हॉकी में भारत की बेटियों ने पदक न सही लेकिन पूरी दुनिया का दिल जीत लिया
टोक्यो ओलम्पिक में भारतीय महिला हॉकी टीम पदक जीतने से भले ही चूक गई हो लेकिन उसके दमदार प्रदर्शन और जÓबे को दुनियाभर में जमकर तारीफें मिल रही हैं। बेटियों काजोशीला प्रदर्शन आने वाले वर्षों तक खिलाडिय़ों को प्रेरित करता रहेगा। टोक्यो ओलम्पिक में एक दिन पहले गुरुवार को भारत की पुरुष हॉकी टीम ने जो इतिहास रचा ऐसी ही उम्मीद हम बेटियों से भी लगा बैठे। लेकिन यह भूल गए कि भारतीय टीम ने अपने हिस्से का काम तो पहले ही कर दिया था। हॉकी की छड़ी से हमारी बेटियों ने इतिहास पहले ही रच दिया था। दरअसल कप्तान रानी रामपाल की अगुवाई में खेल रही भारत की बेटियों को क्वार्टरफाइनल में चुनौती देने वाली जो आस्ट्रेलियाई टीम थी वो तीन बार की ओलम्पिक चैंपियन है। हमारी बेटियों ने उसे हराकर खेलों के महाकुंभ में अंतिम चार में जगह बनाई थी। वह इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए लिखा जाएगा कि ओलम्पिक खेलों में भारतीय महिला हॉकी टीम पहली बार सेमीफाइनल में कब पहुंची। क्या इतना कम नहीं है कि जिस महिला टीम को अभी तक कोरम भरने मात्र भेजा जाता रहा उस टीम ने खेलों के महाकुंभ में अपने बेहतरीन प्रदर्शन से पूरी दुनिया को दिखा दिया कि घांस के मैदान पर खेलने वाले भारतीय अब टर्फ मैदान पर भी किसी से कम नहीं हैं।
हालांकि शुक्रवार को कांस्य पदक के लिए हुए मुकाबले में हमारी बेटियों ने ग्रेट ब्रिटेन को कड़ी टक्कर दी। सेमीफाइनल में मिली हार के बाद वापसी करना किसी भी टीम के लिए आसान नहीं होता हमारी बेटियों ने मानसिक और शारीरिक तौर पर खुद को अलग ही सांचे में ढाला था। यहां भारतीय टीम फिर से वह चमत्कार नहीं कर सकीं जो ऑस्ट्रेलिया जैसी बड़ी टीम को हराने में किया था। जबकि ग्रेट ब्रिटेन भी 2016 के रियो ओलम्पिक की स्वर्ण पदक विजेता टीम रही है। एक समय &-2 से पिछड़ रही ब्रिटेन आखिरी क्वार्टर में बढ़त बना पाई। इसलिए भारतीय टीम मैच हारकर भी लोगों का दिल जीतने में कामयाब रहीं और टोक्यो ओलम्पिक में अपने अभियान का अंत चौथे स्थान पर रहकर किया।
आपका पसीना देश की करोड़ों बेटियों का पसीना बन गया: मोदी
पदक न जीतने की कसक से भारतीय टीम की खिलाडिय़ां जब रोने लगीं तभी संजीवनी की तरह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारत की इन बेटियों से फोन पर बात करते हुए उनका हौसला बढ़ाया। इस दौरान सभी लड़कियां बेहद भावुक हो गईं। मोदी ने उनसे कहा कि रोना नहीं है, आपकी मेहनत से देश की हॉकी पुनर्जीवित हुई है। आप सब लोग बहुत बढिय़ा खेले हैं। आपने पिछले 5-6 साल से इतना पसीना बहाया है, सबकुछ छोड़कर आप इसी की साधना कर रहे थे। आपका पसीना पदक नहीं ला सका, लेकिन आपका पसीना देश की करोड़ों बेटियों का पसीना बन गया। निराश बिल्कुल नहीं होना है। आप लोग रोना बंद करिए। मुझ तक आवाज आ रही है। देश आप पर गर्व कर रहा है। बिल्कुल निराश नहीं होना है। कितने दशकों बाद हॉकी भारत की पहचान पुनर्जीवित हो रही है, आप लोगों की मेहनत से हो रही है। आपको भविष्य के लिए बहुत शुभकामनाएं।
टोक्यो में ग्वालियर की रही धूम
टोक्यो ओलम्पिक में ग्वालियर के खिलाडिय़ों और टीम के साथ जुड़े प्रशिक्षक ने भी शहर का मान बढ़ाया है। जहां कांस्य पदक जीतने वाली भारतीय पुरुष हॉकी टीम के साथ सहायक प्रशिक्षक के रूप जुड़े पूर्व सेंटर फावर्ड शिवेन्द्र सिंह चौधरी हों या फिर भारतीय महिला हॉकी टीम में अहम भूमिका निभाने वाली पी. सुशीला चानू, मोनिका और वंदना कटारिया। पी. सुशीला चानू और मोनिका ग्वालियर स्थित मप्र राÓय महिला हॉकी अकादमी में प्रशिक्षण प्राप्त कर चुकीं हैं। वहीं वंदना कटारिया ने अकादमी की ओर से 2011 झारखंड में आयोजित राष्ट्रीय महिला हॉकी प्रतियोगिता में भाग लिया था।