सादगी की प्रतिमूर्ति थे डॉ. अब्दुल कलाम

सादगी की प्रतिमूर्ति थे डॉ. अब्दुल कलाम
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योगेश कुमार गोयल
अब्दुल कलाम जयंती (15 अक्तूबर) पर विशेष

देश के महान् वैज्ञानिक और भारत के पूर्व राष्ट्रपति, प्रख्यात शिक्षाविद् डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम (अबुल पाकिर जैनुलाब्दीन अब्दुल कलाम) सच्चे अर्थों में ऐसे महानायक थे, जिन्होंने अपना बचपन अभावों में बीतने के बाद भी अपना पूरा जीवन देश और मानवता की सेवा में व्यतीत कर दिया। छात्रों और युवा पीढ़ी को दिए गए उनके प्रेरक संदेश तथा उनके स्वयं के जीवन की कहानी देश की आने वाले कई पीढ़ियों को भी सदैव प्रेरित करने का कार्य करती रहेगी।

न केवल भारत के लोग बल्कि पूरी दुनिया मिसाइल मैन डॉ. कलाम की सादगी, धर्मनिरपेक्षता, आदर्शों, शांत व्यक्तित्व और छात्रों व युवाओं के प्रति उनके लगाव की कायल थी। डॉ. कलाम देश को वर्ष 2020 तक आर्थिक शक्ति बनते देखना चाहते थे। पढ़ाई-लिखाई को तरक्की का साधन बताने वाले डॉ. कलाम का मानना था कि केवल शिक्षा के द्वारा ही हम अपने जीवन से निर्धनता, निरपेक्षरता और कुपोषण जैसी समस्याओं को दूर कर सकते हैं। उनके ऐसे ही महान विचारों ने देश-विदेश के करोड़ों लोगों को प्रेरित करने और देश के लोकतंत्र को मजबूती प्रदान करने का कार्य किया। उनका ज्ञान और व्यक्तित्व इतना विराट था कि उन्हें दुनियाभर के 40 विश्वविद्यालयों ने डॉक्ट्रेट की मानद उपाधि प्रदान की।

तमिलनाडु के एक छोटे से गांव में एक मध्यमवर्गीय परिवार में 15 अक्तूबर 1931 को जन्मे डॉ. कलाम छात्रों का मार्गदर्शन करते हुए अक्सर कहा करते थे कि छात्रों के जीवन का एक तय उद्देश्य होना चाहिए और इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए जरूरी है कि वे हरसंभव स्रोतों से ज्ञान प्राप्त करें। छात्रों की तरक्की के लिए उनके द्वारा जीवन पर्यन्त किए गए महान् कार्यों को देखते हुए ही सन् 2010 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा उनका 79वां जन्म दिवस 'विश्व विद्यार्थी दिवस' के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया और तभी से डॉ. कलाम के जन्मदिवस 15 अक्तूबर को ही प्रतिवर्ष 'विश्व विद्यार्थी दिवस' के रूप में मनाया जा रहा है।

समय-समय पर युवाओं को दिए गए उनके प्रेरक संदेशों की बात करें तो वे कहा करते थे कि अगर आप सूरज की तरह चमकना चाहते हो तो पहले सूरज की तरह जलना सीखो। वे कहते थे कि अगर आप फेल होते हैं तो निराश मत होइए क्योंकि फेल होने का अर्थ है 'फर्स्ट अटैंप्ट इन लर्निंग' और अगर आपमें सफल होने का मजबूत संकल्प है तो असफलता आप पर हावी नहीं हो सकती। इसलिए सफलता और परिश्रम का मार्ग अपनाओ, जो सफलता का एकमात्र रास्ता है। डॉ. कलाम कहते थे कि आप अपना भविष्य नहीं बदल सकते लेकिन अपनी आदतें बदल सकते हैं और निश्चित रूप से आपकी आदतें आपका भविष्य बदल देंगी। वे हमेशा कहा करते थे कि महान सपने देखने वाले महान लोगों के सपने हमेशा पूरे होते हैं। उनका कहना था कि इंसान को कठिनाइयों की आवश्यकता होती है क्योंकि सफलता का आनंद उठाने के लिए कठिनाइयां बहुत जरूरी हैं। सपने देखना जरूरी है लेकिन केवल सपने देखकर ही उसे हासिल नहीं किया जा सकता बल्कि सबसे जरूरी है कि जिंदगी में स्वयं के लिए कोई लक्ष्य तय करें।

कलाम साहब कहते थे कि इस देश के सबसे तेज दिमाग स्कूलों की आखिरी बेंचों पर मिलते हैं। हम सबके पास एक जैसी प्रतिभा नहीं है लेकिन अपनी प्रतिभाओं को विकसित करने के अवसर सभी के पास समान हैं। सादगी की प्रतिमूर्ति डा. कलाम का व्यक्तित्व कितना विराट था, इसे परिभाषित करते कई किस्से भी सुनने को मिलते हैं।

