ग्रामों की समृद्धि ही भारत के विकास का रास्ता अर्थव्यवस्था का आधार गौ-संवर्धन
वर्तमान में भारत में 51,00 से अधिक पंजीकृत गौशालाएं कार्यरत हैं
भारत की कुल पशुधन संपदा का 37,28 प्रतिशत गौवंश हैड्ड
भारतीय संस्कृति की दृष्टि से गौवंश का महत्व तो गायत्री और गंगा से भी बढ़कर है। गायत्री की साधना में कठिन तपस्या अपेक्षित है। गंगा के सेवन के लिए यात्रा करनी पड़ती है, लेकिन गौ का लाभ तो घर बैठे ही मिल जाता है। दु:ख की बात यह है कि आज गौ को साधारण पशु समझकर उसकी उपेक्षा की जा रही है। लोग उसका महत्व नहीं समझ पा रहे हैं। यदि वाक् गायत्री है, प्राण गंगा है तो मन गौ है। मन की शुद्धि के बिना न तो कोई साधना हो सकती है और न भौतिक उपलब्धि का सुख ही प्राप्त हो सकता है। मनुष्य की संपूर्ण क्रियाओं का मूल मन है गौ मन की शुद्धि का मूल हेतु है। मानव-जीवन से पशु जगत का यों भी घनिष्ठ सम्बंध है, उसमें भी गौ मनुष्य जीवन की आधारशिला रही है। वेदों में 'रूपायाध्न्ये ते नम: कहकर गौ की देववत् पूजा का विधान है। दूध, घी, दही के अतिरिक्त गौ का मूत्र और गोबर भी इतने उपयोगी माने गए हैं कि महाभारत में स्पष्ट कहा गया है कि 'गोमयेन सदा स्नादाय गोकरीषे च संविशेत। धर्म, कर्म, अर्थ और मोक्ष इन चारों पुरूषार्थो की सिद्धि गौ से ही संभव है। गौ के सम्बंध में एक विशेष बात ध्यान देने की यह है कि पृथ्वी के अर्थ में भी 'गौ शब्द का प्रयोग अनेक बार हुआ है। इसी प्रकार 'गौ' शब्द का अर्थ इन्द्रिय भी है। इसलिए गौ-तत्व का विचार इन्द्रियों के सम्बंध में भी किया जाता है।
गौरक्षण, गोपालन और गोसंवर्धन भारत के लिए नया नहीं है। गोरक्षा भारत का सनातन धर्म है। वेदो में सवा सौ से अधिक बार 'गौ शब्द का उल्लेख हुआ है। अथर्ववेद में तो पूरा 'गोसुक्त ही है। उपनिषदों में भी गौ महिमा है। महाभारत के अध्याय के अध्याय गौ महिमा से भरे पड़े हैं। रामायण, इतिहास, पुराण और स्मृतियों में गोमाहात्म्य भरा है। उसे 'सुरभि, 'कामधेनु, 'अच्र्या, 'विश्व की आयु, 'रूद्रों की माता, 'वसुओं की पुत्री कहा गया हैै और सर्वदवपूज्या माना गया है। गौपूजा, गौभक्ति, गौमंत्र आदि से महान लाभ बताए गए हैं। हिंदू, बौद्ध, जैन, सिख धर्मों के ग्रंथों में गोपालन व गोरक्षा के विविध प्रसंग और उपाय पर विमर्श हर काल में होता रहा है। महर्षि चव्यन, राजा ऋ तम्भर, सत्यकाम द्वारा गौरक्षा, सूर्यवंशी राजा दिलीप की गौसेवा, ग्वाला के रूप में सहदेव का राजा विराट की सभा में जाना, वीर गौभक्त महाराणा प्रताप, शिवाजी से लेकर स्वामी श्री करपात्री जी महाराज, हनुमान प्रसाद पोद्दार, मदनमोहन मालवीय, डॉ. राजेेंद्र प्रसाद, श्रीप्रभूदत्त ब्रहम्चारी, श्रीमाधवसदाशिव गोलवरकर, शंकराचार्य श्रीकृष्णबोधाश्रम जी की गौ-सेवा इतिहास का स्वर्णिम अध्याय है। इन सभी ने गौ-संरक्षण व रक्षा के अथक प्रयास किए व नवीन गौशालाओं का निर्माण कराया। इसके