कब तक हमारे सुशांत को षड्यंत्रों से मारते रहोगे?
वेबडेस्क। एक मध्यम वर्गीय परिवार का युवा जो छोटे शहर पटना से निकलता है। सिनेमा में अपना कॅरियर बनाने का सपना लेकर मायानगरी पहुँचता है। सुशांत एक क्षमतावान होनहार युवा जो पढ़ाई-लिखाई में भी बहुत ही प्रतिभाशाली था ,उसने फिजिक्स में ओलंपियाड जीता। उसने देश के जानेमानेे देहली कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से पढ़ाई की, इसके बाद मायानगरी पहुंचा। अपने दम पर पवित्र रिश्ता धारावाहिक से अपनी विशेष पहचान बनायी और यह सफर बढ़ता ही चला गया। भारतीय क्रिकेट टीम के तत्कालीन कप्तान महेंद्र सिंह धोनी की बायोपिक एम .एस धोनी में एक शानदार चरित्र को जिया। बस यहीं से बॉलीवुड के गिरोह को खटकना आरंभ हो गया। तथाकथिक बॉलीबुड के मठाधीशों को, कुछ घरानों और सबंधित प्रोडक्शन हाउसेज ने उसे टारगेट करना प्रारंभ कर दिया। बिल्कुल अभिमन्यु की तरह चक्रव्यूह रचे जाने लगे पहले फिल्मों को साइन करो बाद में मना कर दो क्योंकि सुशांत का कोई गॉड फादर नहीं था, इससे पहले भी कई लोग इन लोगों के शिकार हो चुके थे।
सत्येंद्र सिंह
इनमें प्रमुख रूप से गोविंदा, रवीना जैसे सुपर स्टार भी हंै, ऐसे लोगों की एक लंबी फेहरिस्त है। लोगों ने इस घटना के बाद धीरे-धीरे मुखर होना आरंभ कर दिया है। मनोज वाजपेयी, राजपाल यादव, राजकुमार राव, रणदीप हुड्डा, आशुतोष राणा बहुत ही प्रतिभावान कलाकार हंै परन्तु उनको उनकी योग्यता के हिसाब से सम्मान नहीं मिल पाया क्योंकि इन सभी की लड़ाई लडऩे वाला कोई गॉडफादर नहीं है। वहीं दूसरी ओर खानदानी और जमे हुये गुंडे अपने नाकाबिल पुत्र पुत्रियों को मौके पे मौके दिये जा रहे है लेकिन जो घोड़े नहीं हैं, वह घोड़े नहीं बन सकते। लोग इसे भाईभतीजाबाद कहते हैं लेकिन मैं इसे प्रायोजित दादागीरी और एकाधिकारवाद कहूँगा।
सुशांत का दोष इतना है वह मध्यवर्गीय परिवार और बिहार के छोटे कस्बे का बहुत ही प्रतिभावान युवा जिसने सपने देख लिये यह उसका यही सबसे बड़ा दोष था, वह यह समझ नहीं पाया कि उसे अभिमन्यु बनाया जा रहा है।
एक सुलझा हुआ व्यक्तित्व कब तक उलझे बिना रह सकता है। जरा सोचिए खुद को खत्म करने का कदम उठाना पड़ा इस कदम को उठाने में उसे कितनी मानसिक प्रताडऩा झेलनी पड़ी होगी?
क्या उसके मन में यह प्रश्न नहीं आया होगा कि वह अपने पिता की आखिरी उम्मीद है? चार बहनों का एक मात्र हाथ है जिसे वह राखी बांधती है? निश्चित आया होगा परंतु कितना मजबूर रहा होगा कि निश्चय कर लिया सपनों के सफर को यहीं रोकना है, सपने भी वह जिसे उसने सूचीबद्ध कर रखा था।
बॉलीवुड के मठाधीशो तुम आँख-कान खोलकर सुन लो, तुम मठाधीश हो क्योंकि हम हिंदी भाषी क्षेत्र (बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश, झारखंड, उत्तराखंड , हिमाचल और छत्तीसगढ़) के लोगों ने सर आँखों पर बैठा रखा है।
कहानी हमारी होती है, लिखने वाले हमारे लोग होते हैं, नाम बदलकर तुम लोग अपना नाम दे देते हो,सहयोगी कलाकार, सेट तैयार करने वाले,खून पसीना हमारा लगता है। हजारों लोग हिंदी भाषी क्षेत्र के होते हैं जो अपने-अपने मनोयोग और सामथ्र्य से कार्य करते हंै।
और यह भी मत भूलों की महंगे महंगे टिकट भी हम लोग खरीदते हैं। जिससे तुम्हारे पास हजारों करोड़ रुपये पहुँचते है। यह कैसा घमंड है आपका? आप क्या दूसरे लोक से आये हो जो हमारे बच्चों से नफरत करते हो या हमारे लोग तुम्हें सुहाते नहीं हैं?
याद रखना एक बार हमने अपनी आँखों से उतार दिया तब परिणाम बहुत बुरे होंगे? हमारे यहां का युवा बहुत जागरूक है बेहतरीन विकल्प खोजना जानता है।
आप यह मत भूलो दक्षिण में आपसे कई गुना अच्छी स्क्रिप्ट, पिक्चराइजजेशन के साथ फिल्मों का निर्माण होता हैं, जिसका मुख्य उद्देश्य जनभावनाओं को ध्यान में रखते हुये, स्वस्थ मनोरंजन के लिये समाज की समस्याओं को फिल्मों के माध्यम से निर्विवादित रुप से प्रस्तुत किया जाता है, स्थिति यहाँ तक है आप बॉलीवुड के लोग उनकी फिल्मों का रीमेक बनाते हंै। यही विकल्प उत्तर में ना बन जाये। अब यहां के बेटे सुशांत नहीं बनेंगे।