जलियांवाला नरसंहार एक वीभत्स सत्य

जलियांवाला नरसंहार एक वीभत्स सत्य
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अजय पाटिल

वेबडेस्क। जब हम विश्व के इतिहास में सबसे क्रूर नरसंहारों को खंगालते है तब हम पाते हैं कि जलियांवाला बाग हत्याकांड विश्व के इतिहास में एक सबसे वीभत्स व दुर्भाग्यपूर्ण घटना है जो 13 अप्रैल 1919 में घटी थी। इस हत्याकांड की दुनिया भर में भर्त्सना की गई थी पर ब्रिटिश सरकार ने आजतक इसके लिए माफ़ी नहीं मांगी। हमारे देश की आजादी के लिए चल रहे आंदोलनों को रोकने के लिए तथा आंदोलनकारियों को हतोत्साहित करने के लिए इस हत्याकांड को अंजाम दिया गया था। लेकिन इस हत्याकांड को अंजाम देने के बाद भी अंग्रेजी हुकूमत अपने मंसूबों में कामयाब नहीं हुई। हमारे देश के क्रांतिकारियों के हौसले कम होने की जगह और मजबूत हो गए थे। आखिर ऐसा क्या हुआ था, साल 1919 में। आज दिन है इस विषय पर विस्तृत चर्चा करने का।

वो दमनकारी कानून जो इस हत्याकांड का कारक बना

ब्रिटिश सरकार उन दिनों कई दमनकारी कानून बना रही थी। 6 फरवरी 1919 में ब्रिटिश सरकार ने इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल में एक 'रॉलेक्ट' नामक बिल को पेश किया था और इस बिल को इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल ने मार्च के महीने में पास कर दिया था।

इस अधिनियम के अनुसार भारत की ब्रिटिश सरकार किसी भी व्यक्ति को देशद्रोह के शक के आधार पर गिरफ्तार कर सकती थी और उस व्यक्ति को बिना किसी जूरी के सामने पेश किए जेल की सजा दी जा सकती थी। इसके अतिरिक्त पुलिस दो साल तक बिना किसी भी जांच के, किसी भी व्यक्ति को हिरासत में भी रख सकती थी। इस अधिनियम ने ब्रिटिश सरकार निरंकुश बन गयी। इस अधिनियम की मदद से भारत की ब्रिटिश सरकार आजादी के लिए चल रहे आंदोलनों को पूरी तरह से तहस नहस करना चाहित थी।

'सत्याग्रह' आंदोलन की शुरुआत -

गांधीजी द्वारा 1919 में शुरू किया गया सत्याग्रह आंदोलन काफी शक्तिशाली हो रहा था। इस आंदोलन ने पूरे देश में ब्रिटिश हकुमत को हिलाकर रख दिया था। भारत के अमृतसर शहर में भी 6 अप्रैल 1919 में इस आंदोलन के तहत एक हड़ताल के द्वारा रॉलेक्ट एक्ट का विरोध किया गया था। लेकिन धीरे-धीरे इस अहिंसक आंदोलन ने हिंसक आंदोलन का रूप ले लिया था।

डायर को सौंपी गई अमृतसर की जिम्मेदारी -

अमृतसर के बिगड़ते हालातों पर काबू पाने के लिए भारतीय ब्रिटिश सरकार ने इस राज्य की जिम्मेदारी मिल्स इरविंग से लेकर ब्रिगेडियर जनरल आर.ई.एच डायर को सौंप दी थी। डायर ने 11 अप्रैल को अमृतसर के हालातों को सुधारने का कार्य शुरू कर दिया। पंजाब राज्य के हालातों को देखते हुए इस राज्य के कई शहरों में ब्रिटिश सरकार ने मार्शल लॉ लगा दिया था। इस लॉ के तहत नागरिकों की स्वतंत्रता पर और सार्वजनिक समारोहों का आयोजन करने पर प्रतिबंध लग गया था। इस तरह जलियावाला हत्याकांड की भूमिका तेजी से तैयार हो रही थी।