ऐसी ही एक घटना उन दिनों की है, जब डीआरडीओ में 'अग्नि' मिसाइल पर काम चल रहा था और काम के दबाव के चलते उस प्रोजेक्ट से जुड़े हर व्यक्ति को अपने परिवार के साथ बिताने के लिए भी पर्याप्त समय नहीं मिलता था। उसी दौरान इसी प्रोजेक्ट से जुड़े डीआरडीओ में कार्यरत डॉ. कलाम के एक जूनियर वैज्ञानिक ने अपने बच्चों को एक प्रदर्शनी दिखाने ले जाने के लिए उनसे जल्दी घर जाने के लिए छुट्टी मांगी। डॉ. कलाम ने उसे इसकी अनुमति दे दी लेकिन उस दिन कार्य इतना ज्यादा था कि वह जूनियर वैज्ञानिक अपने काम में इस कदर लीन हो गया और उसे समय का पता ही न चला। दूसरी ओर कलाम साहब ने उसकी व्यस्तता को देखते हुए अपने प्रबंधक को बच्चों को प्रदर्शनी दिखाने के लिए भेज दिया। जब जूनियर वैज्ञानिक देर रात अपने घर पहुंचा, तब उसे कलाम साहब की इस महानता के बारे में ज्ञात हुआ। अगले दिन उनके समक्ष नतमस्तक होकर उसने इसके लिए उनका हृदय से आभार प्रकट किया।

डॉ. कलाम राष्ट्रपति जैसे देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर आसीन रहते हुए भी आम लोगों से मिलते रहे। एक बार कुछ युवाओं ने उनसे मिलने की इच्छा जाहिर की और इसके लिए उन्होंने उनके कार्यालय को चिट्ठी लिखी। चिट्ठी मिलने के बाद डॉ. कलाम ने उन युवाओं को अपने पर्सनल चैंबर में आमंत्रित किया और वहां न केवल उनसे मुलाकात ही की बल्कि उनके विचार, उनके आइडिया सुनते हुए काफी समय उनके साथ गुजारा।

जिस समय डॉ. कलाम भारत के राष्ट्रपति थे, तब वे एक बार आईआईटी के एक कार्यक्रम में सम्मिलित होने के लिए पहुंचे। उनके पद की गरिमा का सम्मान करते हुए आयोजकों द्वारा उनके लिए मंच के बीच में बड़ी कुर्सी लगवाई गई। डॉ. कलाम जब वहां पहुंचे और उन्होंने केवल अपने लिए ही इस प्रकार की विशेष कुर्सी की व्यवस्था देखी तो उन्होंने उस कुर्सी पर बैठने से इनकार कर दिया, जिसके बाद आयोजकों ने उनके लिए मंच पर लगी दूसरी कुर्सियों जैसी ही कुर्सी की व्यवस्था कराई।

उनके मन में दूसरे जीवों के प्रति भी किस कदर करूणा और दयाभाव विद्यमान था, इसका अंदाजा इस घटनाक्रम से सहज ही लग जाता है। जब 1982 में वे डीआरडीओ के चेयरमैन बने तो उनकी सुरक्षा के लिए डीआरडीओ की सेफ्टी वाल्स पर कांच के टुकड़े लगाने का प्रस्ताव लाया गया लेकिन कलाम साहब ने यह कहते हुए उसके लिए साफ इनकार कर दिया था कि दीवारों पर कांच के टुकड़े लगाने से पक्षी नहीं बैठ पाएंगे और ऐसा करने की प्रक्रिया में पक्षी घायल भी हो सकते हैं। इस कारण उस प्रस्ताव को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था।

राष्ट्रपति जैसे बड़े पद पर पहुंचने के बाद भी कलाम अपने बचपन के दोस्तों को नहीं भूलते थे। 2002 में राष्ट्रपति बनने के बाद जब एक बार वे तिरुअनंतपुरम के राजभवन में मेहमान थे, तब उन्होंने अपने स्टाफ को वहां के एक मोची और ढाबे वाले को खाने पर बुलाने का निर्देश दिया। सभी उनके इस निर्देश को सुनकर हैरान था। बाद में पता चला कि ये दोनों कलाम साहब के बचपन के दोस्त थे। दरअसल कलाम साहब ने अपने जीवन का बहुत लंबा समय केरल में ही बिताया था और उसी दौरान उनके घर के पास रहने वाले उस मोची तथा ढाबे वाले से उनकी दोस्ती हो गई थी। राष्ट्रपति बनने के बाद जब वे तिरुअनंतपुरम पहुंचे, तब भी वे अपने इन दोस्तों को नहीं भूले और उन्हें राजभवन बुलाकर उन्हीं के साथ खाना खाकर उन्हें इतना मान-सम्मान दिया।

डॉ. कलाम के जीवन के अंतिम पलों के बारे में उनके विशेष कार्याधिकारी रहे सृजन पाल सिंह ने लिखा है कि शिलांग में जब वह डॉ. कलाम के सूट में माइक लगा रहे थे तो उन्होंने पूछा था, 'फनी गाय हाउ आर यू', जिस पर सृजन पाल ने जवाब दिया 'सर ऑल इज वेल'। उसके बाद डॉ. कलाम छात्रों की ओर मुड़े और बोले 'आज हम कुछ नया सीखेंगे' और इतना कहते ही वे पीछे की ओर गिर पड़े। पूरे सभागार में सन्नाटा पसर गया और इस प्रकार इस महान् विभूति ने दुनिया से सदा के लिए विदा ले ली।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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