धन्वंतरि जी छूटे, रह गई धन-तेरस "बाजारवाद के शिकार भारतीय त्यौहार"

धन्वंतरि जी छूटे, रह गई धन-तेरस बाजारवाद के शिकार भारतीय त्यौहार
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डॉ राघवेंद्र शर्मा (वरिष्ठ पत्रकार)

वैश्विक जीवन प्रणाली में बाजारवाद इस कदर हावी हो रहा है कि आज हर चीज खरीदने और बेचने के नजरिए से देखी जा रही है। यही हाल भारतीय त्यौहारों का है। सर्व विदित है कि भारत को त्यौहारों का देश कहा जाता है। स्वभाविक है, यहां के लोग धार्मिक प्रवृत्ति के हैं और ईश्वर में उनकी आस्था अधिक है। संभवत यह बात उन अवसरवादी मुनाफाखोरों की समझ में आ चुकी है, कि यदि भारतीयों की धार्मिकता और आस्था को बाजारू व्यवस्थाओं में गड्डमड्ड कर दिया जाए तो लाखों-करोड़ों ही नहीं बल्कि अरबों खरबों के वारे न्यारे हो सकते हैं। इसी वैश्विक सोच और बाजारवादी साजिशों का नतीजा है कि अब हमारे धार्मिक और आस्थाओं के केंद्र त्योहारों को अधिकांशतः क्रय विक्रय व आर्थिक विनिमय से संलग्न कर दिया गया है। उदाहरण के लिए हम अक्सर आने वाले पुष्य नक्षत्रों की बात करें तो इसके शुभ प्रतिफल के रूप में ज्यादातर यही बात होती है, कि यह दिन सोना, चांदी, हीरे, जवाहरात, अथवा अन्य कीमती सामान खरीदने के लिए शुभ माना जाता है। साथ में यह मान्यताएं दोहराई जाती हैं कि इस दिन की जाने वाली खरीदी घर परिवार और रोजगार में धन-धान्य की वर्षा करने वाली सिद्ध होती है।


दुख की बात यह है कि विभिन्न माध्यमों से प्रादेशिक और राष्ट्रीय यश कीर्ति प्राप्त कर चुके अनेक ज्योतिषी और तथाकथित विद्वान भी कुछ इसी प्रकार की घोषणाओं को प्राथमिकता देने में जुट गए हैं। मानो पुष्य नक्षत्र का खरीदी बिक्री के अलावा और कोई महत्व रह ही नहीं गया है। हम यह नहीं कहते कि शत प्रतिशत विद्वान और ज्योतिषी एक जैसे ही हैं‌। बल्कि इस बात की आंशिक संतुष्टि है कि अभी भी कुछ कर्मकांडी विद्वान और ज्योतिषी ऐसे बचे हुए हैं जो अपने दायित्व को भलीभांति निभाने में संलग्न हैं। यह बात और है कि ऐसे महामना लोगों की संख्या बहुत कम रह गई है। अब धनतेरस की ही बात करें तो हम पाएंगे कि अधिकांश हिंदू धर्मावलंबियों को यह पता ही नहीं है कि यह पर्व औषधियों और स्वास्थ्य के देवता भगवान धन्वंतरि के प्राकट्य दिवस का प्रतीक है। धर्म शास्त्रों के मुताबिक समुद्र मंथन के दौरान कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को हाथ में अमृत कलश लिए भगवान धन्वंतरि का प्राकट्य हुआ था। वास्तव में तो यह धनवंतरी त्रयोदशी उत्तम स्वास्थ्य की कामना को परिपूर्ण करने वाला त्यौहार है। इस दिन भगवान धन्वंतरि को पूजे जाने से उद्यानों और जंगलों में फल-फूल रही प्राकृतिक औषधियां स्वास्थ्य वर्धक बनी रहती हैं तथा पर्यावरण जीव मात्र के अनुकूल बना रहता है। किंतु जैसे जैसे समय व्यतीत हुआ और वैश्विक स्तर पर बाजारवाद हावी होने लगा, उसका दुष्प्रभाव भारतीय जीवन प्रणाली पर भी परिलक्षित होने लगा। अब धनवंतरी त्रयोदशी यानि धनतेरस को भी स्वयंभू विद्वानों ने अधिकांशतः धन का त्योहार बना दिया है। बड़े-बड़े कर्मकांडी, ज्योतिषी और इस क्षेत्र के स्वयंभू विद्वान इस स्वास्थ्य वर्धक त्यौहार को धन का त्योहार बताने लगे हैं।

