ग्वालियर-चंबल ने दिया भाजपा का भरपूर साथ
वेबडेस्क। लोकतंत्र का बड़ा महोत्सव आज सानंद संपन्न हो गया। पांच में से चार राज्यों के नतीजे हमारे सामने हैं। इनमें से तीन राज्यों मध्यप्रदेश, राजस्थान, और छाीसगढ़ में भाजपा को जबर्दस्त जीत मिली है, ऐसी जीत जिसकी कि किसी को कल्पना तक नहीं थी। इस जीत के कई मायने हंै। एक खास संदेश तो यही है कि देश में मोदी का जादू सिर चढ़कर बोल रहा है और दूसरे यह कि मप्र में ये कमाल शिवराज सिंह ने किया है, हालांकि पार्टी ने इस बार उनका चेहरा सामने नहीं रखा था।
मप्र के नतीजे तो इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि भाजपा ने पांचवीं बार साा में वापसी की है। इसमें भी ग्वालियर-चंबल को अनदेखा नहीं किया जा सकता। इस इलाके पर भी प्रदेश भर की निगाहें थी और इस बार भाजपा को यहां से अपेक्षित जनमत मिला है। पिछले चुनाव की बात करें तो ग्वालियर- चंबल में भाजपा बहुत बुरी तरह पराजित हुई थी। इस अंचल की 34 सीटों में से भाजपा को महज सात सीटें ही मिल पाईं। जबकि कांग्रेस को 26 व बसपा को एक सीट मिली। लेकिन इस बार अंचल के आठों जिलों में भाजपा ने अच्छा प्रदर्शन किया है। असल में 2018 में यहां से भाजपा को जिस तरह झटका लगा था, उसके बाद से यह माहौल बनाया गया कि ग्वालियर-चंबल में इस बार फिर भाजपा की हालत पतली है। बार-बार यह कहा गया कि भाजपा के खिलाफ जबर्दस्त लहर है।
कांग्रेस के चाणक्य कहे जाने वाले दिग्विजय सिंह सरीखे नेता पूरे चुनाव के दौरान ग्वालियर-चंबल में डेरा डाले रहे। देखा जाए तो भाजपा में भी कहीं न कहीं डर था कि इस बार चंबल हाथ से न निकल जाए सो भाजपा के प्रमुख रणनीतिकार केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने बार-बार यहां आकर कार्यकर्ताओं में जोश भरा। शिवराज सिंह से लेकर केन्द्रीय मंत्रीद्वय ज्योतिरादित्य सिंधिया व नरेन्द्र सिंह तोमर ने यहां एक-एक सीट पर जी-जान लगा दी और जब नतीजे आए तो कांग्रेस के पैरों के नीचे जमीन नहीं रही। 2018 में जो कांग्रेस 26 सीटें जीती थी वह 16 पर आ गई। जबकि सात सीटें जीतने वाली भारतीय जनता पार्टी 18 पर पहुंच गई। ग्वालियर की छह सीटों में से भाजपा ने तीन सीटें जीती। जबकि शिवपुरी में चार, दतिया में एक, मुरैना में तीन, भिण्ड में तीन, गुना में दो एवं अशोकनगर में दो सीटों पर भी भाजपा सफल रही। हां श्योपुर में भाजपा को सफलता नहीं मिल सकी। हालांकि ये सफलता और भी बेहतर हो सकती थी। कारण कुछ चयन तो प्रारंभ से ही कठघरे में थे। फिर भी ग्वालियर-चंबल ने 2018 की तुलना में भाजपा के हक में बेहतर नतीजे दिए हैं।
सबसे खास बात यह है कि ग्वालियर -चंबल में कई दिग्गजों को इस बार नकार दिया। दतिया को चमकाने वाले और उसे एक धार्मिक नगरी के रूप में देश के नशे पर लाने वाले प्रदेश के गृहमंत्री डॉ. नरोाम मिश्र चुनाव हार गए। उनकी हार के या कारण हो सकते हैं? यह विचारनीय प्रश्न है। प्रदेश सरकार में मंत्री रहे पोहरी से भाजपा के प्रत्याशी सुरेश राठखेड़ा, बमौरी से महेन्द्र सिंह सिसौदिया, अटेर से अरविन्द भदौरिया, भाजपा के कद्दावर नेता गोहद से लाल सिंह आर्य व ग्वािलयर ग्रामीण से भारत सिंह कुशवाह की हार भी समीक्षा की दरकार रखती है। मतदाताओं ने कांग्रेस के दिग्गजों को भी नहीं बशा। लहार से अजेय रहे कांग्रेस के कद्दावर नेता डॉ. गोविन्द सिंह इस बार पराजित हुए तो शिवपुरी में केपी सिंह व चाचौड़ा से दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह को भी जनता ने नकार दिया।
असल में भाजपा ने 2018 में जो गलतियां की इस बार उनमें बड़े पैमाने पर सुधार किया गया। स्थानीय मुद्दों के साथ शासन की जन कल्याणकारी योजनाओं को जनता तक पहुंचाने व अपने हक में जनमत तैयार करने का काम भाजपा के कार्यकर्ताओं ने मजबूती व ईमानदारी से किया। उधर कांग्रेस सिर्फ इस भरोसे रही कि भाजपा का विरोध है और उसके चलते इसे जीत मिली ही जाएगी। लाड़ली बहना योजना ने बड़ा कमाल किया। इस बात से इनकार नही किया जा सकता। लेकिन कांग्रेस अंत तक इस बात को समझ नहीं सकी। असल में कांग्रेस भ्रम में रही। दुष्यंत के शदों में कहे तो कांग्रेस के साथ ये हुआ कि- तुहारे पांव के नीचे जमीन ही नहीं कमाल ये है कि फिर भी तुहें यकीन नहीं।