जीवट इरादों की धनी राजमाता विजयाराजे सिंधिया
आपातकाल का समय था, जब सत्ता विरोधियों को जेलों में ठूंसा जा रहा था। तब राजमाता विजयाराजे सिंधिया के सामने तानाशाह सरकार की ओर से दो विकल्प रखे गए थे। एक - या तो सरकार के सामने समर्पण करो अन्यथा बर्बादी और मुसीबत का सामना करने के लिए तैयार हो जाओ। राजमाता सिंधिया ने दूसरा विकल्प चुना। फल स्वरूप उन्हें गिरफ्तार करके जेल में निरूद्ध कर दिया गया। इस बीच उनसे जय विलास पैलेस और सिंधिया राजघराने की चल अचल संपत्तियों को उनसे कानूनी दायरे में छीनने के कुत्सित षड्यंत्र रचे गए। उनके पारिवारिक ताने-बाने को छिन्न भिन्न करने की हर संभव कोशिश की गई।
भारत से लेकर नेपाल तक षडयंत्रों का जाल बिछाया गया। मां और पुत्र के बीच दलगत राजनीति की भेदभाव पूर्ण दीवार खड़ी की गई। किंतु राजमाता श्रीमंत विजयाराजे सिंधिया का जवाब था - मेरा परिवार जय विलास पैलेस तक सीमित ना होकर देश भर में व्यापक रूप लिए हुए है। जब तक जनता पर जुल्म खत्म नहीं होते और आपातकाल खत्म नहीं हो जाता, मैं जन विरोधी सरकार के खिलाफ मोर्चा लेती रहूंगी। परिणाम स्वरूप अम्मा साहब को जेल की उन काल कोठरियों में रहने को विवश किया गया, जहां चोर डाकू और हत्यारे जैसे अपराधी सजा काट रहे थे। ऐसी जीवट इरादों की धनी राजमाता साहब श्रीमंत विजया राजे सिंधिया का आज जन्म दिन है। वैसे उनका जन्मदिन साल में दो बार मनाया जाता है। जो लोग अंग्रेजी तारीख को मानते हैं ऐसे लोग 12 अक्टूबर को उनका जन्मदिन मनाते हैं। लेकिन हिंदू कैलेंडर की तिथि अनुसार उनका जन्मदिन करवा चौथ के रोज पड़ता है।
अतः जो लोग विक्रम संवत अथवा हिंदू पंचांग को महत्व देते हैं, ऐसे समर्थकों द्वारा राजमाता सिंधिया का जन्मदिन करवा चौथ के दौरान मनाया जाता है। सर्व साधन संपन्न रहते हुए भी सादगीपूर्ण जीवन उनके व्यवहार में प्रमुखता लिए रहा। संगठन जन संघ हो अथवा भारतीय जनता पार्टी, उन्हें अम्मा साहब सर्वोपरि मानती रहीं। संगठन के कार्यकर्ता और पदाधिकारीगण उनकी ममता भरी छांव में परिवारजनों जैसा सम्मान प्राप्त किये रहे। बात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, उसके अनुसांगिक संगठनों अथवा राजनीतिक दल के रूप में जनसंघ व भाजपा की हो तो फिर भी किसी भी त्याग के लिए तत्पर बनी रहीं। अतः यह लिखा जा सकता है कि जब भाजपा के संस्थापकों को स्मरण किया जाएगा तो स्वर्गीय श्रीमंत विजयाराजे सिंधिया प्रमुख स्थान पर विराजित बनी रहेंगी। उनका जीवन और कार्य पद्धति करोड़ों करोड़ भाजपा कार्यकर्ताओं एवं पदाधिकारी के लिए आदर्श मार्ग प्रशस्त करती हैं।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अनेक पदाधिकारी भी जब उनके आदर्शों का स्मरण करते हैं तब स्वयंसेवकों को यही शिक्षा देते हैं कि जब ऐश्वर्यों और वैभवों में पली बढ़ी एक राजमाता जनहित के लिए सड़कों पर संघर्ष कर सकती है, जेलों में डाकुओं हत्यारों चोरों के साथ बंद रह सकती हैं तो फिर आप लोग क्या नहीं कर सकते? स्वाभिमान किसी भी पद और प्रतिष्ठा से सदैव ही सर्वोच्च स्थान लिए रहता है। इस किवदंती को भी उन्होंने तब साकार किया जब प्रदेश के एक कांग्रेसी मुख्यमंत्री ने देश के राजवंशों को लांछित करने का प्रयास किया तो उन्होंने तत्काल सारे पदों को ठोकर मार दी और सड़क से विधानसभा तक संघर्ष का ऐलान कर दिया तथा तब तक चैन से नहीं बैठीं, जब तक जन विरोधी सरकार को उखाड़ कर फेंक नहीं दिया। मध्य प्रदेश में वह पहली ऐसी सरकार थी जिसे गैर कांग्रेसी होने का गौरव मिला हुआ है।
लिखने का आशय यह की हम जब जनहित अथवा संगठन हित में कोई कार्य करते हैं तब हमें अभिमान का भाव केवल इसलिए स्पर्श तक नहीं कर पाता, क्योंकि हमने संगठन और जनहित में अपना सर्वत्र त्याग करते हुए, भोग बिलासों को त्याग कर सादगी पूर्ण जीवन के साथ जन सेवा करते हुए स्वर्गीय राजमाता विजय राज्य सिंधिया को प्रत्यक्ष देखा है। वह भी इस भाव के साथ कि संगठन में कोई छोटा और बड़ा नहीं होता। वे यह भी कहा करती थीं कि हम कितने भी बड़े पद अथवा प्रतिष्ठा को प्राप्त हो जाएं, लेकिन संगठन में कार्यकर्ता से बड़ा पद किसी का नहीं होता और यही एक पद है जो सदैव स्थाई बना रहता है। इसे हमसे कोई नहीं छीन सकता। संघ की ऐसी निष्ठावान स्वयं सेविका, विश्व हिंदू परिषद की संघर्षशील नेत्री, जनसंघ की धारदार आंदोलनकारी और भाजपा की संस्थापक सदस्य कैलाशवासी राजमाता साहब श्रीमंत विजयाराजे सिंधिया के जन्मदिन की सभी देशवासियों को अनंत शुभकामनाए।
(लेखक : राघवेंद्र शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार हैं)