साक्षात्कार : एवरेस्ट पर तिरंगा लहराने वाली 'मध्यप्रदेश' की पहली पर्वतारोही 'मेघा परमार'
पर्वतों की तरह ऊंचा और अजेय है मेघा परमार का आत्मविश्वास
मध्यप्रदेश के सीहोर जिले के छोटे से गांव भोज नगर निवासी मेघा परमार का साहस आसमान जितना ऊंचा है। वे अपने संकल्प के लिए संघर्ष करना जानती हैं, जूझना जानती हैं। गिरकर उठना जानती हैं। मेघा ने 22 मई 2019 की सुबह अपने गांव भोजपुर की माटी को माउंट एवरेस्ट चोटी पर अर्पित कर इतिहास रच दिया था। वे मध्यप्रदेश की पहली महिला पर्वतारोही हैं जिन्होंने विश्व की इस सबसे ऊंची चोटी पर तिरंगा लहराया है। आइए विश्व पर्वत दिवस पर हम जानते हैं मध्यप्रदेश में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान की ब्रांड एम्बेसडर एवं युवा पर्वतारोही मेघा परमार की इस विजययात्रा के बारे में जिसके जरिए उन्होंने दुर्गम और विपरीत परिस्थितियों को हराकर पर्वतों की तरह ऊंचे आत्मविश्वास और हौसले की और हम सब को प्रेरित किया है।
प्रश्न : आप पर्वतारोहण की ओर कैसे प्रेरित हुई, आपको प्रेरणा कहां से मिली ?
मेघा : मैंने बचपन से ही गांव में खेत देखे हैं। लोगों को मेहनत करते देखा है। फसल उगाते देखा है। मैं भी अपने किसान पिता श्री दामोदर परमार और मां श्रीमती मंजूदेवी की तरह मेहनत करते हुए खुद को साबित करना चाहती थी। ऐसा कुछ करना चाहती थी जिससे मेरे परिवार गांव, जिले और प्रदेश का नाम रोशन हो सके। एक बार जब मैंने अखबार में पढ़ा कि दो युवा लड़के मध्यप्रदेश से माउंट एवरेस्ट तक पहुंचने में कामयाब हुए हैं तब मेरे अंदर अंर्तप्रेरणा हुई। मैंने खुद से पूछा कि आखिर में ऐसा क्यों नहीं कर सकती। मैं क्यों मध्यप्रदेश की पहली एवरेस्ट विजेता महिला पर्वतारोही नहीं बन सकती। बस उस दिन से मैंने संकल्प के साथ अपने लक्ष्य की ओर बढ़ना शुरु कर दिया।
प्रश्न : आपका पढ़ना लिखना कहां कहां हुआ, क्या अनुभव रहे ?
मेघा : मैंने सीहोर के भोज नगर गांव के सरकारी स्कूल में अपना बचपन जिया है। तब वहां लड़कियों के लिए अवसर अधिक नहीं थे। आगे मैंने अपने मामाजी के घर जाकर पढ़ाई की। स्कूल के बाद काॅलेज के लिए मैंने मास्टर इन सोशल वर्क में दाखिला लिया। जिससे मैंने काफी कुछ सीखा। पढ़ाई के अलावा पर्वतारोहण की क्लास में भी निरंतर नया सीख रही हूं। निरंतर बहुत कुछ नया सीखना है। मैंने गांव शहर स्कूल कॉलेज से लेकर समाज के बीच से बहुत कुछ सीखा है और आगे भी सीखते रहूंगी।
प्रश्न : मेघा को एवरेस्ट विजेता मेघा परमार बनाने में परिवार की भूमिका और सहयोग यात्रा कैसी रही?
मेघा :आम भारतीय परिवारों की तरह निश्चित रुप से मेरे परिवार में भी बेटियों की तुलना में बेटे को कुछ अधिक लाड़ मिलता था मगर मेरी मां और पिताजी ने बेटियों के स्वतंत्र विचार का भी संरक्षण किया। मैं जब बराबरी की बात उठाती थी तो मुझे अपनी बात कहने का मौका मिला। इससे मेरा आत्मविश्वास मजबूत हुआ और मैं इससे खुद को साबित करने की दिशा में और मुखर हुई।
प्रश्न : पर्वतारोहण और मेघा अब एक दूसरे के पर्याय बन चुके हैं, पर्वतों से संघर्ष और दोस्ती का यह सफर कैसा है?
