जन्म जयंती पर विशेष : स्वातंत्र्य क्रांति के वीर नायक क्रांतिवीर डॉ भगवानदास माहौर
वेबडेस्क। उनके साहस से प्रभावित होकर महानायक चंद्रशेखर आजाद ने सांडर्स वध योजना में उनका चयन बलिदानी सरदार भगतसिंह के विकल्प के रूप में किया तथाक्रांतिवीर राजगुरु के साथ उन्हें भुसावल बम क्रांति योजनाके नेतृत्व कादायित्व प्रभार भी सौंपा |ऋषि गालव की तपोभूमि,तथावीरांगना लक्ष्मीबाई की बलिदान वेदी ग्वालियरका अंचल सन १८५७ के प्रथम स्वतन्त्र समर के कालखंड से स्वाधीनता प्राप्ति तक कर्न्तिकारियों की कर्मभूमि का गुप्त केंद्र रहा था |
कन्तिनायक चंद्रशेखर आज़ाद के नेतृत्व तथा क्रांतिवीर सरदार भगतसिंह के संयोजन में सांडर्स वध योजना तथा असेम्बली बम क्रांति जैसीविप्लवीयोजनाओं कीव्यूह रचना ग्वालियर में ही बनी थी | इन महान कालजयी क्रांति नायकों द्वरा प्रेरित एवं प्रशिक्षित कर्मयोगी एवं साहित्य मनीषी डॉ भगवानदास माहौर जी को क्रांति की ज्वाला को प्रज्वलित एवं प्रस्फुटित करने का परम सौभाग्य शौर्यधानी ग्वालियर में ही प्राप्त हुवा |ग्रामीण परिवेश के श्री रामचरण माहौर के परिवार में 27 फरवरी 1909 के दिन ग्राम बडोनी ,जिला दतिया तत्कालीन मध्य भारत में जन्में वीर भगवानदासकेसाहसमय एवंराष्ट्रसमर्पित यशस्वी जीवन के कुछज्वलंत प्रसंग इस संकलन के माध्यम से प्रस्तुत हैं:शिक्षा: प्रारम्भिक शिक्षा:ग्रामबडोनी,दतिया, माध्यमिक शिक्षा ,झांसी तथाउच्चशिक्षा, विक्टोरिया कालेज( महारानी लक्ष्मीबाई महाविद्यालय) ग्वालियर|, से प्राप्त करने के उपरान्त शोध उपाधि आगरा विश्वविद्यालय से प्राप्त की|
क्रान्ति दीक्षा एवं परिक्षा -
17 वर्ष की आयु में क्रांति की पाठशाला में प्रवेश दीक्षा से पूर्वमहानायक चंद्रशेखर आज़ाद ने उनकी परीक्षा लेने के लिए शचीन्द्र नाथ बख्शीके साथ मिलकर उनके साहस की परीक्षा ली|पिस्तौल की नली का मुंह युवक भगवानदास की ओर करके उसमें गोली भरना सिखातेहुए बख्शी ने जैसे ही अचानक गोली चलाने का प्रयास किया तो आजाद ने उनका हाथ छत की ओर उठा दिया जिससे गोली धमाके के साथ छत में जा लगी; बख्शी ने डरते हुए घबराहटका अभिनय किया | परन्तु साहसी भगवान दास निडर खड़ेरहे,आज़ाद ने उनकी नब्ज़ तथा दिल की धड़कन को सामान्य पाकर अपना सहयोगी बना लिया|
साहसिक दायित्व एवं कृतित्व:ब्रिटिश शासन के विरुद्ध सक्रिय संघर्षके दौरान उनका चयन सांडर्स वध योजना में उनका चयन सरदार भगतसिंह के विकल्प के रूप में किया गया| इसके अतरिक्त भुसावल बम क्रांति में उन्हें योजना का नेतृत्व सौंपते हुए क्रांतिवीर राजगुरु से सहयोग का दायित्व प्रदान किया गया | इस योजना के क्रियान्वन में ब्रिटिश पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया| न्यायालय में गवाहों तथा सिपाही पर हमलाकरके घायल करने तथा क्रांति के आरोप में उन्हें आजीवनकारावास का दंड दिया गया|
साहित्य साधना : स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात शिक्षण कार्य तथाशोध अध्यन के साथ साथ वेक्रांतिवीरों की बलिदान गाथा के प्रचार प्रसार हेतु लेखन कार्य में जुट गए| उन्होंने क्रांतिवीरों,चंद्रशेखर आज़ाद,सरदार भगतसिंह,सुखदेव. राजगुरु एवं नारायणदास खरे की बलिदान गाथा पर आधारित एक कालजयी पुस्तक " यश की धरोहर" की रचना की जिसे प्रमुखप्रकाशकों ने प्रकाशित किया| इस कृतित्व में श्री सदाशिव मलकापुरकर एवं श्री शिव वर्मा जी उनके सह लेखक रहे | स्वतंत्रता संघर्ष के शोध कार्य पर उन्हें आगरा विश्वविद्यालय द्वारा पी.एच. डी की उपाधि प्रदान की गयी तथा झाँसी विश्वविद्यालय ने डी.लिट्. की मानद उपाधि से सम्मानित किया |साहित्य मनीषी डॉ भगवानदास ने देशभक्ति आधारित काव्यसाधना मेंलींन रहते हुए 12 मार्च 1979 के दिन देवत्व प्राप्त किया| कोटिश: नमन: वन्दे भारत |