बिछड़े सभी बारी-बारी...

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नई दिल्ली। कांग्रेस के दिग्गज नेता जितिन प्रसाद ने आज 24 अकबर रोड, नई दिल्ली का रास्ता छोड़ 6 ए दीनदयाल मार्ग, नई दिल्ली की ओर रुख कर लिया है। वह पहले नेता नहीं है, न ही यह सिलसिला थमने के संकेत हैं। कांग्रेस से एक के बाद एक नेता पार्टी को नमस्कार कर रहे हैं। देश के सबसे बड़े राजनीतिक दल की यह क्रमिक आत्महत्या वाकई पीड़ाजनक एवं दुर्भाग्यपूर्ण है। कारण किसी भी देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था में एक मजबूत विपक्ष की उपस्थिति एक सुखद आश्वस्ति होती है। पर शायद यह अब कांग्रेस की नीयति है कि वह सात दशक के शासनकाल में देश को विरासत में कई गंभीर प्रश्न छोड़ गई और अब विपक्ष की भूमिका में भी वह अप्रासंगिक होती जा रही है।

कल तक जितिन प्रसाद कांग्रेस का एक बड़ा चेहरा थे। सांसद रहे। मंत्री रहे। उत्तरप्रदेश जहां कांग्रेस वेंटीलेटर पर ही है वहां वह एक बड़ा ब्राह्मण चेहरा थे। कांग्रेस में युवा नेतृत्व थे। आपके पिता जितेन्द्र प्रसाद तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी, पी.वी. नरसिहाराव के राजनीतिक सलाहकार रहे। उारप्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। अखिल भारतीय उपाध्यक्ष भी रहे। जाहिर है विरासत में ही जितिन प्रसाद को राजनीति मिली थी। पर क्षमता होने के बावजूद कांग्रेस में वह किनारे पर थे। एक बार नहीं, कई बार उन्होंने संकेत भी दिए पर कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने उन्हें तवज्जो ठीक वैसे ही नहीं दी जैसे श्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को मिलने का समय नहीं दिया।

हेमंत विस्वा सरमा को समय दिया तो पूरी बातचीत के दौरान कुत्ते को बिस्कुट खिलाते रहे। परिणाम आज श्री सिंधिया भाजपा के वरिष्ठ सांसद हैं। हेमंत असम के मुख्यमंत्री। राजस्थान के सचिन पायलट ने भी आधा अधूरा साहस तो दिखाया था। आज कांग्रेस में घुटने को फिर मजबूर हैं। यह सूची लंबी की जा सकती है। कांग्रेस का असंतुष्ट खेमा जी-23 अब जी-22 हो गया है। सर्वश्री आनंद शर्मा, गुलाम नबी आजाद सहित कई बड़े नेता भविष्य में राह पकड़ेंगे कहना मुश्किल है। पर कांग्रेस नेतृत्व चिर निद्रा में है। एक पूर्णकालीन अध्यक्ष की मांग थी कांग्रेस में दम तोड़ रही है। पर पहले श्रीमती सोनिया गांधी फिर राहुल गांधी और अब फिर श्रीमती गांधी कांग्रेस की कमान संभाल रही हैं। एक बार फिर चाटुकारों की फौज राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाने का अभियान छेड़े हुए हैं।

आज कांग्रेस पंजाब में पूर्ण शासन कर रही है, जहां घमासान चरम पर है। महाराष्ट्र में भाजपा शिवसेना के अहम के चलते सरकार में तीसरे स्थान पर है। पूर्वोत्तर भारत जहां कांग्रेस एक मात्र विकल्प थी, आज परिदृश्य से बाहर है। उत्तरप्रदेश, बिहार, उड़ीसा में वह जमीन तलाश रही है। पश्चिम बंगाल में शून्य है। केरल में वापसी नहीं कर पाई। शेष दक्षिण में क्षेत्रीय दलों के आसरे है। राजस्थान में अस्थिरता है। छाीसगढ़ अवश्य ऐसा राज्य है जहां विपक्ष चुनौती देने की स्थिति में नहीं है। दिल्ली के दिलों से गायब है। उत्तर भारत में वह जड़ें खो चुकी है। जाहिर है एक राष्ट्रीय दल का स्वरूप आज कांग्रेस का नहीं है। मात्र 55 सांसद के साथ वह दिल्ली में है। पर एक मजबूत विपक्ष बनने की बजाय वह विध्वंस की भूमिका में है।

राष्ट्रीय आपदा को राजनीति का अवसर बना रही है। भाजपा भी एक समय मात्र दो सांसदों के साथ केन्द्र में थी, पर पार्टी ने अपनी राष्ट्रीय भूमिका के साथ न्याय किया, परिणाम सामने है। संख्या बल में नगण्य होने के बावजूद एक जिमेदार विपक्ष की भूमिका भाजपा ने निभाई और क्रमश: आगे बढ़ते हुए आज केन्द्र में है, कई राज्यों में है। लेकिन आधा सैकड़ा सांसद और कुछ राज्यों में सरकार के बावजूद देशभर में अपने कार्यकर्ताओं के बावजूद कांग्रेस बिखर रही है, टूट रही है। महात्मा गांधी ने बेशक कांग्रेस के विसर्जन की इच्छा जताई थी, पर कांग्रेस नेतृत्व स्वयं के ही दल को इस प्रकार धीमी मौत देगा यह किसी ने सोचा नहीं था। पर यह अब नीयति है।

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