देश को अंबानी चाहिए, या उनकी संपत्ति?

देश को अंबानी चाहिए, या उनकी संपत्ति?
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(मनीष खेमका)

रिलायंस के घोषित ताज़ा तिमाही नतीजों के मुताबिक़ अब कंपनी का सालाना कुल कारोबार ₹8.5 लाख करोड़ और शुद्ध मुनाफ़ा क़रीब ₹80 हज़ार करोड़ माना जा सकता है। राजनीतिक मुफ़्तख़ोरी से प्रेरित हमारी ग़रीब सोच के मुताबिक़ टाटा बिड़ला अंबानी जैसे इन सभी अमीरों का पैसा ज़ब्त कर उसे गरीबों में बाँट दिया जाना चाहिए। आम जनता जैसा देखना और सुनना चाहती है देश का मीडिया भी स्थिति का वैसा ही विश्लेषण करता है। वह बताता है कि देश में अमीरों की संख्या ख़तरनाक तरीक़े से बढ़ रही है। ..और देश के टॉप अमीरों की संपत्ति से ग़रीब कितने दिनों तक मुफ़्त खाना खा सकता है।

तस्वीर का दूसरा पहलू यह है कि रिलायंस में आज 2,36,334 कर्मचारी कार्यरत हैं। करोड़ों लोगों को जो अप्रत्यक्ष रोज़गार मिला हुआ है वह अलग। वित्त वर्ष 2021 में रिलायंस ने 3213 करोड़ रुपये का कॉर्पोरेट टैक्स दिया। 85,046 करोड़ रुपये जीएसटी और 21,044 करोड़ रुपये के कस्टम और एक्साइज़ समेत कुल 1,09,303 करोड़ रुपये का डायरेक्ट और इनडायरेक्ट टैक्स देश के ख़ज़ाने में जमा किया। इसमें वह कोई टैक्स शामिल नहीं है जो रिलायंस की वजह से वहाँ कार्यरत लाखों कर्मचारी और करोड़ों अप्रत्यक्ष रोज़गार प्राप्त लोग और करोड़ों आम शेयर होल्डर दे रहे होंगे। ग़ौरतलब है कि कोरोना काल में भी रिलायंस ने 75,000 नई नौकरियों का सृजन किया। रिलायंस के मुखिया मुकेश अंबानी का यह कुशल आर्थिक नेतृत्व वाक़ई क़ाबिले तारीफ़ है।

लेखक : मनीष खेमका

रिलायंस तो एक उदाहरण है। आज देश को टाटा बिड़ला अंबानी जैसे आर्थिक रिस्क लेने वाले ढेरों साहसिक करदाता कारोबारियों-की सख़्त ज़रूरत है। इन्हें सिर्फ़ अमीर समझना, ईर्ष्या की नज़र से देखना हमारी कमअक्ली ही है। वे वास्तव में हमारे देश के आर्थिक नेता हैं जिनके साहस से देश की अर्थव्यवस्था और आम जनता की रोज़ी रोटी चलती है। भारत हमेशा से लक्ष्मीनारायण का देश रहा है। हम लक्ष्मी और कुबेर के उपासक रहे हैं। हम पहले सोने की चिड़िया थे भी। आज राजनेताओं ने अपने निहित राजनीतिक स्वार्थ के चलते भारत को दरिद्रनारायण का उपासक बना दिया है। जहाँ हर सम्पन्न व्यक्ति को ईर्ष्या और अपराधियों की नज़र से देखा जाता है। जबकि वास्तव में यह करदाता कारोबारी ही देश-दुनिया के असली आर्थिक नेता हैं।हमें यह तय करना होगा कि देश में साहसिक आर्थिक नेताओं की संख्या बढ़ानी है या मुफ्त राशन-मकान, बिजली-पानी और सब्सिडी माँगने वाले मुफ़्तख़ोरों की। यदि हमें ग़रीबी हटानी है तो पहले ग़रीब मानसिकता से मुक्ति पानी होगी।

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