अलावा श्रीनिंबार्क, श्रीबल्लभ, श्रीरामानुज संप्रदायों के आश्रमों व मंदिरों में आज भी गौ-सेवा श्रीविग्रहों की भांति पूजनीय है। अष्टछाप के कवियों ने तो गौ-सेवा के इतने सुंदर पदों की रचना की है कि संगीत का कोई राग ऐसा नहीं है, जिसमें गो महिमा वर्णन न किया जा सके। कुंभनदास ने अपने पद में गोपाष्टमी के उत्सव का वर्णन करते हुए लिखा-गाय चरावन को दिन आयो। फूली फिरत यशोदा अंग अंग लालन उबट न्हायो। छीतस्वामी ने श्रीकृष्ण के गौ-प्रेम पर लिखा-आगे गाय, पाछें गाय, इत गाय उत गाय। गोविंद को गायन में बसवो ही भावे। वास्तम में देखा जाए तो भारतीय संस्कृति की सच्ची रीढ़ गौ-संस्कृति ही हैै।
दुर्भाग्य की बात है कि देशवासियों की कथनी और करनी में बहुत अंतर आ गया हैै। हम गौमाता की जय के नारे जोर से लगाते हैं, परंतु क्रिया करते समय अपने धर्म, सत्य और कर्तव्य को भूल जाते हैं। गौसेवा की शिक्षा स्वयं श्रीराम ने अयोध्यावासियों को देते हुए कहा था कि 'मैं इस रामावतार में गौसेवा नहीं कर सका। लोगों ने मुझे महाराज दशरथ का पुत्र समझकर गौसेवा नहीं करने दी, इसलिए मैं गौसेवा के लिए ही अगला कृष्णावतार धारण करूंगा। आगे श्रीकृष्णावतार में सबसे अधिक गौसेवा का ही वर्णन किया गया है। लाखों संत-महातमाओं ने गौरक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी, लेकिन आजतक गौवध पूरी तरह से बंद नहीं हो सका। गौवध के लिए आज देश का अधिकतर हिंदू ही दोषी है। अपने घरके माता-पिता जब वृद्धावस्था को प्राप्त हो जाते हैं, तब उनको घर से बाहर कर देते हैं क्या? भले हों, बुरे हों, कैसे भी हों, परंतु माता-पिता की सेवा करनी ही पड़ेगी। आज प्राय: हर जगह यही हो रहा है। किसी ने 20 हजार की गाय खरीदी और साल भर बार दूध कम देने के कारण उसे 10 हजार में दूसरे को बेच दी। उसी प्रकार दूसरे साल किसी तीसरे को बेच दी। इसी प्रकार धीरे-धीरे कम दामों में बेचते हुए एक दिन वह बूचडख़ाने पहुंचकर वध का शिकार बन गयी।
इस बार दीपावली पर गोबर ने दिया युवाओं को रोजगार
स्वदेशी से प्रेरित होकर गाय के गोबर के द्वारा इस बार दीपावली पर देश के कई राज्यों खासकर उप्र में गाय के गोबर से लक्ष्मी-गणेश जी की मूर्तियों का निर्माण युवाओं के लिए रोजगार के साधन के रूप में विकसित हुआ। गोबर के दीपक, अगरबत्ती, धूपबत्ती व मच्छर भगाने की क्वाइल आदि भी बनाई गई। वहीं गाय के गोबर की खाद खुली व थोक भाव में 2-2 किलोग्राम के पैकेट बना कर भी बेची जा रही है।
आठ राज्यों में आंशिक प्रतिबंध
बिहार, झारखंड, ओडिशा, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, गोवा और चार केंद्र शासित राज्यों दमन और दीव, दादर और नागर हवेली, पांडिचेरी, अंडमान ओर निकोबार द्वीप समूह में गौवध पर आंशिक प्रतिबंध लागू हंै।
दस राज्यों में गौ-वध पर नहीं है प्रतिबंध
