इच्छा मृत्यु कितनी सही कितनी ग़लत ?

इच्छा मृत्यु कितनी सही कितनी ग़लत ?
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तेजेंद्र शर्मा

वेबडेस्क। ब्रिटेन में सवाल उठाए जा रहे हैं कि आखिर उनकी सरकार क्यों इस विषय में कोई कानून नहीं बनाती। इस तरह सरकार ग़रीब और अमीर में अंतर पैदा कर रही है। अमीर को यदि सम्मानजनक इच्छा मृत्यु अपने पैसे के बल पर मिल सकती है तो ग़रीब इससे वंचित क्यों रहे। एक व्यक्ति को सम्मानजनक मौत के लिये क़रीब दस हज़ार पाउंड का ख़र्चा हो जाता है। मरीज़ की हालत यात्रा करने लायक नहीं होती मगर सम्मानजनक मौत के लिये वह इस कष्ट को भी सहने को तैयार हो जाता है। वर्तमान कानून के चलते मरीज़ पूरी तरह निराश होने से पहले ही मरने को तैयार हो जाता है क्योंकि बाद में उसे यात्रा करने की अनुमति नहीं मिलेगी।

जब मैंने अपनी कहानी 'मुझे मार डाल बेटा' लिखी थी तो मन में यह सवाल बार-बार उठता था कि क्या किसी भी ऐसे मरीज़ को मरने की अनुमति दे देनी चाहिये जिसे यह अहसास हो चुका है कि वह बचने वाला नहीं है।मगर अलग-अलग देशों के डॉक्टरों की सोच कुछ अलग है। डॉक्टर सोचते हैं कि चमत्कार भी तो होते हैं। कोई मरीज़ यह सोच सकता है कि वह अपनी बीमारी से ठीक होने वाला नहीं है। मगर क्या यह सच है? सवाल यह भी तो उठता है कि कौन तय करेगा कि बीमार ठीक होगा या कुछ दिनों बाद मर जाएगा।

मगर स्विटज़रलैण्ड इस विषय पर हमेशा से अलग ही कुछ सोचता रहा है। वहां इच्छा मृत्यु को हमेशा अलग अंदाज से देखा जाता रहा है। इच्छा मृत्यु के मामले में स्विटजरलैंड की सरकार ने इच्छा मृत्यु की मशीन को कानूनी मंजूरी दे दी है। इस मंजूरी के बाद इच्छा मृत्यु का रास्ता साफ हो गया है… इच्छा मृत्यु की जरूरत कब पड़ती है, यह मशीन कैसे इंसान को खत्म करती है और अब तक कैसे दी जाती थी इच्छा मृत्यु, जानिए इन सवालों के जवाब…

माना जा रहा है कि ऐसे मरीज़ जो गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं और जिनके बचने की कोई आशा नहीं रही है वे इस मशीन के माध्यम से मौत को गले लगा सकेंगे। दावा यह भी किया जा रहा है कि इस मशीन के ज़रिये इन्सान को एक आरामदायक मौत दी जाएगी जिसमें उसे दम घुटने का अहसास न हो।इस कैप्स्यूल का आविष्कार ऑस्ट्रेलिया के एक संगठन एग्ज़िट इंटरनेशनल के संस्थापक डॉ. फिलिप निटस्के ने किया है। सोशल मीडिया पर उन्हें डॉ. डेथ यानि कि मौत का डॉक्टर कहा जा रहा है।

दरअसल स्विटज़रलैण्ड में इच्छा मृत्यु को 1942 से स्वीकृति मिली हुई है। ब्रिटेन से हर वर्ष 350 से अधिक लोग इस माध्यम से मृत्यु का वरण करते हैं। याद रहे मृतक के संबंधी जो कि उसके साथ स्विटज़रलैण्ड इच्छा मृत्यु में सहायता करने जाते हैं, वापिस ब्रिटेन में आने पर उन पर कानूनी कार्यवाही हो सकती है। उन्हें हत्या के जुर्म में 14 वर्ष की जेल की सज़ा तक का प्रावधान है।

ब्रिटेन में सवाल उठाए जा रहे हैं कि आखिर उनकी सरकार क्यों इस विषय में कोई कानून नहीं बनाती। इस तरह सरकार ग़रीब और अमीर में अंतर पैदा कर रही है। अमीर को यदि सम्मानजनक इच्छा मृत्यु अपने पैसे के बल पर मिल सकती है तो ग़रीब इससे वंचित क्यों रहे। एक व्यक्ति को सम्मानजनक मौत के लिये क़रीब दस हज़ार पाउंड का ख़र्चा हो जाता है। मरीज़ की हालत यात्रा करने लायक नहीं होती मगर सम्मानजनक मौत के लिये वह इस कष्ट को भी सहने को तैयार हो जाता है। वर्तमान कानून के चलते मरीज़ पूरी तरह निराश होने से पहले ही मरने को तैयार हो जाता है क्योंकि बाद में उसे यात्रा करने की अनुमति नहीं मिलेगी।

