काश!' बाबर अली' तुम अखलाक हुए होते...

काश! बाबर अली तुम अखलाक हुए होते...
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*इन्टॉलरेंस के खांचे में फिट नही है कुशीनगर की लिंचिंग …!

( डा.अजय खेमरिया )

बाबरी मस्जिद की उन्हें बेइंतहा फिक्र है लेकिन उस बाबर की हत्या पर वे चुप है जो आतताई की तरह भारत भूमि को रौंदते हुए नही आया था।कुशीनगर का बाबर भी मुसलमान था लेकिन उसकी ऐसी किस्मत नही है कि वह भारत में असहिष्णुता के ठेकेदारों की रुदाली के लिए जगह बना पाए।बाबर मुसलमान होकर भी लिंचिंग की परिभाषा में नही आ पा रहा है क्योंकि उसके हत्यारों ने जो किया है वही तो भारत के बुद्धिजीवियों औऱ सहिष्णुता के होलसेल डीलरों का असल एजेंडा है।एजेंडा है मोदी से नफरत और दुश्मनी की सीमा तक असहमति।कुशीनगर के बाबरअली ने भारत के बौद्धिक ठेकेदारों की खींची गई लक्ष्मण रेखा लांघ दी थी।उसने घर के बाहर भाजपा का झंडा लगा रखा था।योगी की जीत पर पटाखे फोड़ दिए थे।मोहल्ले वालों ने समझाया था कि भाजपा की बात मत करो लेकिन बाबर नही माना वह लाभार्थी था। सो योगी योगी चिल्लाता रहा।नतीजतन बाबर को समूह बनाकर घेरा गया और फिर बेरहमी से हत्या कर दी गई।चार दिन हो गए है किसी का रुदाली रुदन सुनने को नही मिला है।प्राइम टाइम पर स्क्रीन काली भी नही है।लिंचिंग शब्द मानो डिक्शनरी से अचानक गायब कर हिन्द महासागर में डुबो दिया गया है।दूसरी घटना इसी उप्र की है एक शोहर ने अपनी बेगम को घर से बाहर निकाल दिया क्योंकि उसने योगी को वोट कर दिया।तीसरी रोचक घटना बदायूं की है शोहर को शक हुआ कि बेगम योगी को वोट कर सकती है तो उसने बुर्के में मोबाइल छिपाकर ले जाने को कहा ताकि ईवीएम का बटन दबाते फोटो खींचा जा सके।बेगम ने वोट तो योगी को दे दिया और पति को दिखाने के लिए जब फोटो खींचा तो अंगुली साइकिल पर रख ली लेकिन भूल गईं कि लाल निशान कमल पर जल रहा है।बेगम घर से बाहर कर दी गईं है।

इंदौर में एक किराएदार ने दीवार पर मोदी की तस्वीर टांग रखी है मकान मालिक उसे प्रताड़ित कर रहा है तस्वीर नही हटाई तो बाबर बना देनें की धमकी दे रहा है।

इन ताजा घटनाओं पर मुर्दनी सी क्यों छाई है लेफ्ट लिबरल इकोसिस्टम में। इसे समझना कोई रॉकेट साइंस नही रह गया है।ये भारत में वाम बौद्धिक विश्विद्यालय से उपजा नया इस्लामिक संस्करण है जहां भाजपा की बात करना हराम घोषित कर दिया गया है।जो सजा काफिर को मुकर्रर है वह अब भारत में जिहादियों द्वारा हर उस मुसलमान को दी जा रही है जो इस नए इस्लामिक फतवे का उल्लंघन कर रहा है ।बाबर अली ने यही पाप किया और उसकी बर्बर हत्या को स्वाभाविक बताने की अमानुषिक दलीलें भी खुलेआम दी जा रही है।समाजवादी पार्टी के सांसद है शफीकुर्रहमान उप्र से।उन्होंने कहा है कि बाबर अली के साथ ठीक हुआ क्योंकि भारत में मुसलमानों के लिए भाजपा का साथ स्वीकार नही है।