केरल, पश्चिम बंगाल, असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड, त्रिपुरा, सिक्किम और एक केंद्र शासित राज्य लक्षद्वीप में गो-हत्या पर कोई प्रतिबंध नहीं है। यहां गाय, बछड़ा, बैल, सांड और भैंस का मांस खुले तौर पर बाजार में बिकता है और खाया जाता है।
देश के 200 किसान ने लगाये गोबर से ऊर्जा के प्लांट
विश्व के कई देशों में गाय का सूखा गोबर टर्बाइन में जला कर व गोबर गैस प्लांट की मदद से भरपूर बिजली बनाई जा रही है। भारत में भी 200 किसान गाय के गोबर से बिजली बनाने के प्लांट लगा चुके हैं। 1 गाय रोज 15 से 25 किग्रा गोबर करती है। 20 किलोग्राम गोबर से 1 घन मीटर गैस बनती है, जिस से 2 किलोवाट बिजली बन जाती है। देश में जनरेटर व डाइजेस्टर आदि के जरिए गाय के गोबर से 3 से 125 किलोवाट तक बिजली बनाने के प्लांट लगाए जा रहे हैं।
गाय की वैज्ञानिक महत्ता व लाभ
गाय के दूध में आणविक विकिरणों को रोकने की क्षमता।
गाय के गोबर से लीपे हुए घर (हानिकारक) विकिरणों का प्रतिरोध करती हैं ।
सूर्य की गोकिरण को सोखने की क्षमता मात्र गाय में ही है। गाय के दूध में सुवर्णक्षार पाए जाते हैं।
गायों के चलने की आवाज से स्वत: बहुत सारी मानसिक खराबियाँ एवं बीमारियाँ दूर हो जाती है ।
मद्रास के प्रसिद्ध डॉ. किंग के अनुसार गाय के गोबर में हैजा के कीटाणुओं को खत्म करने की शक्ति है।
क्षयरोग के रोगी को जब गौशाला में रखते हैं तब उसका गाय के गोबर और गोमूत्र की सुगंध से इलाज होता है ।
यह सिद्ध हो चुका है कि गोमूत्र में ताँबा होता है जो मनुष्य शरीर में जाते ही सोने में परिणत हो जाता है जिसमें रोग-प्रतिरोधक क्षमता है ।
पंचगव्य का निर्माण गाय के दूध, दही, घी, मूत्र, गोबर के द्वारा किया जाता है। पंचगव्य द्वारा शरीर के रोगनिरोधक क्षमता को बढ़ाकर रोगों को दूर किया जाता है।
गौ-संरक्षण के लिए हमें क्या करना है
गाय से प्राप्त दूध, दही, घी, मक्खन व गोझरण युक्त फिनायल एवं गाय के गोबर से निर्मित वस्तुओं को हम अपने दैनिक जीवन की आवश्यकता बना लें। रोजगार के अवसर देने की दृष्टि से गोपालन अपनाएं। गौ आधारित उद्योग फिनायल, धूपबत्ती, अगरबत्ती, अन्न सुरक्षा टिकिया, मच्छर निरोधक क्वायल, गोमय शेम्पू, बर्तन मांजने का पाउडर, गोरस भंडार, गोबर गैस प्लांट, इत्यादि। गायों को कसाइयों के हाथों न बेचें। गायों के चमड़े से बनी वस्तुओं जैसे जूता, टोपी, बेल्ट, पर्स आदि का उपयोग बिल्कुल न करें। प्रतिदिन भोजन से पहले गौ-ग्रास निकालें। किसान-परिवार तथा जिनके पास जगह हो वे गौपालन कर गौसेवा का पुण्य व स्वास्थ्य-लाभ अर्जित करें। सप्ताह में एक बार गौशाला का भ्रमण करें। इसके अलावा प्रत्येक हिंदू अपने-अपने घर में एक गौ रखने अथवा प्रतिदिन मात्र एक लीटर गौदुग्ध मंगाने का संकल्प करे तो गौ के साथ वह भी सुखी हो जाएगा। गौ दुग्ध की मांग बढऩे से गौ स्वत: ही किसान के खूंटे पर बंधने लगेगी और गौरक्षा के साथ ही राष्ट्र की अर्थव्यवस्था की मजबूत होगी।