दैविक प्रेरणा से समतलीकरण हुआ था 6 दिसंबर 1992 को आक्रांताओं की निशानी का
अक्टूबर 1990 के अंतिम सप्ताह में आडवाणीजी की रथ यात्रा को बिहार में अवरुद्ध करने के बाद कारसेवा के लिए एकत्रित कारसेवकों के मुलायम सिंह के निर्देश पर किए गए नरसंहार के पश्चात कल्याण सिंहजी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की सरकार उत्तर प्रदेश में बनी श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन के नेतृत्व ने 6 दिसंबर 1992 को पुणे अयोध्या में कारसेवा करने के लिए समस्त हिंदू समाज को आवाह्न किया गया, लाखों की संख्या में कारसेवक 2 दिसंबर से ही अयोध्या पहुंचना प्रारंभ हो गए थे। योजना यह थी कि सभी कारसेवक केवल रेल यात्रा करके ही अयोध्या पहुंचेंगे। अयोध्या के निकट के स्थान से भी कारसेवक वाहनों से अयोध्या पहुंचे, उनके वाहन अयोध्या से वापस कर दिए गए। प्रत्येक कारसेवक को उनके गंतव्य स्थान से एक परिचय-पत्र भी प्रदान किया गया था।
कुछ विशेष कारण से मुझे पृथक से स्वदेश के संवाददाता के रूप में अयोध्या पहुंचने का निर्देश हुआ। मेरे साथ श्री चंद्रप्रकाश नागर जो उस समय स्वदेश के विज्ञापन का काम देखते थे, के पास भी स्वदेश के संवाददाता का परिचय-पत्र था। हमारे साथ श्री हेमंत जोशी भी थे, हम लोग फियाट कार से अयोध्या पहुंचे थे तथा पत्रकारों की रहने की व्यवस्था फैजाबाद में की गई थी, वहीं एक लॉज में रुके थे। फैजाबाद से अयोध्या जाते समय हमने देखा की सैकड़ो टेंट में हजारों अर्ध सैनिक बल के जवान कारसेवा को बातचीत करने के लिए केंद्र सरकार के निर्देश की प्रतीक्षा कर रहे हैं। 2 दिसंबर के प्रात: ही हम अयोध्या पहुंच गए थे।
4 दिसंबर को सुनवाई होनी थी, मुस्लिम जज 3 दिसंबर को छुट्टी पर चले गए
एक विशिष्ट घटनाक्रम का जिक्र कभी भी समाचार माध्यम तथा 6 दिसंबर की घटना पर लिखी गई पुस्तकों तथा लेखो में वर्णित नहीं की गई है, वह यह कि 4 दिसंबर को इलाहाबाद हाईकोर्ट में अयोध्या प्रकरण की एक सुनवाई होनी थी, जिसमें कल्याण सिंह सरकार द्वारा विवादित 2.77 एकड़ तथा उसके आसपास की भूमि को अधिकृत करने के विरुद्ध मुस्लिम पक्ष द्वारा वाद दायर किया गया था, जिसमें स्थगन आदेश था। अधिग्रहित भूमि में श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन समिति द्वारा खरीदी गई भूमि भी सम्मिलित थी। अत: श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन समिति भी उसमें एक पक्ष थी। 4 दिसंबर को जज को फैसला देना था। फैसला किसी भी पक्ष में होता, किंतु चुकी उससे श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन समिति द्वारा खरीदी गई जमीन स्थगन आदेश से मुक्त हो जाती, वहां पर शांतिपूर्वक कारसेवा 6 दिसंबर को प्रारंभ हो जाती और श्रीराम मंदिर के प्रवेश द्वार का कार्य प्रारंभ हो जाता। इस संपूर्ण प्रकरण की सुनवाई करने वाले दो जजों में से एक मुसलमान थे वह 3 दिसंबर को अचानक एक सप्ताह की छुट्टी लेकर चले गए और स्थगन आदेश पर फैसला नहीं हो सका, मुस्लिम जज के इस आचरण के कारण अयोध्या में एकत्रित कारसेवक तथा नेतृत्व असमंजस में पड़ गया, क्योंकि स्थगन आदेश के चलते कर सेवा कानून तोड़े बगैर संभव नहीं थी।
5 की रात्रि को ही कारसेवकों में असंतोष बढऩे लगा
5 दिसंबर को संपूर्ण नेतृत्व जिसमें भारतीय जनता पार्टी के सभी वरिष्ठ नेता जिसमें लालकृष्णजी आडवाणी, मुरली मनोहरजी जोशी, सुंदरसिंहजी भंडारी, प्रमोद महाजन, सुश्री उमा भारती, विनय कटिहार आदि सम्मिलित थे, विचार-विमर्श करते रहे एवं यह निर्णय हुआ कि 6 दिसंबर की प्रात: सरयू नदी से एक-एक मु_ी रेत लाकर श्रीराम जन्मभूमि का विध्वंस कर बनाए गए ढांचे के समक्ष कारसेवा की जाएगी। 5 दिसंबर की रात्रि से ही एकत्रित कारसेवकों में भयंकर आसंतोष व्याप्त हो गया एवं नेतृत्व के नियंत्रण से स्थिति बाहर जाने लगी। 6 दिसंबर की प्रात: श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन समिति के कार्यालय के निकट छत पर एक मंच बनाया गया, जहां से स्थिति पर नियंत्रण करने के लिए समूचा नेतृत्व उपस्थित हुआ एवं कारसेवकों से शांतिपूर्वक सरयू नदी से एक मु_ी रेत लाकर कारसेवा करने का आह्वान किया जाने लगा। स्थिति नियंत्रण के बाहर जाने लगी और कार्यकर्ता उद्वग से भरे हुए विवादित ढांचे की ओर बढऩे लगे। मैं एवं मेरे अन्य साथी गण जिसमें (मेरे भतीजे) स्वर्गीय लक्ष्मण सिंह गोड़ भी सम्मिलित थे। कुबेर टीले पर जाकर समस्त गतिविधियों का जायजा लेने। चित्र संलग्न है।
