वंदे मातरम : भारत के स्वत्व का जयघोष
वेबडेस्क। भारत माता की जय यह वह नारा है जो भारतीयों को अपनी मातृभूमि, अपनी राष्ट्र स्वरूप धरती से, देश से अपने संबंध को संजोने की याद दिलाता है, यह स्मरण भी कराता है उस भूमि का जो उनकी 'माँ स्वरूप है। आज का भारत और भारतीय जब दोनों हाथों को आकाश में उठाकर 'भारत माता की जय बोल सकते हैं, लेकिन उन्नीसवीं सदी की शुरुआत में यह उस समय के भारत के लिए अकल्पनीय था, ना तो लोगों के स्मरण में था कि भारत मात्र एक भूमि का टुकड़ा नहीं, बल्कि यह उनकी जननी है, माता है। उस समय देश छलनी हो रहा था, विभिन्न ताकतें देश को अलग कर रही थीं, राष्ट्र भूख की आग में तड़प रहा था और दो विदेशी सत्ताओं के बीच भारत पर कब्ज़ा रखने या नया कब्ज़ा करने के लिए युद्ध चल रहा था, संक्षेप में कहें तो भारत प्रताडि़त हो रहा था।
राष्ट्र की अवधारणा तो बड़ी नयी है, अभी हाल ही में एक राष्ट्र-राज्य की अवधारणा सामने आई है, पर भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत, वेदों से मिलती है, उसके ऋषि सपूर्ण धरा को अपना मानते थे, बंकिम चंद्र चटर्जी महान साहित्यकारों में से एक थे, पर साथ ही साथ वो महान ऋषि भी थे, वे दृष्टा भी थे। इसी के कारण परमात्म के प्रभाव से,उसके दिव्य दर्शन और प्रेरणा से बंकिम जी ने 'आनंदमठ' की रचना की जिस कृति से भारत का उसका दिव्य मंत्र 'वंदे मातरम' मिला।
आनंदमठ केवल एक साहित्य का दर्शन नहीं, बल्कि भारत के लिए एक रहस्योद्घाटन था, आनंदमठ ने इस देश में वह जन्म दिया जो हजारों वर्षों से विस्मृत था, और वह था मातृभूमि के रूप में राष्ट्र की समझ, साथ ही उसके लिए तड़प 'बंदे मातरम' का नारा। बंकिम चंद्र की बंदे मातरम की खोज ने ही भारत के हजारों सपूतों को अपनी मां से परिचित कराया, जिसके बारे में समाज विस्मृत हो चुका था और यही भूल भारत को ग़ुलामी की आग में झुलसा रही थी।
बंकिम के बंदे मातरम ने वेदों के प्राचीन तथ्यों और भूमि, पृथ्वी, देश या मातृभूमि को देवी के रूप में विचार को जीवंत किया। यद्यपि वैदिक ऋषियों ने दुनिया को अपना माना था, लेकिन बंकिम के 'वंदे मातरम' मातृभूमि के बीज को दुबारा जीवंत किया। यह समय भारतीय राष्ट्र का शिखर समय था, स्वतंत्रता के लिए संघर्ष अब सामाजिक मूल्यों और लोकतांत्रिक स्वतंत्रता के बारे में नहीं था, बल्कि देश को विदेशी प्रभुत्व के चंगुल से मुत कराने के लिए था भारत माता, या मातृभूमि, लाखों लोगों के दिलों में जाग रही थी।
श्री अरबिंदो ने बंदे मातरम के बारे में कहा है कि यह एक ऐसा मंत्र दे दिया गया था जिसने एक ही दिन में पूरे भारत के लोगों की शति को, देशभति के धर्म में परिवर्तित कर दिया था। भारत माता ने बंदे मातरम से स्वयं को प्रकट किया था, और एक बार जब यह दर्शन हो जाए तो कोई भी व्यति शांति से नहीं बैठ सकता, जब तक मां का मंदिर ना स्थापित हो जाए, और उस मंदिर में मां की मूर्ति स्थापित ना हो जाए, जब तक मां को त्याग का आधार ना अर्पित कर दिया जाए। एक महान राष्ट्र जिसके पास यह दृष्टि है, वह कभी भी किसी दमन करने वाले के सामने अपनी गर्दन नहीं झुका सकता।
बंकिम की रचना 'बंदे मातरम' को दशकों तक इतिहास में एक ऐसे अद्भुत अध्याय के रूप में संजोए रखा जाएगा जिसके द्वारा भारत के हर एक नागरिक चाहे वो विचारक हों, सामाजिक क्रांति के जनक रहे हों, संन्यासी या ऋषि रहे हों या चाहे कलाकार या कृषक, भारत के समस्त निवासियों को एक विचार भारत के स्वतंत्र राष्ट्र की स्थापना के लक्ष्य से बांध दिया। और यही लक्ष्य था जिसके कारण भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति हुई, भारत स्वतंत्र हुआ, स्वतंत्र राष्ट्र में स्वतंत्र चिंतन ने जन्म लेना आरभ किया।
(लेखक सेवा भारती के संभाग संगठन मंत्री हैं)