महारानी या युवराज, कौन संभालेगा महाराज का राजपाट ?
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राजनीतिक गपशप - अभिषेक शर्मा
52- 53 की उम्र हो गई है। अब मैं बूढ़ा हो चला हूं। केंद्रीय मंत्री एवं शिवपुरी गुना संसदीय क्षेत्र से भाजपा प्रत्याशी ज्योतिरादित्य सिंधिया पिछले कुछ समय से अपने भाषणों में गाहे-बगाहे इस बात को दोहरा ही देते हैं। हालांकि सिंधिया इस बात का जिक्र अलग-अलग मौके पर अलग-अलग संदर्भ में करते हैं, किंतु इसके मद्देनजर स्वाभाविक रूप से राजनीति में रुचि रखने वालों के बीच यह चर्चा तो चल ही निकली है कि आखिर सिंधिया का राजनीतिक उत्तराधिकारी कौन होगा ? वह कौन होगा जो पूर्ववर्ती ग्वालियर राजघराने के इस महाराज का राजनीतिक राजपाट संभालेगा ? वह 49 वर्षीय पत्नी महारानी श्रीमती प्रियदर्शिनी राजे सिंधिया भी हो सकती हैं या 28 वर्षीय पुत्र युवराज महाआर्यमन सिंधिया भी सिंहासन पर बैठ सकते हैं। दोनों ही उत्साही है, योग्य है और सबसे महत्वपूर्ण अपने पति और पिता की तरह राजनीतिक रूप से संवेदनशील होने के साथ विकास की ललक भी उनमें देखने को मिलती है। इसके साथ ही पिछले लंबे समय से दोनों राजनीति की एबीसी से लेकर क्षेत्र तक की पढ़ाई करने में लगे हुए हैं।
हालांकि विषय ज्योतिरादित्य सिंधिया का चुनाव ही रहता है जिसकी परीक्षा उत्तीर्ण करने में यह दोनों अपने पति और पिता की मदद करने का प्रयास करते हैं। इस चुनाव में भी दोनों सक्रिय हैं। संसदीय क्षेत्र का एक लंबा दौर यह कर चुके हैं और दूसरा जल्दी ही प्रस्तावित है। दोनों ने ही अपने दौरे के दौरान समाज के प्रत्येक आयु वर्ग के लोगों से उनकी रुचि और विषय अनुसार सीधे जुडऩे की कोशिश की है। अमेरिका के शिकागो की प्रतिष्ठित येल यूनिवर्सिटी से एमबीए की डिग्री लेने के साथ बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप और सॉफ्टबैंक में नौकरी कर चुके महा आर्यमन ने हलवाई की दुकान पर समोसे, कचौड़ी बनाने की विधि और टेस्ट समझने की कोशिश करने के साथ उच्च शिक्षित युवाओं से अपने स्टार्टअप के अनुभव साझा किया तो वही बड़ौदा की राजकुमारी, सोफिया कॉलेज फॉर वूमेन मुंबई में पढ़ाई - लिखाई करने के साथ 2012 में फेमिना द्वारा भारत की 50 सबसे खूबसूरत महिलाओं में शुमार रहीं प्रियदर्शिनी ने महिलाओं से चौका -चूल्हा और घर -परिवार की चर्चा की। मुखातिब वह युवतियों से भी हुई और इस दौरान अंग्रेजी में भी चटर-पटर की। हालांकि इस बीच एक सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या इस राजघराने की चौथी पीढ़ी राजनीति में आएगी? ऐसा इसलिए की भले यह दोनों मां, बेटे उत्साही और योग्य होने के साथ राजनीति के प्रत्येक खांचे में फिट बैठते हो, किंतु जब इस संदर्भ में उनकी तरफ इस आशय का सवाल उछाला जाता है तो दोनों ही इस सवाल को लपकने के बजाए छोड़ देते हैं।
फिलहाल महारानी और युवराज राजनीति में नहीं आएंगे
प्रियदर्शिनी तो बिना किसी लाग-लपेट के स्पष्ट रूप से इनकार करते हुए कहतीं हैं कि वह सिर्फ और सिर्फ अपने पति के पीछे हैं और उन्हें उनके पीछे ही चलना है। राजनीति उनका विषय है ही नहीं। पुत्र महाआर्यमन जरूर कुछ संकेत देते हैं पर वह स्पष्ट नहीं होते हैं। वह कहते हैं कि कोई भी दरवाजा कभी भी खुल सकता है। फिलहाल तो वह अपने दो स्टार्ट अप माई मंडी और प्रवास में व्यस्त हैं। वरिष्ठ भाजपा नेत्री श्रीमती वंदना मांडरे का भी यही कहना है कि फिलहाल महारानी और युवराज राजनीति में नहीं आएंगे। अगर आते हैं तो वह राजनीति को सेवा का माध्यम बनाते हुए अपनी पारिवारिक परंपरा को ही आगे बढ़ाएंगे। अपनी राजनीतिक संवेदनशीलता दोनों चुनाव प्रचार के दौरान प्रमाणिक करते ही चले आ रहे हैं। युवा नेता अंकुर श्रीवास्तव का कहना है की महारानी हो या युवराज? दोनों ही बेहद संवेदनशील होने के साथ चुंबकीय व्यक्तित्व रखते हैं। उनके लिए राजनीति शब्द का इस्तेमाल गलत होगा हां अगर समाजसेवा में उनका प्रवेश होगा तो जनता को खुशी होगी। कुल मिलाकर अगर प्रियदर्शिनी या महा आर्यमन में से किसी का राजनीति में प्रवेश होता है तो सिंधिया परिवार के वह सातवें सदस्य होंगे जो नेता बनेंगे।
उनसे पहले जिवाजीराव सिंधिया, श्रीमंत राजमाता विजया राजे सिंधिया, माधवराव सिंधिया, वसुंधरा राजे सिंधिया, यशोदा राजे सिंधिया और ज्योतिरादित्य सिंधिया राजशाही से लोकतंत्र तक का सफर तय कर चुके हैं। संभवत: देश का यह सबसे बड़ा और सफल राजनीतिक राजघराना है। केंद्रीय मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री और प्रदेश मंत्री तक इस घराने से निकले हैं।इसमें भी राजमाता सिंधिया ने तो राजपथ से लोकपथ की यात्रा जिस तरह से पूरी की वह अनुकरणीय होने के साथ हर एक के लिए प्रेरणादायक भी है।