सरकार ने 29 हजार कोल्डचैन,41 हजार डीपफ्रीजर,300 सोलर रेफ्रिजरेटर समेत अन्य सभी संसाधन राज्यों को उपलब्ध करा दिए है।23 विभागों को नियोजन,क्रियान्वयन औऱ निगरानी के साथ जागरूकता से जोड़ा है।बाबजूद नागरिक जबाबदेही की आवश्यकता इस अभियान को अनिवार्यता है