कुछ समय पहले ब्रिटेन के पूर्व स्वास्थ्य सचिव मैट हैन्कॉक ने अपने वक्तव्य में कहा था कि, "जो लोग इच्छा मृत्यु के लिये विदेश यात्रा करना चाहते हैं उन पर कोविद यात्रा नियम नहीं लागू किये जाएंगे।" वहीं उन्होंने जोर दे कर कहा कि जो भी व्यक्ति किसी को इच्छा मृत्यु में सहायता करेगा उसे एक दंडनीय अपराध माना जाएगा और उस पर मुकद्दमा चलेगा।

इच्छा मृत्यु का सीधा सादा अर्थ है जब जीवन मौत से अधिक कष्टदायक हो जाए तो मौत को गले लगाना। इसे अंग्रेज़ी में यूथेनेशिया कहा जाता है। इच्छा मृत्यु भी दो तरह की होती है – सक्रिय इच्छा मृत्यु (Active Euthanasia) और निष्क्रिय इच्छा मृत्यु (Passive Euthanasia). पहली स्थिति में डॉक्टर मरीज़ को किसी प्रकार का इंजेक्शन देता है जिस से धीरे-धीरे रोगी की मृत्यु हो जाती है। दूसरी स्थिति में मरीज़ के सगे संबंधियों की सहमति से कोमा या गंभीर हालत में पड़े मरीज को बचाने वाले जीवन-रक्षक उपकरण को धीरे-धीरे बंद करते जाते हैं… इस तरह मरीज की मौत हो जाती है।

73 वर्षीय डेविड पेस (2019) जैसे बहुत से मरीज़ हैं जो ब्रिटेन से स्विटज़रलैण्ड जा कर अपने जीवन के कष्टों से मुक्ति पा लेते हैं। वैसे अब तो युरोप के कई देशों से स्विटज़लैण्ड के लिये 'इच्छा मृत्यु पर्यटन' लोकप्रिय हो रहा है। पहले इच्छा मृत्यु के लिये स्विस डॉक्टर जिन दवाइयों का इस्तेमाल करते हैं उन्हें barbiturates कहा जाता है। वे गोली और तरल रूप में उपलब्ध होती हैं।

इस नये उपकरण जिसे कि सुसाइड पॉड भी कहा जाता है… इसमें मरीज को लिटाया जाता है… इसके बाद एक बटन दबाया जाता है। ऐसा करने के बाद मशीन के अंदर नाइट्रोजन का स्तर बढ़ना शुरू हो जाता है और 20 सेकंड के अंदर ऑक्सीजन का स्तर 21 प्रतिशत से 1 प्रतॉशत तक पहुंच जाता है… इसके फलस्वरूप रोगी की 5 से 10 मिनट के अंदर मौत हो जाती है।

वर्तमान में कनाडा, नीदरलैण्ड, बेल्जियम और अमरीका के कुछ राज्यों में भी इच्छा मृत्यु को मान्यता मिल चुकी है। किंतु प्रश्न बहुत से हैं जो हमारे दिमाग को मथते हैं… क्या सही है क्या ग़लत है इसे समझ पाना सरल नहीं है। जीवन की जटिलताएं बढ़ती जा रही हैं और साथ ही बढ़ रही हैं जीवन से निपटने की सच्चाइयां। रोगी को कब मरना चाहिये और कब तक जीना चाहिये इस पर सरकार और समाज की सोच में बदलाव आ रहा है। मृत्यु सम्मानजनक होनी चाहिये… इन्सान को घिसट-घिसट कर मरने को मजबूर नहीं होना चाहिये… सवाल बहुत हैं… जवाब भी मिलेंगे।

अभी कुछ दिन पहले मेरी एक दोस्त ऐसे बच्चों के लिए जो बच्चे शारीरिक और मानसिक रूप से अक्षम हैं और जिन्हें जीवन भर दूसरे पर निर्भर रहना पड़ता हो उन बच्चों के लिए इस तरह के विचार ही रख रही थी।उसका कहना था कि इन बच्चों की जिन्दगी उनके लिए सजा ही है जो कि सच भी है लेकिन भावात्मक रुप से मैं उससे असहमत थी।इच्छा मृत्यु एक ऐसी इच्छा है जिसमें व्यक्ति सम्मानित तरीक़े से अपने कष्टदाई जीवन को समाप्त करने की चाहत रखता है।असाध्य और ऐसे रोग जो व्यक्ति के जीवन को कष्टदायी मृत्यु की ओर ले जाते हैं उस स्थिति में ऐसी इच्छा कोई गलत नहीं।पर यह इतना सरल नहीं क्योंकि कष्ट से मुक्ति की आशा हमेशा बनी रहनी चाहिए।

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