कल्पना कीजिये यही घटनाएं थोड़ा बदले हुए किरदारों के संग घटित हो गईं होती?बाबर अली के हत्यारे रामू,श्यामू,होते तो क्या होता?इन्टॉलरेंस गैंग कैसे सड़कों से लेकर टीव्ही स्टूडियो और सोशल मीडिया पर तांडव कर रही होती।अखलाक,पहलू की तरह बाबर अली भी दुनियां भर में नाम कमा रहा होता।कुशीनगर के रास्ते जाम हो गए होते राहुल,प्रियंका ,अखिलेश से लेकर अजीत अंजुम,राणा अयूब,आरफा खानम,उर्मिलेश की सुपारीबाज गैंगें पुलिस बेरिकेडिंग को छकाते हुए खेत खलियान ,जंगल के रास्ते बाबर अली के घर से लाइव कर रहे होते।दिल्ली के इंडिया गेट पर मोमबत्तियां लिए जेएनयू के मेनन पुत्र ढपलियां बजा कर आजादी के तराने छेड़ रहे होते।टाइम पत्रिका पर योगी हत्यारे के रूप में नमूदार नजर आते।रवीश की काली स्क्रीन पर प्राइम टाइम का सप्ताह भर का वह का पैकेज चल रहा होता जो उन्होंने 10 मार्च से पहले ही लिख लिया था।बॉलीवुड के जावेद औऱ शाह फिर भारत छोड़ने का राग दोहरा रहे होते।स्वरा से लेकर पूरी नृत्य मंडली इन्टॉलरेंस की ब्लॉकबस्टर मूवी तैयार किये होते।बाबर अली के हत्यारे अगर शांतिदूत न होते तो कश्मीर फाइल्स की क्या गत करते बालीबुड के सेक्यूलर डीलर हम कल्पना कर सकते हैं।विवेक रंजन अग्निहोत्री बड़ी किस्मत वाले है कि उनकी फिल्म उनका साहस बॉलीवुड के सेक्यूलर परमाणु बंब से बच गया है।हामिद अंसारी औऱ शहाबुद्दीन याकूब कुरैशी अपने पुराने अफसरों के साथ शायद ही कोई चिट्ठी राष्ट्रपति को लिखें क्योंकि बाबर अली के हत्यारे हिन्दू या गैर इस्लामी नही है।यही इनका वास्तविक सेक्युलरिज्म है।

अशोक वाजपेयी और अवार्ड वापिसी गैंग बाबर,इंदौर,बदायूं पर भी चुप है और बंगाल की हिंसा पर भी मुंह सिलकर बैठी है।भारत के संविधान की किताब लेकर शाहीन बाग औऱ किसान धरने पर बैठने वालों में से कोई यह बताने को तैयार नही है कि मुसलमानों को भाजपा को वोट करना कैसे असंवैधानिक हो गया है।यदि नही हुआ है तो इस देश का एक भी मुस्लिम स्कॉलर या लेफ्ट लिबरल गिरोह का सदस्य इन घटनाओं पर बोलने के लिए क्यों आगे नही आया है।यह चुप्पी बेहद खतरनाक किस्म की है।यह बुद्धिजीवियों से कहीं बड़ा नुकसान उन गरीब मजलूम भारतीय मुसलमानों का कर रही है जो महज मोहरा बनाकर एक राजनीतिक झुंड में तब्दील कर दिए गए।यह अलगाव की ऐसी जमीन की निर्मिति है जिसमें गरीबी के सिवाय कुछ भी नही खड़ा होना है।देश के बदलते अवचेतन को समझने में नाकाम अभिजन संसदीय राजनीति में पहले ही अप्रसांगिक हो चुका है लेकिन दुःख इस बात का भी है कि इनकी ज्ञान की पूंजी से विपक्ष अभी भी खुद को मुक्त नही कर पाया है।ऑस्ट्रेलिया से पढ़लिखकर आये अखिलेश क्या कुशीनगर जाकर बाबर अली के परिजनों से नही मिल सकते थे। क्या ओबैसी और प्रियंका हाथरस की तरह वहां नही जा सकते।शायद इसलिए कि बाबर तुष्टीकरण और सुन्नीवाद का मुद्दा नही बन सकता है,उसकी हत्या इसलिए हुई है क्योंकि उसने एक लाभार्थी के रूप में योगी को वोट किया।बाबर नकली भयाक्रांत सेक्यूलर भीड़ का हिस्सा नही था।इस प्रहसन का एक पक्ष यह भी है कि राजनीतिक रूप से सब कुछ गंवाने के बाद भी विपक्ष के नेता अभी भी उसी नकली ज्ञान जगत के भरोसे टिके है जिसे खत्म कर मोदी योगी भारत की संसदीय राजनीति का अपराजेय योद्धा बन गए है।


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