आयातित नारीवाद औऱ बालिका विवाह की आयु ..

आयातित नारीवाद औऱ बालिका विवाह की आयु ..
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केंद्र सरकार द्वारा विवाह की उम्र 21 करने के निर्णय का एक पक्ष यह भी है

वेबडेस्क। बालिकाओं के विवाह की उम्र 18 बर्ष से बढाकर 21 करने का सरकार का निर्णय आयतित नारीवाद के आलोक में नही होना चाहिए।बेशक भारतीय समाज व्यवस्था में महिलाएं बराबरी के पायदान पर नही है, और उनका सशक्तिकरण राज्य का मूलभूत दायित्व है तथापि इस तरह के कानूनी निर्णय क्रियान्वयन के धरातल पर समावेशी नही रहते हैं।विविधताओं से भरे भारतीय लोकजीवन में पश्चिमी या वैश्विक मानकों को ध्यान में रखकर बनाएं गए सामाजिक सुरक्षा के तमाम कानून पहले ही खरे नही उतरे है।बाल ,महिला,अल्पसंख्यक औऱ मानव अधिकार सरंक्षण से जुड़ी जमीनी हकीकत यह है कि कानून निर्माण के बाद से ही इन मामलों पर सरकारी तंत्र की रस्म अदायगी एक स्वाभाविक प्रक्रिया बनकर रह जाती है। वैशविक वचनबद्धता के साथ जुड़े तमाम कानूनों के सामाजिक प्रभावों के आंकलन का देश मे कोई प्रामाणिक तंत्र नही है।

भारत में बालिका विवाह केवल शादी भर का मुद्दा नही है , समग्र भारतीय सामाजिकी में इसके बहुआयाम है। यह कहना कि लड़की और लड़कों की आयु एक समान होना जेंडर इक्वलिटी को मजबूत करेगा पूरी तरह से सच नही है।बुनियादी रूप से यह मुद्दा मौजूदा किशोर न्याय अधिनियम (जेजे एक्ट),पॉक्सो एक्ट,बाल विवाह प्रतिषेध कानून और काफी कुछ आईपीसी की विफलता को प्रमाणित करने वाला भी है।मैदानी अनुभव यही कहता है कि अगर जया जेटली की अध्यक्षता वाली कमेटी की रिपोर्ट को केंद्र सरकार कानून में परिवर्तित करती है तो बड़े सामाजिक वर्ग में इसके दुष्परिणाम देखने मिलेंगे साथ ही कानून व्यवस्था के मोर्चे पर भी देश भर में बड़ी चुनौती खड़ी होना अवश्यंभावी है।खासकर पुलिस के लिए।यह निर्णय इसलिए भी व्यवहार्य नही है क्योंकि पॉक्सो औऱ बाल विवाह के पंजीकृत प्रकरणों में आज भी हमारे यहां कोई टिकाऊ पुनर्वास उपलब्ध नही है।फिलहाल जेजे एक्ट के अनुसार 18 साल तक के सभी बच्चों को वयस्क नही माना जाता है और इससे कम आयु की लड़कियां अगर अपने माता पिता/सरंक्षक की असहमति से विवाह करती है तो विवाद की स्थिति में अधिकतर मामलों में लड़कों के विरुद्ध पॉक्सो एक्ट में कारवाई की जा रहीं हैं।चूंकि स्थानीय स्तर पर पुलिस बालिकाओं के सरंक्षक की फरियाद पर गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करती है और उसका पूरा ध्यान ऐसे प्रकरणों में बालिकाओं की बरामदगी कर प्रकरण नस्तीबद्ध करने में होता है।

नस्तीबद्ध करने की प्रक्रिया में कथित प्रेमी जो अब पति हो चुका है के विरुद्ध पॉक्सो एक्ट में जेल की कारवाई होती है। नतीजतन बालिका या महिला उसी पारिवारिक परिवेश में बंधक हो जाती है या उसे शेल्टर हाउस के नारकीय विकल्प को चुनना पड़ता है।यहाँ से सबंधित बालिका के सामाजिक समेकन की चुनौती भी आरम्भ हो जाती है जिसका आज तक कोई टिकाऊ विकल्प भारत की बाल सरंक्षण योजना ( आईसीपीएस) नही दे पाई है।जाहिर है सिद्धान्तय पॉक्सो का यह पक्ष महिलाओं की सिवाय दुश्वारियां बढाने से ज्यादा नही कर पा रहा है। बाल विवाह प्रतिषेध कानून के प्रकरणों में भी यही स्थिति है।देश भर की बाल कल्याण समितियों के पास प्राय रोज ऐसे प्रकरण आते है।यहां सवाल उठाया जाएगा कि 18 साल से पूर्व बाल विवाह कैसे न्यायसंगत हो सकता है?लेकिन समानांतर सवाल बड़ी संख्या में आ रहे प्रकरणों की इस जमीनी हकीकत का भी है,जो सीधे बालिकाओं के ठोस पुनर्वास से जुड़े है।ध्यान देने वाला तथ्य यह है कि ऐसे अधिसंख्य मामले 16 बर्ष से ऊपर की बालिकाओं के होते है और अंतरजातीय भी रहते है।यानी मर्जी के प्रणय सबन्ध को कानून ही प्रतिबंधित कर रहा है।हर जिले में बीसियों प्रकरण तो ऐसे भी आते है जहां 16 या 17 साल की आयु में प्रेमी के साथ विवाह करने वाली बालिकाओं को चार से पांच साल बाद उनके खुशहाल परिवार के साथ रेस्क्यू कर पुलिस बाल कल्याण समिति में पेश करती है।ऐसे मामलों में महिलाएं पति के जेल जाने से खुद को असुरक्षित एवं विवश पाती है।