मार्शल लॉ के तहत, जहां पर भी तीन से ज्यादा लोगों को इकट्ठा पाया जा रहा था, उन्हें पकड़कर जेल में डाला जा रहा था। मकसद स्पष्ट था इस लॉ के जरिए ब्रिटिश सरकार क्रांतिकारियों द्वारा आयोजित होने वाली सभाओं पर प्रतिबंध लगाना चाहती थी।

12 अप्रैल को सरकार ने अमृतसर के दो बेहद लोकप्रिय नेताओं को गिरफ्तार कर लिया था। इन नेताओं के नाम चौधरी बुगामल और महाशा रतनचंद था। इसके पूर्व भी दो लोकप्रिय नेताओं को गिरफ्तार किया गया था। इन नेताओं की गिरफ्तारी के बाद अमृतसर के लोगों के बीच गुस्सा उफान पर था। जिसके कारण इस शहर के हालात और बिगड़ने की संभावना थी। हालातों को संभालने के लिए इस शहर में ब्रिटिश पुलिस हर जगह तैनात कर दी गयी थी।

जलियांवाला बाग हत्याकांड कहानी -

13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में बडी संख्या में लोग एकत्रित हुए थे। इस दिन इस शहर में कर्फ्यू लगाया गया था। इस दिन बैसाखी का त्योहार भी था। जिसके कारण काफी संख्या में लोग अमृतसर के हरिमन्दिर साहिब यानी स्वर्ण मंदिर आए थे। जलियांवाला बाग, स्वर्ण मंदिर के करीब ही था। इसलिए कई लोग इस बाग में घूमने के लिए भी चले गए थे। इस तरह से 13 अप्रैल को हजारों लोग इस बाग में मौजूद थे। जिसमें से कुछ लोग अपने नेताओं की गिरफ्तारी के मुद्दे पर शांतिपूर्ण रूप से सभा करने के लिए एकत्र हुए थे। वहीं कुछ लोग अपने परिवार के साथ यहां पर घूमने के लिए भी आए हुए थे।

डायर को जलियांवाला बाग में होने वाली सभा की सूचना मिली। इस सूचना मिलने के बाद डायर करीब 150 सिपाहियों के साथ इस बाग के लिए रवाना हुआ। डायर जैसे ही वहां पहुंचा उसने लोगों को बिना कोई चेतावनी दिए, अपने सिपाहियों को गोलियां चलाने के आदेश दे दिए। डायर के आदेश पर इन सिपाहियों ने करीब 10 मिनट तक गोलियां चलाई। गोलियों से बचने के लिए लोग भागने लगे. लेकिन इस बाग के मुख्य दरवाजे को भी सैनिकों द्वारा बंद कर दिया गया था। इस बाग के चारो तरफ से 10 फीट की दीवारें थी। ऐसे में कई लोग अपनी जान बचाने के लिए इस बाग में बने एक कुएं में कूद गए। कहा जाता है कि यह कुंआ लाशों से पट गया था।

कुल मारे गए लोग

सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस नरसंहार में 370 से अधिक लोगों की मौत हुई थी। जिनमें छोटे बच्चे और महिलाएं भी शामिल थी। इसके अलावा इस बाग में मौजूद कुएं से 100 से अधिक शव निकाले गए थे। ये शव ज्यादातर बच्चों और महिलाओं के ही थे। पर ऐसा कहा जाता है कि इस हादसे में करीब 1000 लोगों की हत्या हुई थी और 1500 से ज्यादा लोग घायल हुए थे।

