चैत्र प्रतिपदा को नववर्ष - वैज्ञानिक, खगोलीय एवं सांस्कृतिक महत्व

चैत्र प्रतिपदा को नववर्ष - वैज्ञानिक, खगोलीय एवं सांस्कृतिक महत्व
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लेखक दीपक द्विवेदी जबलपुर

वेबडेस्क। स्वामी विवेकननन्द जी ने कहा - "यदि हमें गर्व से जीने की भावना जगानी है, अपने हृदय में देशभक्ति का बीज बोना है तो हमें हिन्दू राष्ट्रीय कैलेंडर तिथियों का आश्रय लेना होगा।जो परायों की तारीखों पर भरोसा करता है वह गुलाम बन जाता है और आत्म-सम्मान खो देता है। "

यह तथ्य केवल तिथि का नहीं है, यह इस धरा को संस्कृति , रीती-रिवाज , परम्परा , जलवायु आदि का है। यह दुनिया का सबसे प्राचीनतम तरीका है , नववर्ष मनाने का जो पूरी तरह खगोलीय एवं वैज्ञानिक है। यहाँ तक कि 1752 तक इंग्लैंड भी 25 मार्च को नववर्ष मनाता रहा है।

भारत में प्राचीन काल से विभिन्न शासको ने अपने अपने सम्वत चलाए है , जो क्षेत्र विशेष में प्रचलित भी है जैसे

स्वयंभू मनु सम्वत - 29102 BC

ध्रुव सम्वत - 27376 BC

कश्यप सम्वत - 17500 BC

विवस्वान सम्वत - 13902 BC

कलम्ब (कोल्लम) सम्वत - 6177 BC

कलि सम्वत - 3102 BC

जैन युधिष्ठिर सम्वत - 2634 BC

वीर निर्वाण सम्वत - 527 BC

श्री हर्ष सम्वत - 456 BC

विक्रम सम्वत - 57 BC

शक सम्वत - 78 AD

कलचुरी - चेदि सम्वत 248 AD

गुप्त सम्वत - 319 - 320 AD

चालुक्य - विक्रम सम्वत - 1176 AD

हिन्दू काल गणना सूक्ष्तम से विराटतम है , 2 परमाणु = 1 अणु से प्रारम्भ होकर वर्ष , युग , मन्वन्तर , कल्प (4 अरब 32 करोड़ ) आदि तक जाती है, जबकि अंग्रेज़ी कलेंडर में अनेक त्रुटिया है। सामान्यत : कलेंडर सूर्य या चंद्र आधारित होते है , ग्रैगेरियन कैलेंडर सूर्य आधारित जबकि इस्लामिक कैलेंडर चंद्र आधारित है। वही भारतीय पंचांग सूर्य-चंद्र आधारित है , पंचांग में ऋतू , दिन (वार) सूर्य आधारित जबकि माह एवं तिथि चंद्र आधारित है। सौर वर्ष 365 दिन का और चंद्र वर्ष 354 दिन का होता है , जिसमे प्रत्येक वर्ष 11 दिन का अंतर आता है। इसी तरह 5 वर्ष में लगभग 55 दिन का अंतर हो जाता है , इसीलिए हर 2-1/2 (ढाई) वर्ष में 1 चंद्र माह बढ़ जाता है जिसे हम मलमास या पुरषोत्त्तम माह के नाम से जानते है।

इस तरह भारतीय पंचांग पूरी तरह वैज्ञानिक है , जिसकी विस्तृत चर्चा आगे के लेख में करेंगे , अभी प्रश्न है चैत्र प्रतिपदा ही नव वर्ष क्यों ?

इसका उत्तर भारतीय संस्कृति , जलवायु और विज्ञान में छिपा हुआ है , इसी दिन त्रेतायुग में श्रीराम जी एवं द्वापर युग में युधिष्ठिर जी का राज्याभिषेक हुआ , सृष्टि की रचना प्रारम्भ हुई जिसे आज 1 अरब 97 करोड़ , 29 लाख , 40 हज़ार , 126 वर्ष बीत चुके है , "चैत्रे मासि जगद् ब्रह्मा ससर्ज प्रथमे अहनि, शुक्ल पक्षे समग्रे तु तु सदा सूर्योदये सति" ब्रह्म पुराण में वर्णित इस श्लोक के अनुसार चैत्र मास के प्रथम सूर्योदय पर ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी। विष्णु जी का प्रथम अवतार आज ही हुआ , महर्षि गौतम एवं झूलेलाल जयंती , आर्य समाज का स्थापना दिवस तथा गुरु अंगद का अवतरण दिवस है। आज के दिन वसंत का वैभव है , न अत्यधिक शीत न अत्यधिक ग्रीष्म इस समय शीतकाल की शीतलता एवं ग्रीष्म काल की आतपता का मध्यबिन्दु होता है। , चारो हर रंग - बिरंगी छटा दिखाई देती है , इसीलिए इसे मधुमास या ऋतुराज कहा जाता है। आज ही के दिन आदि शक्ति की कृपा से ब्रह्मा जी सृष्टि के रचयिता बने, विष्णु पालनकर्ता और शिव संहारकर्ता। शास्त्रों के अनुसार जिस दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि निर्माण काम शुरु किया उस दिन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि थी। इसलिए संवत् की शुरुआत और नए वर्ष का आरंभ इसी दिन से माना जाता है। जब ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति हुई तब सारे ब्रह्माण्ड में अन्धकार था तब माँ जगदम्बा सौरमंडल के मध्य में कुष्मांडा के नाम से स्थित थी , कु अर्थात अंश , ऊष्मा अर्थात ऊर्जा तथा अंड अर्थात ब्रह्माण्ड , अत : कुष्मांडा देवी न अन्धकार युक्त ब्रह्माण्ड को ऊर्जा / प्रकाश प्रदान करने का कार्य किया।