दो-तीन दिनों से प्रख्यात समाचार पत्रों में भी जब यह पढ़ने को मिला कि इस दिन श्री लक्ष्मी और श्री कुबेर की पूजा अर्चना करने का विधान है तो मन विस्मय से भर उठा। विस्मय इस बात का नहीं कि धनतेरस के दिन श्री लक्ष्मी और कुबेर को पूजना लाभदायक रहता है। बल्कि अचरज इस बात पर हुआ कि अधिकांश लेखों में भगवान धन्वंतरि एक प्रकार से गायब ही बने रहे। जबकि यह दिन तो है ही उनके प्राकट्य का और उनकी पूजा अर्चना हमारे स्वास्थ्यवर्धक जीवन के लिए विशेष महत्व रखती है। यदि समाचार पत्रों की बात भी करें तो अधिकांशों में कुछ इसी प्रकार के सुझाव परिलक्षित हैं। मसलन - आज चांदी, सोना, हीरे, मोती, अन्य कीमती रत्न, छोटे-बड़े वाहन, महंगे घरेलू उपकरण एवं विलासिता की बेशकीमती वस्तुएं खरीदने का उत्तम दिन है। दावा किया जा रहा है कि ऐसा करने से घर में धन-धान्य की वर्षा होती है। बाजारों में भी जहां देखो वहां वाकई में केवल और केवल धन बरसता ही दिखाई दे रहा है। बर्तनों, सर्राफों, वाहनों, जवाहरातों, ऐश्वर्य और विलासिता के महंगे उपकरणों से संबंधित शोरूम जगमगाते दिखाई दे रहे हैं। आम जनता में भी खरीदी का उत्साह चरम उत्कर्ष पर है। बेहद हर्ष का विषय है कि कोरोना जैसी घातक विभीषिका के बाद हम पुनः विकास की मुख्यधारा में आकर खड़े हो गए हैं और हमारी क्रय क्षमता पुनः मजबूती को प्राप्त हो गई है। किंतु इस बात का हार्दिक खेद है कि इस आपाधापी भरे बाजारवाद ने हमें हमारे धन्वंतरि भगवान से दूर कर दिया है। बहुत कम घर और परिवार ऐसे हैं जहां आज भगवान धन्वंतरि की पूजा हो सकेगी। चिकित्सा क्षेत्र में भी यह सौभाग्य केवल आयुर्वेदिक पद्धति से उपचार करने वाले मनीषियों तक सीमित रहने का अंदेशा है। मेरे व्यक्तिगत मत अनुसार यह अच्छी बात नहीं है। हमें हमारे संस्कारों और पुरातन परंपराओं से आर्थिक स्वार्थियों द्वारा अपने लाभ के लिए पथभ्रष्ट किया जा रहा है और आश्चर्य की बात यह है कि हम हो भी रहे हैं। इस भटकाव से जितनी जल्दी हो सके हमें बचने की महती आवश्यकता है। भगवान धन्वंतरी के प्राकट्य दिवस की आप सभी को बधाइयां। ईश्वर हमारी त्रुटियों को क्षमा करें और भगवान धन्वंतरि हमें स्वस्थ जीवन प्रदान करें, ऐसी प्रार्थना है।

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