पाकिस्तान की मांग करने वाले "अल्लामा इकबाल "के पिता कश्मीरी पंडित थे, जानिए फिर कैसे बने कट्टर मुसलमान
नईदिल्ली/ वेबडेस्क। "सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान हमारा" लिखने वाले मशहूर शायर अलामा इकबाल अपनी शायरियों के लिए ही नहीं बल्कि हिंदू और मुसलमान के लिए द्विराष्ट्र की थ्योरी देने के लिए जाने जाते है। इकबाल ही दुनिया के वह पहले इंसान थे, जिन्होंने कहा था की हिंदू और मुसलमान साथ नहीं रह सकते। इसीलिए उन्हें पाकिस्तान का जनक भी कहा जाता है। बता दें की पाकिस्तान के निर्माण की सबसे पहले बात करने वाले इक़बाल जन्म से मुसलमान थे लेकिन उनके पूर्वज हिंदू ही थे। उनके पूर्वज कश्मीरी पंडित थे, जिनका गोत्र सप्रू था।
कश्मीर में धर्मांतरण का खेल इकबाल के जन्म से 450 साल पहले शुरू हो चुका था। इकबाल जन्म से मुसलमान थे लेकिन उनके पिता रतन लाल जन्म से हिंदू और शैव मत को मानने वाले थे। जिन्होंने आगे चलकर इस्लाम कबूल कर लिया था। बताया जाता है कि उनका परिवार बीरबल का वंशज था। जोक शोपियां से कुलगाम जाने वाली सड़क पर स्थित स्प्रैण नामक गांव में रहता था। स्प्रैण गांव का निवासी होने कारण इन्हें सप्रू कहा जाता था। बीरबल के एक बेटी और पांच बेटे हुए। उनके तीसरे बेटे का नाम कन्हैयालाल था और उनकी बीवी का का नाम इंदिरानी था। कन्हैयालाल के तीन बेटे और पांच बेटियां हुई।यहीं कन्हैयालाल इकबाल के दादा थे। कन्हैयालाल के बड़े बेटे रतन लाल ने इस्लाम कबूल कर इमाम बीबी नाम की मुस्लिम महिला से शादी कर ली थी।धर्मांतरण के बाद रतन लाल ने अपना नाम नूर मोहम्मद रख लिया, इन्हीं नूर मोहम्मद के घर अलामा इकबाल का जन्म हुआ। रतनलाल के इस्लाम कबूल करते ही पूरे सप्रू ब्राह्मण समुदाय ने रतन लाल के साथ अपने संबंध तोड़ लिए थे।
रतनलाल के नूर मोहम्मद बनने की कहानी -
अब रतन लाल के धर्मांतरण को लेकर कई बातें कही जाती है, इकबाल की कई कविताओं का अंग्रेजी में अनुवाद करने वाली साहिदा हमीद के अनुसार, रतनलाल कश्मीर के अफगान सूबेदार के यहां अहलकार( कर संग्राहक ) के रूप में काम करता था। उन्हें यहां अफगान सरदार ने कर चोरी और पैसे की हेरा -फेरी करते हुए पकड़ लिया था। इसके बाद अफगान सूबेदार ने रतनलाल के सामने दो विकल्प रखे की या तो वह मुसलमान बन जाए या उसका सर कलम कर दिया जाए। रतन लाल ने जिंदा रहने के लिए इस्लाम अपना लिया और अपना नाम नूर मोहम्मद रख लिया। अफगान सरदार ने उसकी शादी इमाम बीबी नाम की महिला से करा दी। जब कश्मीर पर महाराजा रणजीत सिंह ने विजय हासिल कर ली तो अफगान सरदार कश्मीर छोड़ अफगानिस्तान भाग गया। इसके बाद रतनलाल उर्फ नूर मोहम्मद भी कश्मीर छोड़ अपनी पत्नी के मायके स्यालकोट में आ बसा। यहीं 9 नवम्बर 1877 को अलामा इकबाल का जन्म हुआ।
पाकिस्तान की थ्योरी -
इकबाल की शिक्षा-दीक्षा प्राप्त की। जैसा क विदित है जब भी कोई धर्म परिवर्तन करता है तो नए समाज से जुड़ने के लिए कट्टरता को अपनाता है। यहीं कारण था की अलामा इकबाल भी एक कट्टर मुसलमान बन गए। उनकी शायरियों को पसंद करने वालों में उनके अनेक हिन्दू और सिख दोस्त व प्रशंसक भी थे लेकिन वह मुसलमानों को हिंदुओं के साथ असहज मानते थे। यहीं कारण था की उन्होंने आगे चलकर हिंदू और मुसलमानों के लिए अलग-अलग देश बनाने की अवधारणा दी। उनकी ही विचारधारा के मुताबिक आगे चलकर पाकिस्तान बना। उनके निजी जीवन के बारे में कहा जाता है कि उनकी तीन शादियां हुई थीं। उनके एक बेटे का नाम जावेद था जो कि बाद में लाहौर हाई कोर्ट का जज बना।
सारा जहां हमारा भी लिखा
बताया जाता है की इकबाल शुरू में अखंड भारत की बात करते थे और उन्हें कश्मीरी होने पर फख्र था। उन्होंने अपनी कश्मीरी ब्राह्मण जड़ों के बारे में अपनी कविताओं में बहुत गर्वपूर्ण उल्लेख किया है। लेकिन कश्मीरी ब्राह्मणों ने उनकी लगातार अनदेखी की जिसके बाद में हिंदी हैं हम वतन लिखने वाले इकबाल ने मुस्लिम हैं हम, वतन है और सारा जहां हमारा भी लिखा।