मेघा : मुझे अब बहुत गर्व महसूस होता है जब मेरा नाम मध्यप्रदेश की पहली एवरेस्ट विजेता महिला कहकर पुकारा जाता है। एक आत्मसंतुष्टि होती है कि मैंने जीवन में कई बार असफलता के बाबजूद पीछे मुड़कर नहीं देखा और अपना सपना पूरा किया। साल 2019 में माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा लहराने का वो ऐतिहासिक क्षण था। इसके अलावा मैंने विश्व के चार महाद्वीपों की सबसे ऊंची चोटियों पर भी तिरंगा लहराया है। एडवेंचर स्पोर्टस बचपन से मेरा शौक था जो अब जुनून है। कठिन काम को करने की जिद और जज्बा अब मेरे जीवन का अभिन्न हिस्सा है। पर्वतों ने मुझे काफी कुछ सिखाया है, पर्वतों ने मुझे अपनी ही तरह ऊंचे पायदान पर खड़े रहने का दर्जा दिया है, पर्वत मुझे ऊंचाई पर ले जाने वाले और सिखाने वाले सच्चे दोस्त जैसे है।
प्रश्न : दुनिया की सबसे ऊंची चोटी एवरेस्ट पर पहुंचना एक चमकीला सपना है, इस सपने को जीने और पूरा करने का संघर्ष कैसा रहा।
मेघा : दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर खड़े होकर तिरंगा लहराने के लिए मेरी लंबी यात्रा रही। मैंने अपने गुरु रत्नेश पांडेजी के नेतृत्व में पर्वतारोहण का प्रशिक्षण लेना शुरु किया। खुद को मानसिक और शारीरिक रुप से तैयार करने के लिए कठिन मेहनत की। साल 2018 में मेरा पहला प्रयास रहा मगर मैं कामयाब नहीं हो सकी। मैं गांव लौटी तो निराशा से भरी बातें भी सुनीं मगर अपना संकल्प नहीं छोड़ा। खुद का वजन कम किया। कमियों को सुधारा। आगे ट्रेनिंग के दौरान कई फ्रेक्चर भी हुए मगर हिम्मत नहीं हारी। जिद के साथ संघर्ष जारी रखा। 22 मई 2019 को सुबह 5 बजे माउंट एवरेस्ट तक पहुंचने से पहले आॅक्सीजन सिलेण्डर के खत्म होने से मौत से भी मेरा क्षणिक सामना हुआ मगर ईश्वर मेरे साथ था। आखिरकार रास्ते में मृत पर्वतारोही के बचे सिलेण्डर ने मुझे जीवनदान दिया और मैं आगे बढ़ती रही और अंतत मैं दुर्गम माउंट एवरेस्ट के ऊपर तिरंगा लहराने में कामयाब हुई।
प्रश्न : तमाम मुश्किलों और कड़े संघर्ष के बाद दुर्गम एवरेस्ट पर पहला कदम रखा तब पहली अनुभूति क्या रही, एवरेस्ट और मेघा परमार के बीच क्या मौन संवाद हुआ
मेघा : दुनिया में दुर्गम और कठिनतम माने जाने वाले सपने को सच होते मैंने देखा था। मैं दुनिया में सबसे अधिक ऊंचाई पर थी। तब अपने देश के ध्वज तिरंगे को लहराना मेरे लिए जीवन का सबसे यादगार अनुभव था। मैंने अपनी जन्मभूमि सीहोर के छोटे से गांव भोज नगर की माटी को वहां अर्पण किया। मैं भाग्यशाली थी जो जीवन और मृत्यु से आगे निकलकर अपना सपना सच होते हुए देख रही थी। एवरेस्ट के साथ यह कभी ना भूलने वाला मौन संवाद था जो आजीवन मेरी प्रेरणा रहेगा।
प्रश्न : आप सीहोर के छोटे गांव से निकलकर मध्यप्रदेश में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान एवं मध्य प्रदेश सहकारी दुग्ध संघ सांची की ब्रांड ऐम्बेसडर बनी है, इस भूमिका में आप प्रदेश की बेटियों एवं समाज के बीच क्या कहना चाहेंगीं।
मेघा : निश्चित रुप से मध्यप्रदेश के गांव गांव में बेटियों के बड़े सपने हैं। उनमें बहुत ऊर्जा है। मैं उनके अनगिनत परिवारों से कहना चाहती हूं कि जैसे मेरे परिवार, दोस्तों और नजदीकी समाज और प्रदेश ने मुझे मौका देकर खुद को साबित करने का मंच दिया वैसे ही ये मौके दूसरी बेटियों को भी मिलें। हर बेटी अपने परिवार और गांव का नाम आगे ले जाने में सक्षम है। समाज में हम बेटियों और महिलाओं को बराबरी के मौके देकर बेहतर वातावरण बना सकते हैं। इसके साथ ही मैं कहना चाहती हूं अगर बेटियां नहीं होंगी तो आप बहुएं कैसे लाएंगे इसलिए बेटा बेटी दोनों को बराबरी से मौके देकर हर परिवार सामाजिक संतुलन को भी मजबूत करे। सांची के ब्रांड एंबेसडर के नाते मैं मध्यप्रदेश के पशुपालक किसानों एवं उनकी दुग्ध उत्पादन गतिविधियों को प्रोत्साहित करके उन्हें शुद्धता के प्रतीक सांची के प्रति प्रेरित करना चाहती हैं, मेरा परिवार भी सांची घी- दुग्ध उत्पादन व्यवस्था की गुणवत्ता का समर्थन करता है, निश्चित रूप से सांची ने गुणवत्तापूर्ण घी दूध एवं दुग्ध उत्पादों के क्षेत्र में मध्यप्रदेश में बेहतर कार्य किया है , एवं इस क्षेत्र में सफलता के नए सोपान तय किए जा रहे हैं।
प्रश्न कई बार संघर्षों से युवा साथी हताश हो जाते हैं , ऐसे में हमारे युवा साथियों के लिए आपका क्या संदेश है।
मेघा पर्वतारोहरण , पढ़ाई हो या जीवन का कोई भी क्षेत्र हो, दोस्तों आप सभी खुद पर विश्वास कीजिए। आप ही हैं जो सब कुछ कर सकते हैं। आप ही हैं जो अपना सब कुछ बदल सकते हैं। इसलिए निरंतर चलते रहिए, संघर्ष करते रहिए। गिर जाएं तो फिर उठिए फिर चलिए और यू ही चलते चलते आप कब दौड़ने और उड़ने लगंेगे आपको पता ही नहीं चलेगा। इसलिए अपने हौंसले और कर्म की ऊर्जा से संकल्प को साकार करने के लिए निरंतर प्रयास करते रहिए। आप अपनी मंजिल में जरुर कामयाब होंगे क्योंकि दुनिया में आप सभी अद्भुत क्षमता एवं विशेषताओं से भरे हैं बस आप को पहचानने की जरूरत है कि आपके अंदर क्या खास है।