यह नववर्ष भारत के अधिकांश क्षेत्रो में अलग अलग नामो से उत्सव के रूप में मनाया जाता है ,

भारत में चैत्र शुक्लादि, उगादि, गुड़ी पड़वा, चेटीचंड, नवरेह और साजिबू चेराओबा मनाया गया। वसंत ऋतु के ये त्योहार भारत में पारंपरिक नववर्ष की शुरुआत के प्रतीक हैं।

गुड़ी पड़वा और उगादी: ये त्योहार कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र सहित दक्कन क्षेत्र के लोगों द्वारा मनाए जाते हैं। इसमें गुड़ और नीम परोसा जाता है, जिसे दक्षिण में बेवु-बेला कहा जाता है

गुड़ी महाराष्ट्र में घरों में तैयार की जाने वाली एक गुड़िया है।

उगादी पर घरों में दरवाज़ों को आम के पत्तों से सजाया जाता है जिन्हें कन्नड़ में तोरणालु कहा जाता है।

चेटीचंड: चेटीचंड सिंधी समुदाय का झूलेलाल जयंती के रूप में नववर्ष का त्योहार है।

नवरेह:नवरेह कश्मीरी नववर्ष का दिन है।

साजिबू चेराओबा:यह मणिपुर के सबसे महत्त्वपूर्ण त्योहारों में से एक माना जाता है।

राजस्थान :थापना

महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने प्रतिपादित किया है कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से दिन-मास-वर्ष और युगादि का आरंभ हुआ है. युगों में प्रथम सतयुग का आरंभ भी इसी दिन से हुआ है. कल्पादि-सृष्ट्यादि-युगादि आरंभ को लेकर इस दिवस के साथ अति प्राचीनता जुड़ी हुई है

वही दूसरी और 1 जनवरी को मनाया जाने वाला नववर्ष , पूस माह में होता है जो शीत ऋतु का सब कठिन दौर होता है , इस समय भारत में शुभ कार्य नहीं किये जाते। जबकि चैत्र प्रतिपदा के अवसर पर सूर्य भी उत्तरायण अर्थात भूमध्य रेखा पर अपने प्रकाश को लंवबत भेजता है।

भारत में किसी त्यौहार , शुभ कार्य तिथि आधारित होते है न कि दिनांक आधारित फिर 1 जनवरी को नववर्ष क्यों ? जब दशहरा , दीवाली , विवाह आदि तिथि के अनुसार होते है। एक अँगरेज़ अधिकारी ने पंडित मदन मोहन मालवीय से पूंछा कि " कुम्भ में इतना बड़ा जान सैलाब बिना किसी आमंत्रण के कैसे आ जाता है" तब मालवीय जी ने उत्तर दिया " छह आने के पंचाग से" भारत में सब निर्धारित है आज 100 या 1000 वर्ष बाद कब कुम्भ होगा , सूर्यग्रहण , चंद्रग्रहण होगा आदि आसानी से निर्धारित किया जा सकता है , जबकि आज के वैज्ञानिक बिना कंप्यूटर के नहीं कर सकते , वह भी कंप्यूटर में गणना का आधार भारत के खगोल सिद्धांत ही होंगे। प्रयाग में कुम्भ का महापर्व माघ के महीने में मनाये जाने की परम्परा है। यहाँ जब सूर्य और चन्द्रमा मकर राशि के हों और बृहस्पति मेष अथवा वृष राशि में स्थित हों, तो कुम्भ महापर्व का योग बनता है।

आज भी काल गणना प्रचलन में है , आप किसी में शुभ कार्य की समाप्ति संकल्प से होती है जो काल गणना पर आधारित है। अत : नवर्ष भी तिथि आधारित हो।

आज़ादी के बाद प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के सुझाव पर सीएसआईआर अर्थात् वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान काउन्सिल ने यह अध्ययन करने हेतु नवंबर 1952 में कैलेंडर सुधार समिति का गठन किया। प्रसिद्ध भौतिकशास्त्री डॉ मेघनाद साहा इस समिति के अध्यक्ष थे। इसके अन्य सदस्य थे —

1) प्रो. ई सी बनर्जी (इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कुलपति)

2) डॉ. ए एल दप्तरी (बी.ए., बी.एल., डी.एल.टी., नागपुर)

3) श्री बी. सी. करंदीकर (संपादक, केसरी, पुणे)

4) डॉ. गोरख प्रसाद (गणित विभाग के प्रमुख, इलाहाबाद विश्वविद्यालय)के दिन सर्वप्रथम

5) प्रो आर वी वैद्य (माधव कॉलेज, इलाहाबाद)

6) श्री एन सी लाहिड़ी (पंचांगकर्ता, कलकत्ता)

इस समिति ने विक्रम सम्वत को राष्ट्रीय सम्वत बनाने की अनुशंसा की , किन्तु हो नहीं सका।

भारतीय ज्ञान विज्ञान की परम्परा सबसे प्राचीनतम है , चैत्र प्रतिपदा सनातन काल से मनाते आ रहे है। इसीलिए चैत्रप्रतिपदा सर्वप्रथम ब्रह्मा जी की पूजा 'ॐ' के उच्चारण से करे।

ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः ।

स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः ।

स्वस्ति नस्ताक्ष्यों अरिष्टनेमिः ।

स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ।

नूतन वर्ष मंगलमय हो

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