अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस: कहानी उनकी जिन्होंने अपने त्याग और बलिदान से बताया क्या होता है एक 'स्त्री' होना

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस
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अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस

स्वदेश विशेष (दीक्षा मेहरा, रिया नेमा, गुरजीत कौर)। 'स्त्री' शक्ति का स्वरुप है लेकिन यह शक्ति घर की चारदीवारी में कैद है। स्वतंत्र भारत में स्वतंत्र होना आज भी महिलाओं का सपना है। आंकड़े बताते हैं कि, 12 प्रतिशत महिलाएं मजबूरी में उस समय अपने करियर को अलविदा कह देती हैं जब उनकी शादी हो जाती है। पुरुषों के लिए जहां शादी एक प्रीमियम है, वहीं महिलाओं के लिए यह एक पेनाल्टी की तरह है।

इस अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर हमारे पास आपको बताने के लिए कई ऐसी महिलाओं के किस्से हैं जो शादी के बाद भी अपने करियर के प्रति डेडिकेटेड रहीं लेकिन हमने तय किया है कि, हम आपको उन महिलाओं के बारे में बताएं जिन्होंने अपने परिवार के लिए अपनी जॉब छोड़ दी और आज एक अति सामान्य महिला की तरह जीवन जी रहीं हैं। अति सामान्य इन महिलाओं की असामान्य सी यह कहानी इस देश के घर - घर की कहानी है।

इन महिलाओं की कहानी से पहले इन आंकड़ों और रिपोर्ट पर गौर फरमाइए :

- विश्व बैंक की रिपोर्ट में महिलाओं के लिए शादी को एक 'पेनाल्टी' या 'दंड' की तरह बताया गया है जो पेशेवर और व्यक्तिगत दोनों तरह से महिलाओं की क्षमता को कम करता है। विवाह के साथ-साथ, महिलाओं को बच्चों की जिम्मेदारी भी संभालनी होती है जो एक अलग तरह की पेनाल्टी है। बच्चों की जिम्मेदारियां अक्सर उन्हें वर्कफोर्स से बाहर कर देती हैं।

- रिपोर्ट के अनुसार शादी के बाद महिलाओं की रोजगार दर में 12 प्रतिशत अंकों की गिरावट आती है, जो कि, विवाह-पूर्व रोजगार स्तर का लगभग एक तिहाई है।

- पुरुषों के लिए विवाह एक प्रीमियम की तरह होता है। विवाह के बाद पुरुष रोजगार दर में 13 प्रतिशत अंकों की वृद्धि होती है। यह विपरीतता लगातार लैंगिक विभाजन को उजागर करती है। यह आंकड़े बताते हैं कि, महिलाएं प्राथमिक देखभालकर्ता और गृहिणी के रूप में पारंपरिक भूमिकाओं का बोझ उठाना जारी रखती हैं।

- डिपार्टमेंट जनरल ऑफ एम्प्लॉयमेंट की PLFS रिपोर्ट साल 2023 में आई थी। इस रिपोर्ट के अनुसार, 2021-22 में कामकाजी आयु (15 वर्ष और उससे अधिक) की लगभग 32.8% महिलाएं श्रम बल में थीं। पुरुषों के लिए यह आंकड़ा 77.2% था।

- कुल महिलाएं जो वर्क फोर्स से बाहर हैं उनमें से लगभग 44.5% महिलाएं "बच्चों की देखभाल और घर की जिम्मेदारी" के कारण वर्क फोर्स में नहीं हैं। 33.6% महिलाएं श्रम शक्ति में शामिल होने के बजाय अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहती हैं। जबकि लगभग 3.4% महिलाएं "सामाजिक कारणों" के चलते वर्क फोर्स से बाहर हैं।

यह बात ध्यान देने वाली है कि, वर्क फोर्स में भाग लेने के लिए पुरुषों और महिलाओं द्वारा सामना की जाने वाली बाधाओं में कोई समानता नहीं है। पुरुषों के वर्क फोर्स में न होने का मुख्य कारण उनकी पढ़ाई जारी रखना था। लगभग 71.7% पुरुष अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहते थे इसलिए वे वर्क फोर्स का हिस्सा नहीं बने।

- भारत सरकार की ही रिपोर्ट कहती है कि, महिलाओं का अधिकांश काम घर पर आधारित होता है जैसे देखभाल करना, गैर-बाजार गतिविधियों में योगदान देना आदि। इससे परिवार को निश्चित रूप से लाभ होता है लेकिन यह सब गैर आर्थिक गतिविधि का हिस्सा है। महिलाएं परिवार में बहुआयामी भूमिका निभाती हैं और इसलिए, उन पर घर के काम या घर की जिम्मेदारी का बोझ होता है। घरेलू महिलाओं के इस काम को अनदेखा किया जाता है, कम आंका जाता है और कई बार इसका रिकॉर्ड भी नहीं रखा जाता।

- महिलाओं के लिए प्रचलित सामाजिक मानदंड (social norms) महिलाओं की मुख्य भूमिका एक गृहणी (housewife) के रूप में तय करती है। इसके तहत महिलाओं की प्रमुख जिम्मेदारी घर और बच्चों की देखभाल करना तय कर दिया जाता है। पुरुषों के लिए "पुरुष ब्रेडविनर मानदंड" हैं जो घरेलू खर्चों की पूरी जिम्मेदारी पुरुष को सौंपते हैं।

