'दिल्ली विश्वविद्यालय का अनुकरणीय स्नातक मॉडल'
महात्मा गांधी कथन है, "सभी अच्छे विचार और उपाय क्रियान्वन के बिना कुछ भी नहीं हैं". यह उक्ति राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 पर पूरी तरह से चरितार्थ होती है. देश की शिक्षा व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन लाने हेतु प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन में जो राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 घोषित हुई थी, उसकी बड़ी चुनौती इसका क्रियान्वन है. लेकिन विश्वविद्यालयों में उसे साकार करने के लिए भारत के अग्रणी विश्वविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) ने एक ठोस कदम बढ़ा दिया है. उच्चतर शिक्षा के प्रथम सोपान स्नातक शिक्षा के लिए डीयू के कुलपति प्रो. योगेश सिंह के देखरेख में एक परिवर्तनगामी व दूरगामी करिकुलम फ्रेमवर्क तैयार किया गया है जो पूरे देश के लिए एक मॉडल हो सकता है. अकादमिक वर्ष 2020-23 से लागू होने वाला यह अंडरग्रेजुएट करिकुलम फ्रेमवर्क (यूजीसीएफ) छात्र केंद्रित, रोजगार व शोधपरक और राष्ट्रहित के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीयता को ध्यान में रखकर बनाया गया है. हालाँकि कुछ लोग इस पर सवाल भी उठाए जा रहे हैं.
डीयू का अंडरग्रेजुएट करिकुलम फ्रेमवर्क (यूजीसीएफ) या पाठ्यचर्या की सबसे बड़ी विशेषता है इसका छात्र केन्द्रित होना. हमारी उच्चतर शिक्षा में अबतक जो भी करिकुलम फ्रेमवर्क आदि बनाए जाते थे उसमें छात्रों की विशेष परिस्थिति का उतना ख्याल नही रखा जाता था. सामाजिक, आर्थिक, भौगोलिक और शैक्षणिक इत्यादि अनेक विविधाओं से भरे देश भारत में विभिन्न विद्यार्थियों की अपनी-अपनी विशिष्ट स्थिति और साथ ही अभिरुचियाँ हैं. लेकिन अपवादों को छोड़ दें तो अभी तक डीयू समेत अन्य विश्वविद्यालयों में छात्रों के लिए एक स्ट्रीम में विषयों का सीमित विकल्प ही मिल पाता है. अब डीयू के इस नए यूजीसीएफ में छात्रों को अपने स्ट्रीम से बाहर का विषय पढ़ने का बड़ा अवसर मिलेगा. मिसाल के लिए विज्ञान वाले छात्र अपने ऑनर्स की डिग्री में गणित या रसायन विज्ञान में 'मेजर' (प्रमुख विशेषज्ञता) के साथ-साथ मनोविज्ञान या अर्थशास्त्र में 'माइनर' (लघु विशेषज्ञता) भी हासिल कर सकते हैं. संसार के सभी शीर्ष विश्वविद्यालयों में यह व्यवस्था वर्षों से है. नए तरह के रोजगारों के साथ-साथ बहु-अनुशासनिक शोधों में यह संरचना अत्यंत लाभकारी सिद्ध होनेवाली है. वैसे यूजीसीएफ में अपने स्ट्रीम के 'माइनर' लेने का भी विकल्प है. उदाहरण के लिए भौतिकी विज्ञान में 'मेजर' के साथ गणित में 'माइनर' किया जा सकता है. अर्थात, डीयू छात्रों को अपनी अभिरुचि और अभियोग्यता के अनुरूप विषयों को चुनने के अनेक विकल्प मिलेंगे, जो अभी अत्यंत सीमित हैं.
डीयू के यूजीसीएफ की एक अन्य बड़ी विशेषता है कि स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार सच्चे अर्थों में मैकाले मॉडल से छुटकारा पाने की कोशिश की गई है. हमारे यहाँ अभी स्नातक शिक्षा का प्रारूप मुख्यतः पुस्तकीय या क्लासरूम तक ही सीमित होता है. वास्तविक दुनिया से छात्र एक तरह से कटे होते हैं. उनके पुस्तकीय ज्ञान का व्यवहारिक जीवन या रोजगार में कोई उपयोग नहीं हो पाता. मीडिया में अक्सर खबरें आती हैं बी.ए./बी.एससी. या एम.ए./एम.एससी. यहां तक कि पीएचडी किए लाखों लोग चपरासी के पद के लिए आवेदन करते हैं. उन्हें कोई रोजगार नहीं मिल पा रहा, और वे किसी स्वरोजगार लायक भी नहीं हैं. शिक्षित युवाओं और अप्रत्यक्ष रूप से देश के भी समय, धन, ऊर्जा की यह बर्बादी है. इसीलिए नए यूजीसीएफ में दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रों को अब 'इंटर्नशिप' या 'अप्रेंटिसशिप' या 'प्रोजेक्ट' या 'कम्युनिटी आउटरीच' करने का अवसर चार सेमेस्टरों के लिए प्राप्त होगा, और इनके अंक भी मार्कशीट में जुड़ेंगे. महात्मा गाँधी जी के विचारों से प्रभावित इस प्रणाली से रोजगार और स्वरोजगार दोनों को ही बढ़ावा देगा. दुनिया के सभी सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों में यह प्रणाली पहले से ही मौजूद है.