जलियांवाला बाग हत्याकांड जांच के लिए हंटर कमेटी

जलियांवाला बाग को लेकर साल 1919 में हंटर कमेटी का गठन किया गया था। इस कमेटी का अध्यक्ष लार्ड विलियम हंटर थे। 19 नवंबर साल 1919 में इस कमेटी ने डायर को अपने सामने पेश होने को कहा। कमेटी के सामने डायर ने ये बात भी मानी थी, कि अगर वो चाहते तो लोगों पर गोली चलाए बिना उन्हें तितर-बितर कर सकते थे। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। क्योंकि उनको लगा, कि अगर वो ऐसा करते तो कुछ समय बाद वापस वहां लोग इकट्ठा हो जाते और डायर पर हंसते। डायर ने अपनी सफाई में आगे कहा कि घायल हुए लोगों की मदद करना उनकी ड्यूटी नहीं थी। वहां पर अस्पताल खुले हुए थे और घायल वहां जाकर अपना इलाज करवा सकते थे। 8 मार्च 1920 को इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट को सार्वजनिक किया और हंटर कमेटी की रिपोर्ट में डायर के कदम को एकदम गलत बताया गया था। 23 मार्च 1920 को डायर को दोषी पाते हुए उन्हें सेवानिवृत कर दिया गया था।

डायर की हत्या -

डायर सेवानिवृत होने के बाद लदंन में अपना जीवन बिताने लगे। 13 मार्च 1940 का दिन उनकी जिंदगी का आखिरी दिन साबित हुआ। उनके द्वारा किए गए हत्याकांड का बदला लेते हुए उधम सिंह ने केक्सटन हॉल में उनको गोली मार दी। उधम सिंह एक भारतीय स्वतंत्रता कार्यकर्ता थे। कहा जाता है कि 13 अप्रैल के दिन वो भी उस बाग में मौजूद थे जहां पर डायर ने गोलियां चलवाईं थी।

ब्रिटिश सरकार ने नहीं मांगी माफी

निःसंदेह जलियांवाला बाग नरसंहार विश्व के इतिहास के सबसे वीभत्स नरसंहारों में से एक है। इस पर ब्रिटिश सरकार को माफ़ी मांगनी चाहिए। इस नरसंहार को लेकर ब्रिटिश सरकार ने कई बार अपना दुख प्रकट किया है, लेकिन कभी भी इस हत्याकांड के लिए माफी नहीं मांगी है। यह वास्तव में दुर्भाग्यशाली है। वर्ष 1997 में ब्रिटेन की महारानी एलिज़ाबेथ-2 ने अपनी भारत की यात्रा के दौरान जलियांवाला बाग गयीं थीं। जलियांवाला बाग में पहुंचकर उन्होंने यहाँ कुछ समय बिताया था। भारत के कई नेताओं ने महारानी एलिजाबेथ-2 से माफी मांगने को भी कहा था। पर उन्होंने माफी नहीं मांगी।

इंद्र कुमार गुजराल ने किया था महारानी का बचाव -

जब ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ ने माफी मांगने से इंकार कर दिया तब भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल ने महारानी का बचाव करते हुए कहा था कि रानी इस घटना के समय पैदा नहीं हुई थी इसलिए उन्हें माफी नहीं मांगनी चाहिए। जबकि देश के इतिहास के प्रति नैतिक जवाबदेही उस देश के वर्तमान भाग्यविधताओं की होती है।

प्रिंस विलियम ने बनाई थी दूरी

वर्ष 2016 में भारत के दौरे पर आए इंग्लैंड के प्रिंस विलियम और केट मिडलटन महारानी एलिजाबेथ से भी दो कदम आगे रहे। उन्होंने माफ़ी से बचने के लिए जलियांवाला बाग में ना जाने का फैसला लिया था।

ब्रिटिश सरकार को माफी के लिए मजबूर किया जाना चाहिए-

आज मोदी साकार की विश्वभर में धाक है। यह सही समय है जब ब्रिटिश सरकार को इस नरसंहार के लिए माफ़ी मांगने के लिए मजबूर किया जा सकता है। यदि ऐसा किया जाता है तो यह जलियांवाला नरसंहार के शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

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