विवाह की उम्र बढ़ाने का एक दूसरा सिरा बाल-विवाह से भी जुड़ा है जिसको बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 के माध्यम से निषिद्ध किया गया है। हर बर्ष अनगिनत बाल विवाह भारत मे होते है।लेकिन तथ्य यह है 2014 से 2016 के मध्य केवल 1785 बाल विवाह के केस दर्ज हुए ,274 लोगों को गिरफ्तार किया गया औऱ महज 45 लोग दोषसिद्धि तक पहुँचे। ताजा नेशनल फैमिली हैल्थ सर्वे के अनुसार पश्चिम बंगाल में 41.6 प्रतिशत,बिहार 40.8,त्रिपुरा में 40.1,असम में31.8,आंध्रप्रदेश में 29.3,गुजरात में21.8,कर्नाटक में 21.3,महाराष्ट्र में 21.9,तेलंगाना में 23.5दादरा नगर हवेली में 26.4 प्रतिशत बालिकाओं की शादी 18 से पहले हो रही है। अब इस आंकड़े को संपन्न शहरी तबके से अलग हटाकर सोचिए कि किस सामाजिकी के धरातल पर भारत खड़ा हुआ है।

15 से 19 बर्ष की आयु में माँ बनने वाली बालिकाओं के मामले में आन्ध्रप्रदेश में 12.6 प्रतिशत,असम 11.7,बिहार में 11,त्रिपुरा में 21.9,बंगाल में 16.4 प्रतिशत के साथ बाल विवाह अधिनियम की जमीनी तथाकथा खुद बयान करते है। जाहिर है मौजूदा कानून पहले ही नाकाम साबित हो चुकें।इन आंकड़ों का अपना एक सामाजिक -आर्थिक पक्ष भी है जिसे नजरअंदाज किया जाना सच से मुंह छिपाना है।सच यह है कि करोडों भारतीय परिवार आज भी इस स्थिति में नही है कि वे 18 बर्ष तक अपनी बेटियों का पारिवारिक दायित्व वहन कर सकें।जाहिर है नया कानून अगर 21 बर्ष की पाबंदी खड़ा कर देगा तो इस सामाजिक आर्थिक दबाब को करोड़ों गरीब परिवार सहन करने की स्थिति में नही होंगे और बाल विवाह के बढ़े आंकड़े फिर वैश्विक परिदृश्य में भारत को शर्मसार करने वाले होंगे।साथ ही पॉक्सो औऱ बाल विवाह के अभियोजन का अंबार लगेगा।तथ्य यह है कि जेंडर इक्विलिटी ( लैंगिक समानता) आज भी एक शहरी औऱ संपन्न अवधारणा है।गांव,गरीब के लिए महिलाएं कोई जेंडर हैं ही नही।कुछ गरीब या ग्रामीण घरों में सफलता की कहानियों को हम 135 करोड़ के देश में सामान्यीकरण निरूपित नही कर सकते है।वैश्विक नजरिये से बाल विवाह केवल भारत या विकासशील देशों की ही समस्या नही है।अमेरिकी रिसर्च सेंटर प्यू के अनुसार 192 देशों में शादी की आयु को लेकर कानून बने हुए है लेकिन117 देशों में बाल विवाह की समस्याएं विद्यमान है।

सवाल यह है कि जब दुनिया भर में केवल कानून निर्मित करने से यह समस्या सुलझ नही रही तब भारतीय लोकजीवन की पेचीदगियों के आलोक में इस मुद्दे को नीतिगत आधार पर क्यों नही समझा जा रहा है।देश मे 62 फीसदी किशोर बालिकाएं एनीमिया का शिकार है।15 से 18 साल की आधी से अधिक बालिकाओं की पढ़ाई बीच में ही छूट जाती है।जाहिरा तौर पर मुद्दा शिक्षा और सुपोषण का है जो परिवार की आर्थिक स्थिति से सीधा जुड़ा है।यानी समानता की जड़ एक नए कानून नही सरकारी प्रतिबद्धता में छिपी है लेकिन हम कानूनों का लेवियाथन खड़े करने में लगे है।बेटियां बोझ बनकर विवाह मटीरियल इसलिए ही है क्योंकि तंत्र और समाज अपनी जबाबदेही ईमानदारी से निभाने के लिए आज भी तैयार नही है।महिला बाल विकास ,सामाजिक न्याय,जैसे महकमों की विफलता को क्षणिक रूप से ढांकने के सिवाय इस कवायद को कुछ नही कहा जा सकता है।बेहतर हो समाज और सरकार के स्तर पर व्यवहार परिवर्तन एवं मौजूदा योजनाओं के क्रियान्वयन में कसावट सुनिश्चित करने की इच्छाशक्ति प्रदर्शित की जाए।

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