अब पढ़िए कहानी उन महिलाओं की जिन्होंने परिवार और बच्चों के लिए अपने करियर की दी आहुति...।

भोपाल की प्रियंका की कहानी :

प्रियंका नेमा नरसिंहपुर में रहती थीं। उन्होंने जबलपुर के श्री राम कॉलेज से कंप्यूटर साइंस में एमटेक किया है। कॉलेज कैम्पस में उनका सिलेक्शन 5 बड़ी कंपनियों में हुआ। पारिवारिक दबाव के चलते वे जॉब नहीं कर पाई। उनके पिताजी ने उन्हें बाहर जाकर जॉब करने की अनुमति नहीं दी। इसके बाद उन्होंने नरसिंहपुर के पॉलिटेक्निक कॉलेज में पांच साल गेस्ट फेकेल्टी के रूप में जॉब किया। पॉलिटेक्निक कॉलेज में पढ़ाते हुए उन्होंने गेट की परीक्षा भी क्लियर कर ली। इसके बाद जब प्रियंका को दोबारा जॉब करने के बेहतर अवसर मिले तो उनके पिता जी रिटायर हो गए और उन्होंने अपनी बेटी की शादी सरकारी बैंक में काम करने वाले पंकज नेमा से कर दी। शादी के बाद जब वे काम करना चाहती थीं लेकिन अपनी बेटी की परवरिश के लिए उन्होंने अपने करियर से ब्रेक लिया। कुछ सालों बाद उन्हें दूसरा बच्चा हो गया और उन्होंने तय किया कि, अब वे अपना पूरा समय अपने बच्चों की परवरिश में लगाएंगी।

नवादा बिहार से पूर्व शिक्षिका रिंकी कुमारी :

रिंकी कुमारी अपने बारे में बतातीं हैं कि, मैंने साल 2012 में बिहार शरीफ़ के एक प्राइवेट स्कूल में शिक्षिका के रूप में पढ़ाना शुरू किया। पहले प्राइमरी स्कूल से शुरुआत की। इसके बाद मिडिल स्कूल में छह से सात साल तक पढ़ाया लेकिन प्रेगनेंसी के कारण स्कूल छोड़ना पड़ा। उस दौरान बहुत कोशिश की कि, जॉब न छूटे लेकिन बच्ची को छोड़कर कैसे काम कर सकती थी। एक तरफ माँ का दिल और दूसरी तरफ नौकरी। परिवार का भी सपोर्ट नहीं था, हालांकि पति हर कदम पर साथ खड़े रहे लेकिन बच्ची की सही देखभाल करने के लिए जॉब छोड़नी पड़ी।

उस समय लगा कि, बच्ची को संभालना ज्यादा बड़ी जिम्मेदारी है। जॉब तो जब चाहे तब की जा सकती थी। कुछ महीनों बाद स्कूल के प्रिंसिपल ने भी स्कूल ज्वाइन करने के लिए कॉन्टैक्ट किया लेकिन घर और बच्चों की जिम्मेदारियों से कभी फुर्सत ही नहीं मिल पाई, इसलिए दोबारा जॉब करना संभव नहीं हो पाया।

जबलपुर की आभा नेमा :

आभा नेमा जबलपुर के संजीवनीनगर में रहती हैं। पारिवारिक दबाव में उनकी 21 साल में शादी कर दी गई। उनके दो बच्चे हैं। वे बताती हैं कि, उन्हें उनकी दादी से एक शिक्षक बनने की प्रेरणा मिली। आभा नेमा की दादी भी शिक्षक के रूप में कार्य करती थीं। शिक्षक बनने का सपना उन्होंने शादी के बाद भी बरकरार रखा। उन्होंने शादी के बाद 18 साल तक एक शिक्षक के रूप में काम किया। इस दौरान उन्हें कई तरह की सामाजिक परेशानियों और चुनौतियों का सामना करना पड़ा। तमाम मुश्किलों के बावजूद उन्होंने अपनी पत्नी और मां के दायित्व को निभाया।

उनकी कहानी में मोड़ उस समय आया जब उनके पति राजेश नेमा को पैरालिटिक अटैक आया। साल 2021 में हुई इस घटना के बाद उन्होंने अपने 18 साल के करियर को अलविदा कह दिया। आभा नेमा अब अपने पति और घर की जिम्मेदारी संभालती हैं। वे आज भी एक शिक्षक के रूप में समाज को अपनी सेवा देना चाहती हैं। उनका कहना है कि, वे अब घर में ही रहकर अनाथ बच्चों को पढ़ना चाहती हैं।

सरकार की रिपोर्ट में यह बात भी उजागर की गई है कि, जब महिलाओं को शिक्षित किया जाता है और घर से बाहर काम करने की अनुमति दी जाती है, तब भी वे पारिवारिक जिम्मेदारियों के बोझ के कारण काम करना पसंद नहीं करती हैं। इस तरह भारत की अधिकतर महिलाएं अपने बच्चों की पढाई - देखभाल, पति की सेवा और घर की जिम्मेदारी के लिए अपने कीमती समय और करियर का खुशी - खुशी बलिदान कर देती हैं।

आज के युवा इस मुद्दे पर क्या सोचते हैं :

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