सुरक्षा रेलिंग के पाइप को बना लिया सांग
हमने देखा कि विवादित झांचे के पीछे की ओर से एक समूह जिसमें युवतियां भी सम्मिलित है, जिस टीले पर ढांचा बना हुआ था, उसे पर चढऩे का प्रयास कर रहे हैं। प्रथम प्रयास में सुरक्षा फेंसिंग पर तैनात केंद्रीय सुरक्षाबल के जवानों ने उन्हें धक्का दिया और वह लुढक़ते हुए नीचे गिर गए। धूल का एक गुबार सा उठ गया। वह समूह फिर एकत्रित हुआ और पुन: टीले पर चढ़ गया, केंद्रीय सुरक्षा बल के जवानों ने उनका हाथ पडक़र अंदर ले लिया और वह गुंबद की और बढ़ चले। उसी तरह मंच के सामने की तरफ से ढांचे के मुख्य द्वार की ओर से भी कारसेवक सुरक्षा के लिए लगी हुई रेलिंग को तोडक़र गुंबद पर चढऩे का प्रयास करने लगे उनके हाथों में बहुत छोटे-मोटे औजार थे कुछ दैविक प्रेरणा हुई और रेलिंग पर लगे हुए पाइप जो नट-बोल्ट से कसे हुए थे, उन्हें खोलकर कारसेवकों ने संभल (सांग) की तरह उनका इस्तेमाल करना प्रारंभ किया, क्योंकि वे दोनों तरफ से चपेटा करके नट बोल्ट से कैसे गए थे। यह थे गुंबद को तोडऩे के प्राथमिक औजार। हमारे पास एक छोटा कैमरा था जिसे हमने कुछ फोटोग्राफ लिए थे। फिर तो जैसे कारसेवक केंद्रीय नेतृत्व के अनुशासन तोडक़र ढांचे को समतल करने में तत्पर हो गए।
पहले प्रहार में ही तीनों गुबंदों की चाबी निकल गई
ढांचा के सभी गुंबद शाम 4 बजे के पूर्व ही धराशाई कर दिए गए। यदि योजनाबद्ध रूप से भी यह कार्य किया जाता तो कम से कम एक सप्ताह इस कार्य के लिए लगता, किंतु चुकी कारसेवक अपने प्राणों की परवाह किए बगैर ईश्वरी प्रेरणा से यह सब कर रहे थे। अत: गुंबद जिस तकनीक से बनते हैं, उसे तकनीक में गुंबद के सबसे ऊपर शीर्ष पर पत्थर की शंकु के आकार की एक चाबी लगाई जाती है। यदि यह चाबी निकल जाए तो गुंबद, क्योंकि सैकड़ो वर्ष पुराने थे अपने आप गिरना ही थे। शीर्ष पर चढ़े हुए तार से वह कौन है, वही सबसे पहले प्रहार किया तथा उसे कारण से तीनों गुंबद की चाबी निकल गई और गुंबद भरभराकर गिर गए इसमें कुछ कारसेवकों के भी प्राण न्योछावर हुए। फिर दीवारें हटाई गई और 6 से 8 दिसंबर के मध्य समस्त मलवा हटाकर जन्मभूमि का स्थान समतल कार्य पूरा हुआ और रेलो से ही कारसेवकों की वापसी हुई और बगैर हिंसा के सभी कारसेवक अपने-अपने गंतव्य तक पहुंच गये।
8 दिसंबर को सैनिक बल अयोध्या पहुंच सका
मैंने एक अंग्रेजी उपन्यास च्इज पेरिस बर्निंग’ जिसे प्रसिद्ध लेखक जोड़ी ने लिखा है को पढ़ा था और जिस पर एक श्वेत श्याम फिल्म भी 1966 में बनी थी, देखने का सौभाग्य भी मुझे प्राप्त हुआ था। द्वितीय महायुद्ध में युद्ध समाप्ति के समय पेरिस के देशभक्त भूमिगत नागरिकों ने किस तरह मित्र देशों की सेना को पेरिस में प्रवेश कर जर्मनी सी को पराजित करने का आयोजन किया था उसका उसमें वर्णन है। जर्मन सेवा की कुमक रोकने के लिए उन्होंने प्रमुख मार्गों पर पुरानी करें घर का फर्नीचर आदि लाकर उनमें आग लगाकर जर्मन सेवा की कुमक को लाने से रोका था। इस प्रेरणा से हमने भी अयोध्या के स्थानीय नागरिकों से रास्ता अवरुद्ध करने का आह्वान किया और संपूर्ण फैजाबाद अयोध्या का मार्ग अवरुद्ध हो गया। दोनों को जोडऩे वाला पुल भी पैदल निकलने के लायक भी नहीं बचा, जिससे फैजाबाद में डेरा डाले हुए थे, हजारों अर्ध सैनिक बल के जवान वही फंसकर रह गए। 8 दिसंबर के पश्चात ही जब संपूर्ण समतलीकरण हो गया, तब सैनिक बल अयोध्या पहुंच सका।
(लेखक कारसेवा में स्वयं शामिल थे, मीसाबंदी रहे हैं एवं भाजपा संगठन में अनेक पदों पर दायित्व निर्वाह किया है।)