इसी तरह छात्रों के कौशल विकास के लिए रोजगारपरक 'स्किल एनहांसमेंट (वृद्धि) कोर्स' यूजीसीएफ के अंतर्गत उपलब्ध होंगे. वर्तमान परिस्थितियों पर नज़र डालें तो आज बी.ए./बी.एससी. आदि करने के बाद अनेक लोग रोजगार पाने के लिए विभिन्न प्रोफेशनल कोर्सों में दाखिला लेते हैं जैसे- कम्यूटर प्रोग्रामिंग, डाटा हैंडलिंग, फूड प्रोसेसिंग इत्यादि. यूजीसीएफ के 'स्किल एनहांसमेंट (वृद्धि) कोर्स' के अन्दर इस तरह के अनेक कोर्स छात्र कर सकेंगे. देश के नाम मात्र विश्वविद्यालयों में ही अभी तक इस तरह के कोर्स उपलब्ध हैं और वह भी एक 'एड ऑन कोर्स' के रूप में. अर्थात ये कोर्स करना अनिवार्य नहीं होता. इसके अतिरिक्त इनके अंक भी अंतिम अंक-तालिका में नही जुड़ते.
एनईपी-2020 का एक प्रमुख बिंदु है विद्यार्थियों का चतुर्मुखी और सर्वांगीण विकास, जो भारतीय मूल्यों से भी अनुप्राणित हो. इस भावना के अनुरूप यूजीसीएफ के तहत भारतीय शिक्षा में संभवत: पहली बार स्नातक स्तर पर 'वैल्यू एडिशन कोर्स' जैसे- भारतीय संस्कृति, नीतिशास्त्र, खेलकूद शिक्षा आदि भी शामिल किए गए हैं. इनके अंक भी अंकतालिका में जुड़ेंगे ताकि इन्हें छात्र गंभीरता से सीखें.
एनईपी-2020 का एक प्रमुख लक्ष्य है भारत को शोध-अनुसंधान के क्षेत्र में एक महाशक्ति के रूप में स्थापित करना. इस दिशा में भी यूजीसीएफ पूर्ण सजग है और उच्चतर शिक्षा के पहले पायदान स्नातक से ही विद्यार्थियों को शोध-प्रशिक्षण मिलना शुरू हो जाएगा. चौथे वर्ष में उन्हें लघुशोध प्रबंध (डिजरटेशन) लिखने का अवसर मिलेगा जो विश्व के श्रेष्ठ विश्वविद्यालयों में भी प्रचलित पद्धति है. प्रस्तावित संरचना इतनी लचीली है कि किसी छात्र को एक- दो साल की पढ़ाई के बाद यह लगे कि उसे अपने 'माइनर' विषय में स्नातकोत्तर या पीएचडी आदि करना है तो वह 'मेजर' विषय के बजाय 'माइनर' में भी लघुशोध प्रबंध लिख सकता है.
अत्यंत लोकतान्त्रिक तरीके से सभी विभागाध्यक्षों और कॉलेज प्राचार्यों और अन्य हितधारकों से सुझाव लेकर बनाए गए इतने अच्छे पाठ्यचर्या पर फिर विवाद क्यों? विवाद का एक कारण तो विचारधारात्मक है, जो पूरे एनईपी-2020 का ही नकार करता है. दूसरे, एक भ्रम बन गया है कि इससे शिक्षकों की छंटनी होगी क्योंकि कुछ क्रेडिट कम हो जाएँगे. जबकि यह सच नहीं है. प्रस्तावित डीयू फ्रेमवर्क तीन वर्षों में 132 क्रेडिट और चार वर्षों में 176 क्रेडिट की अनुशंसा करता है, जो 'यूजीसी गाइडलाइन फॉर मल्टीप्ल एंट्री एंड एग्जिट इन अकेडमिक प्रोग्राम' के निर्देश से बहुत अधिक है. यूजीसी गाइडलाइन के अनुसार तीन साल की डिग्री में क्रेडिट 108 से 120, और चार साल में 144 से 160 क्रेडिट हो सकते हैं ताकि हमारे छात्रों पर ज्यादा लोड न पड़े. देश के अन्य विश्वविद्यालयों में भी क्रेडिट सीमा यूजीसी गाइडलाइन वाली ही है. शीर्ष अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालयों में तो यह लोड और भी कम है- तीन वर्षों में 96 से 108, और चार वर्षों में 128 से 144 के बीच. लेकिन डीयू ने शिक्षकों के हितों को ध्यान में रखते हुए एक संतुलनकारी कार्य किया है। चूँकि डिसिप्लिन स्पेसिफिक इलेक्टिव (विषय से सम्बंधित ऐच्छिक कोर्स) के विकल्प पहले के मुकाबले में काफी ज्यादा होंगे, इसलिए उससे सम्बंधित सेक्शन भी ज्यादा होंगे. और, इसलिए शिक्षकों की संख्या कम नहीं होगी. यह भी गौरतलब है कि छात्रों की संख्या में कमी नहीं होनी है तो तदनुसार शिक्षकों की छंटनी होने की सम्भावना भी नहीं है. बल्कि देखा जाए तो शिक्षकों की संख्या बढ़ोतरी ही होगी क्योंकि एक अतिरिक्त चौथा साल बढ़ जाने से हर विषय में अतिरिक्त शिक्षकों की आवश्यकता होगी.
स्वाधीनता के 75 साल बाद आज जब हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं तो हमारी स्नातक शिक्षा भी पहली बार सच्चे अर्थों में आजाद होकर पूरी तरह से छात्र और देश हित में नए क्षितिज छूने को तैयार है. शिक्षा से जुड़े सभी हितधारकों को उच्चतर शिक्षा की इस अभिनव महायात्रा में अपना पूर्ण सहयोग करना चाहिए. यही सबके हित में है.
( लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर और डीन प्लानिंग हैं)