अंतर्राष्ट्रीय जल दिवस : पिपलांत्री और हिवरे बाजार ऐसे गांव जो सूखे को मात देकर बने आदर्श
वेबडेस्क। अंतर्राष्ट्रीय जल दिवस के अवसर पर आज प्रधानमंत्री ने वर्षा के जल के संरक्षण के महत्व को समझाया। उन्होंने सभी से बारिश के जल को संरक्षित करने का आह्वान किया। देश का एक बड़ा भाग आज भी वर्षा के जल पर निर्भर है। ऐसे में वर्षा के जल का महत्व बहुत बढ़ जाता है। देश के कई जिलों में कम वर्षा होने के सूखे की समस्या से परेशान है। वहीँ कुछ गांव ऐसे भी है जिन्होंने खुद के प्रयासों से वर्षा के जल को संरक्षित कर इस समस्या का स्थाई समाधान निकाल अन्य अन्य गांवों एवं पंचायतों के लिए आदर्श बन गए है।
राजस्थान के राजसमंद जिले का पिपलांत्री और महाराष्ट्र के अहमद नगर जिले में बसा हिवरे बाजार ऐसे ही गांव के उदाहरण है। राजस्थान के 6 हजार की आबादी वालेा पिपलांत्री गांव में एक समय सूखे की ऐसी चपेट में था। साल 2005 में सूखे के कारण लोग इस गाँव से पलायन करने लगे थे। रोजगार ना होने से युवाओं को नशे की लत लग गई थी। ऐसे समय में गांव के सरपंच ने गांव में पानी की इस समस्या को दूर करने की जिम्मदारी ली।
राष्ट्रपति से सम्मानित -
सरपंच ने गांव के युवाओं के साथ मिलकर वर्षा के जल को संरक्षित करने के लिए गड्डे खोदें एवं वृक्षारोपण शुरू किया। गांव वालों के सहयोग और सरपंच के प्रयास कुछ ही सालों में रंग लाने लगा। वर्षा का जल इन गड्डों में एकत्रित होने लगा। वहीँ गांव के आस-पास सभी पर पेड़ लगाने से हरा जंगल तैयार हो गया। गांव के चारों और हरियाली बढ़ने से वर्षा का स्तर बढ़ गया। जिसका असर यह हुआ की जहां कभी भू-जल स्तर 500 फीट की गहराई पर था। वहां आज पानी के सैंकड़ों झरने बह रहे है। कभी पानी की एक-एक बून्द को तरसने वाला ये गांव आज अन्य गांवों को पानी की आपूर्ति कर रहा है। 2007 में तत्कालीन राष्ट्रपति ने पिपलांत्री को स्वच्छ ग्राम पंचायत के पुरस्कार से सम्मानित किया।
बेटी के नाम हरियाली की एफडी -
आज गांव में किसी के घर बेटी का जन्म होता है तो वह परिवार बेटी के नाम पर 51 पौधें लगाता है। इन पेड़ों का संरक्षण भी यही परिवार करते है। इसी तरह यदि किसी परिवार के सदस्य की मृत्यु हो जाए तो वह परिवार दिवंगत सदस्य की याद में पेड़ लगाता है।
हिवरे बाजार -
महाराष्ट्र के अहमद नगर जिले में बसा हिवरे बाजार एक ऐसा गांव जहां 300 परिवार के 1600 लोग रहते है। ये गांव 1990 के दशक में सूखे की ऐसी चपेट में आया की कई परिवारों ने यहां से पलायन कर लिया। स गांव ने इस आपदा के बाद अपनी किस्मत को ऐसा पलटा की आज ये महाराष्ट्र का सबसे समृद्ध गांव है। यहां चारो ओर हरियाली एवं सिंचित भूमि इसकी समृद्धि की गवाही देती है।
1990 के दशक में इस गांव में 800 हेक्टेयर में से 12 प्रतिशत जमीन ही खेती के लिए बची थी। उस समय गांव में लोगों के पास रोजगार नहीं था। गाँव में कच्ची शराब बनती थी। लिहाजा लोग पलायन करने लगे। गांव की इस दशा को देखते हुए ग्रामीणों ने जल संरक्षण का अभियान चलाया। ये मुहीम ऐसी सफल हुई की ये देश का सबसे अमीर गांव बन गया।
सात सूत्रीय एजेंडे ने दिलाई सफलता -
गांव के सरपंच पोपटराव ने सात सूत्री एजेंडा तैयार किया, जिसमें पेड़ कटाई पर रोक, परिवार नियोजन, नशाबंदी, श्रमदान, लोटाबंदी (खुले में शौच रोकना), हर घर में शौचालय व भूजल प्रबन्धन शामिल थे। इस सात सूत्रीय मुहीम के तहत जल संरक्षण के लिए कई कुएं, बांध एवं चेक डेम बनवाए। जिसका परिणाम ये हुआ की कुछ सालों में ही गांव का जल स्तर बढ़ गया। खेतों में दोबारा से फसलें लहराने लगी। कभी पानी के अभाव के कारण गांव छोड़कर गए परिवार दोबारा गांव लौट आए और खेती करने लगे। आज इस गांव के किसान साल में तीन फसलें कर रहे है। वहीँ आस-पास के अन्य गांवों को जल बेचकर आय प्राप्त कर रहे है। महाराष्ट्र सरकार द्वारा इस गांव के मॉडल को राज्य के अन्य गांवों में लागू किया जा रहा है।